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Bihar Assembly Election 2020 : वर्चुअल रैली में विकास की चर्चा के बीच एक बारीक लकीर भी

Bihar Assembly Election 2020 नीतीश कुमार ने वर्ष 2005 से 2014 तक की उपलब्धियों का खुद लिया श्रेय। भाजपा के साथ सरकार बनाने के बाद की उपलब्धियों में केंद्र सरकार को भी श्रेय दिया।

By Sumita JaswalEdited By: Published: Mon, 07 Sep 2020 05:50 PM (IST)Updated: Mon, 07 Sep 2020 05:50 PM (IST)
Bihar Assembly Election 2020 : वर्चुअल रैली में विकास की चर्चा के बीच एक बारीक लकीर भी
Bihar Assembly Election 2020 : वर्चुअल रैली में विकास की चर्चा के बीच एक बारीक लकीर भी

अरुण अशेष, पटनाBihar Assembly Election 2020 : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी पहली वर्चुअल रैली में उन तमाम सवालों के जवाब दिए, जो अक्सर सत्ताधारी दल से चुनाव प्रचार के दौरान वोट मांगते समय पूछे जाते हैं। विपक्ष भी उन्हीं सवालों को उछालता है। नीतीश विकास के सवाल पर चुनाव लड़ते हैं। लिहाजा, भाषण के बड़े हिस्से का उपयोग उन्होंने उपलब्धियों की चर्चा में किया। बड़ी सावधानी से उन्होंने अपने शासनकाल को दो हिस्सों में बांटा। पहला हिस्सा वह, जिसमें केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। दूसरे हिस्से में उन्होंने एनडीए सरकार से विकास में मिले सहयोग का जिक्र किया। वर्ष 2005 से 2014 तक की उपलब्धियों का श्रेय उन्होंने खुद लिया। महागठबंधन से अलग होने और भाजपा के सहयोग से सरकार बनाने के बाद की उपलब्धियों के श्रेय में उन्होंने केंद्र सरकार को भी हिस्सा दिया। कई बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी चर्चा की। खासकर कोरोना के खिलाफ लड़ाई में केंद्र की भूमिका की उन्होंने खूब तारीफ की।

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बारीक लकीर खींची

मुख्यमंत्री ने विकास की उपलब्धियों की चर्चा के दौरान बारीक लकीर खींची। ताकि जनता के बीच यह संदेश न जाए कि सबकुछ केंद्र सरकार की मदद से हो रहा। दो उदाहरण देखिए। 

 पहला - राज्य सरकार ने गरीबों को अनाज देने का फैसला किया। बाद में केंद्र सरकार की ओर से भी राशन दिए गए। दोनों के सहयोग से लोगों को पर्याप्त अनाज मिल रहा है। उन्होंने बाढ़ राहत की चर्चा की। वर्ष 2007 में दरभंगा और 2008 में कुसहा तटबंध टूटने के बाद कोसी में आई भारी तबाही के दौरान राहत वितरण का जिक्र किया। उस में तत्कालीन केंद्र सरकार की कोई चर्चा नहीं थी।

दूसरा  - वे प्रधानमंत्री गरीब कल्याण रोजगार अभियान की चर्चा कर रहे थे। बता रहे थे कि खगडिय़ा जिले के एक पंचायत से यह अभियान शुरू हुआ। उस पंचायत में पांच करोड़ 65 लाख रुपये की लागत से निर्माण योजनाएं शुरू हुईं। मुख्यमंत्री ने जोड़ा-इसमें दो करोड़ रुपया राज्य सरकार खर्च कर रही है। असल में यह बताने की जरूरत इसलिए पड़ रही है कि सहयोगी भाजपा के कुछ नेता राज्य में हो रहे विकास का सारा श्रेय केंद्र सरकार को देने की कोशिश करते हैं। खासकर कोरोना के मामले में यह हो रहा है। मुख्यमंत्री ने इसे साफ किया कि प्रवासियों के खाते में गए हजार-हजार रुपये और क्वारंटाइन अवधि में एक व्यक्ति पर खर्च किया गया 5300 रुपया राज्य के खजाने से निकला था।

अलग पहचान बताने की कोशिश

नीतीश ने यह बताने की पुरजोर कोशिश की कि भाजपा से चुनावी गठबंधन के बावजूद जदयू अपनी स्वतंत्र पहचान को लेकर बेहद सतर्क है। अपराध, भ्रष्टाचार और सांप्रदायिकता के सवाल पर जीरो टॉलरेंस उनकी सरकार की नीति रही है। वह इस पर कायम हैं और रहेंगे भी। कब्रिस्तानों की घेराबंदी और उर्दू शिक्षकों की बहाली का जिक्र भी उस समूह को तसल्ली देने वाले अंदाज में था, जिसे जदयू तो पसंद है, मगर भाजपा से परहेज है। कांग्रेस और राजद को लपेटने के लिए उन्होंने भागलपुर दंगे की याद दिलाई। बताया कि दोषियों को सजा मिले, इसके लिए सत्ता में आने के बाद उन्होंने दंगे की फाइल को दोबारा खुलवाया। उन्होंने अपराध और विकासहीनता के उस दौर को शिद्दत से याद किया, जिसे खत्म करने के नाम पर वे सत्ता में आए।


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