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Bihar Assembly Election: कहीं LJP का सुर न बिगाड़ दे 143 सीटों का राग, सियासी गणित में फिट नहीं बैठ रहे मंसूबे

Bihar Assembly Election जेडीयू के खिलाफ एलजेपी का रूख एनडीए में परेशानी का सबब बन गया है। उसके इस बार के तेवर को एनडीए के साथ महागठबंधन भी तवज्जो नहीं दे रहा है।

By Amit AlokEdited By: Published: Wed, 09 Sep 2020 07:56 AM (IST)Updated: Thu, 10 Sep 2020 07:28 AM (IST)
Bihar Assembly Election: कहीं LJP का सुर न बिगाड़ दे 143 सीटों का राग, सियासी गणित में फिट नहीं बैठ रहे मंसूबे
Bihar Assembly Election: कहीं LJP का सुर न बिगाड़ दे 143 सीटों का राग, सियासी गणित में फिट नहीं बैठ रहे मंसूबे

पटना, भुवनेश्वर वात्स्यायन। Bihar Assembly Election: राष्‍ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में रहते हुए लगातार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) पर हमला कर अब 143 सीटों पर लडऩे की हवा देने वाली लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) अपनी रणनीति का खुलासा भले न कर रही हो, लेकिन आंकड़े गवाह हैं कि उसके ऐसे मंंसूबों ने हमेशा मुंह की खाई है। अवसरवादी राजनीति का ठप्पा लगवा चुकी पार्टी के इस बार के तेवर को न तो एनडीए कोई तवज्जो दे रहा है और न ही महागठबंधन (Grand Alliance)। एलजेपी की कमान संभाले युवा चिराग पासवान (Chirag Paswan) के रवैये से जनता दल यूनाइटेड (JDU) में बेहद आक्रोश है और उसके बिना चुनाव में उतरने का मन बनाए है।

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हर तरह से दांव आजमा चुकी एलजेपी

बिहार में एलजेपी हर तरह से दांव आजमा चुकी है, अकेले भी लड़कर व गठबंंधन के सहारे भी, लेकिन नतीजे कुछ खास नहीं रहे। पिछले 15 साल में हुए चार चुनावों में एलजेपी के आंकड़े ऐसे नहीं रहे जो उसे सहयोगियों पर दबाव बनाने की स्थिति में ला सकें। 2005 में फरवरी में हुए चुनाव में लालू विरोधी लहर (Anit Lalu Wave) के दौरान जरूर वह कुछ फायदे में रही, जिसमें 178 सीटों पर उम्मीदवार उतारकर 29 सीटें जीतने में सफल रही। अब तक के सर्वाधिक 12.62 फीसद वोट भी उसी चुनाव में मिले। हालांकि, वह जीत काम नहीं आई। सरकार ही नहीं बनी और विधानसभा भंग कर दी गई।

विधानसभा चुनावों में लगातार हुई हार

उसके बाद अक्टूबर 2005 में चुनाव हुए तो एलजेपी फिर अकेले 203 सीटों पर मैैैैैदान में उतरी, लेकिन जीत पाई सिर्फ दस। यानी कुछ महीने पहले जीती गईं 19 सीटें वह हार गईं। वोट फीसद भी गिरकर 11.10 पर आ टिका। उस समय रामविलास पासवान ने अफसोस किया था कि अगर वह राष्‍ट्रीय जनता दल (RJD) और कांग्रेस (Congress) के साथ मिलकर लड़े होते, तो नीतीश मुख्यमंत्री नहीं बन पाते। पुरानी गलती दुरुस्त करते हुए 2010 में वे आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर लड़े लेकिन तीन ही सीटें जीत पाए। 2015 में हुए पिछले चुनाव में एलजेपी ने भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर 42 सीटों पर प्रत्याशी उतारे, लेकिन 4.83 फीसद वोट पाकर महज दो सीटें ही जीत सकी। पासवान 2005 के बाद लगातार पाला बदलते रहे और सीटें गंवाते रहे। 15 वर्षों में 29 का आंकड़ा 2 पर आ टिका।

नीतीश को मुख्यमंत्री चेहरा नहीं मानते चिराग

इस बार चुनावी साल की शुरुआत से ही चिराग पासवान मुख्यमंत्री नीतीश के खिलाफ मुखर होते रहे हैं। उनकी पार्टी हर मौके पर नीतीश का विरोध करने से नहीं चूक रही है। वे नीतीश को मुख्यमंत्री का चेहरा (CM Face) मानने से पक्ष में नहीं है। एलजेपी संसदीय दल की बैठक में 143 सीटों पर प्रत्याशी उतारने की बात भी हुई। सीधे तौर पर तो नहीं, लेकिन पार्टी में जेडीयू के खिलाफ प्रत्याशी उतारने की बात भी चर्चा में आई। जबकि, सहयोगी बीजेपी नीतीश के चेहरे पर ही चुनाव लड़ने की घोषणा बार-बार कर रही है।

नीतीश ने मांझी में खोज लिया काट

एलजेपी के इसी तेवर की काट के लिए जातिगत संतुलन साधते हुए नीतीश ने अपने पुराने साथी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) के जीतन राम मांझी (Jitanram Manjhi) को अपने पाले में कर लिया है। अब चिराग के हर बयान का तल्ख जवाब देने के लिए नीतीश के पास मांझी हैं। वोट संतुलन के लिहाज से भी मांझी जेडीयू के लिए ज्यादा मुफीद हैं।

एनडीए में सहज नहीं चिराग की स्थिति

चिराग की नीतीश के खिलाफ बयानबाजी को जेडीयू नेता केसी त्यागी ने बीजेपी के वरीय नेताओं का अपमान करार दिया है। एलजेपी के बिना भी चुनाव में जाने के संकेत देते हुए उन्होंने 2005 से लेकर 2015 तक के विधानसभा चुनाव का हवाला दिया। स्पष्ट किया कि इन चुनावों में एलजेपी के साथ जेडीयू का गठबंधन नहीं था। ऐसे में चिराग की स्थिति एनडीए में बहुत सहज नहीं मानी जा रही है। उधर महागठबंधन में भी एलजेपी का प्रवेश आसान नहीं होगा।


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