Bihar Assembly Election: वक्त देखकर पलटी मारते रहे हैं जीतनराम मांझी, CM रहते मिली थी हत्या की धमकी
Bihar Assembly Election 2020 जीतनराम मांझी की छवि बिहार के एक पलटीमार राजनेता की रही है। हालांकि हर दलबदल के पीछे उनके अपने तर्क रहे हैं। आइए डालते हैं नजर।
पटना, जेएनएन। Bihar Assembly Election 2020: हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) के अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी (Jitan Ram Manjhi) अब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) का हिस्सा हैं। बकौल मांझी, वे एनडीए में इस कारण हैं, क्योंकि नीतीश कुमार (Nitish Kumar) एनडीए में हैं। हालांकि, एक दौर ऐसा भी आया था, जब नीतीश कुमार से उनके रिश्ते बेहद खराब हो गए थे। तब मांझी मुख्यमंत्री थे। उन्होंने जेडीयू के दबंग विधायक रहे अनंत सिंह (Anant Singh) से उस दौरान हत्या की धमकी मिलने की भी बात कही थी। राजनीति ने एक बार फिर करवट ली है और मांझी व नीतीश साथ हैं। मांझी के साथ वक्त देखकर दलबदल (Defection) का इतिहास रहा है। हर दलबदल के पीछे उनके अपने तर्क रहे हैं, लेकिन उनके बारे में यह धारणा बन गई है कि वे कब पलटी मार दें, कहा नहीं जा सकता।
तब नीतीश कुमार के खिलाफ की थी बगावत
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में जनता दल यूनाइटेड (JDU) ने एनडीए से किनारा कर लिया था। उस चुनाव में पार्टी की बड़ी हार के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पद से इस्तीफा देकर जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया था। यह मांझी की राजनीतिक हैसियत में बड़ा टर्न था। इसके पहले तक उन्हें बिहार में भी कम लाग जानते थे, लेकिन मुख्यमंत्री बनते ही उनकी हैसियत बढ़ गई। मांझी के अनुसार, बीतते दिन के साथ उन्हें नीतीश कुमार का रबर स्टांप बनना गंवारा नहीं हुआ। ऐसे में उन्होंने बगावत का झंडा बुलंद कर दिया। इस दौरान जेडीयू के बाहुबली विधायक अनंत सिंह ने कथित तौर पर जीतनराम मांझी को हत्या की धमकी दे डाली थी। कुछ दिनाें पहले वे महागठबंधन (Grand Alliance) का साथ छोड़ कर एक बार फिर नीतीश कुमार के साथ आ गए हैं।
पहली बार कांग्रेस के टिकट पर जीते थे चुनाव
गया जिले के खिजरसराय प्रखंड के महकार गांव के एक मजदूर रामजीत राम मांझी और सुकरी देवी के बेटे जीतन राम मांझी का जन्म 6 अक्तूबर 1944 को हुआ था। स्नातक करने के बाद उन्होंने टेलीफोन विभाग में नौकरी की, लेकिन बाद में नौकरी छोड़ कर राजीति में आ गए। साल 1980 में कांग्रेस (Congress) के टिकट पर फतेहपुर क्षेत्र से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंच गए। फिर, तत्कालीन चंद्रशेखर सिंह की सरकार में मंत्री बनाए गए। इसके बाद से उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा है।
कांग्रेस के बाद थामा लालू व नीतीश का हाथ
जीतनराम मांझी ने अपनी राजनीति कांग्रेस के साथ शुरू की थी, लेकिन साल 1990 में जब बिहार में कांग्रेस का दौर समाप्त होता दिखा तो जनता दल (Janata Dal) में चले गए। आगे लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) के साथ राष्ट्रीय जनता दल (RJD) में शामिल हो गए। साल 2005 में लालू का अवसान होता देख नीतीश कुमार के साथ हो गए। इसके बाद वे जेडीयू में लंबे समय तक रहे।
नीतीश कुमार ने बनाया पहला दलित मुख्यमंत्री
तब जेडीयू सत्ताधरी एनडीए का घटक दल था। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) में नीतीश कुमार ने एनडीए से किनारा कर लिया। उस चुनाव में पार्टी की बड़ी हार के बाद नीतीश कुमार ने हार की जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। नीतीश कुमार ने जीतनराम मांझी को बिहार का पहला दलित मुख्यमंत्री बना दिया। वे 20 मई 2014 से 20 फरवरी 2015 तक मुख्यमंत्री रहे। इस दौरान उनका कई मुद्दों पर नीतीश कुमार से मतभेद हुआ, जिसके बाद उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा।
लोकसभा चुनाव के पहले महागठबंधन में गए
बीते विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय आरजेडी तथा कांगेस के साथ मिलकर महागठबंधन (Mahagathbandhan) के तहत जीत दर्ज की। इस दौरान मांझी अपने हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) के साथ एनडीए में चले गए थे। हालांकि, चुनाव में उनकी पार्टी कुछ खास हासिल नहीं कर सकी। एनडीए में मांझी की राजनीति बस यूं ही चल रही थी कि अचानक नीतीश कुमार महागठबंधन छोड़ फिर एनडीए का हिस्सा बन गए।धीरे-धीरे जब एनडीए में मांझी की राजनीति हाशिए पर चली गई, तब बीते लोकसभा चुनाव के पहले उन्होंने महागठबंधन का दामन थाम लिया। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी उनकी पार्टी को बुरी हार मिली, लेकिन आरजेडी की मदद से उन्होंने अपने बेटे संतोष सुमन को विधान पार्षद जरूर बनवा लिया।
विधानसभा चुनाव के पहले बने एनडीए का हिस्सा
जीतनराम मांझी की राजनीति ने फिर करवट बदली है। विधानसभा चुनाव के ठीक पहले एक बार फिर वे नीतीश कुमार के साथ एनडीए में हैं। इस बार भी मांझी के महागठबंधन छोड़ने के अपने तर्क हैं। उन्होंने कहा है कि महागठबंधन में वे लालू यादव के बरगलाने पर शामिल हुए थे। वहां भ्रष्टाचार का माहौल है। महागठबंधन में समन्वय समिति कनने की उनकी मांग की भी अनसुनी की गई। इस कारण अब वे महागठबंधन छोड़कर नीतीश कुमार के साथ हैं। लेकिन यह सवाल खड़ा है कि क्या इस बार भी इतिहास दुहराएगा? अब आगे-आगे देखिए होता है क्या?