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Bihar Election 2020: बिहार की सियासत की एक हकीकत यह भी, यहां 70 सीटों पर जाति बनाम जाति का मुकाबला

Bihar Assembly Election 2020 यह बिहार में जाति की राजनीति की कड़वी हकीकत है। इस बार के चुनाव में यहां 70 सीटों पर एक ही जाति के उम्‍मीदवारों के बीच मुकाबला होता दिख रहा है। जाति विशेष की बहुलता देखकर दलों ने जाति विशेष के प्रत्याशियों को खड़ा किया है।

By Amit AlokEdited By: Published: Sun, 18 Oct 2020 08:53 AM (IST)Updated: Sun, 18 Oct 2020 04:38 PM (IST)
Bihar Election 2020: बिहार की सियासत की एक हकीकत यह भी, यहां 70 सीटों पर जाति बनाम जाति का मुकाबला
नितिन नवीन, लव सिन्‍हा, भाई वीरेंद्र एवं अनंत सिंह। फाइल तस्‍वीरें।

पटना, अरविंद शर्मा। Bihar Assembly Election 2020: प्रत्याशी योग्यता के आधार पर तय होते हैं, सेवा के आधार पर तय होते हैं, यह दावा राजनीतिक दलों का हमेशा रहता है। 243 सीटों की विधानसभा में 70 सीटों पर जब जाति विशेष के प्रत्याशी के खिलाफ उसी की जाति का प्रत्याशी मैदान में उतार दिया जाता है, तो यह दावा खोखला लगता है। यही होता रहा। चुनावी विश्लेषक यह लगातार बता रहे कि प्रत्याशियों के चयन में परिवारवाद, भाई-भतीजावाद, क्षेत्रवाद, जातिवाद का बोलबाला कैसे है? इस कड़ी में प्रस्तुत है अरविंद शर्मा की यह रिपोर्ट, जो बताती है कि जाति विशेष के लोगों की बहुलता देखकर दलों ने क्षेत्र विशेष में जाति विशेष के प्रत्याशियों को ही उतारा है।

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एक चौथाई सीटों पर अपनों के बीच महासमर

विधानसभा की 243 सीटों पर दोनों गठबंधनों ने बिसात ऐसी बिछाई है कि एक चौथाई पर अपनों के बीच ही महासमर होना है। तीनों चरणों की 70 सीटों पर एक ही जाति के प्रत्याशी आमने-सामने आ गए हैं। सबसे ज्यादा यादव प्रत्याशी आपस में घमासान करेंगे। बड़ी संख्या में राजपूत और भूमिहार प्रत्याशियों में भी आपसी संघर्ष होगा। सीमांचल की कई सीटों पर मुसलमान भी आपस में ही महासंग्राम करने के हालात में हैं। जाति बनाम जाति की लड़ाई वाली सबसे ज्यादा सीटें प्रथम चरण में हैं। ऐसी सीटों की संख्या 26 है, जबकि दूसरे चरण में 25 है।

यादव बनाम यादव : 23

बिहार में यादवों की आबादी अन्य जातियों की तुलना में ज्यादा है। इसलिए विभिन्न दलों ने बड़ी संख्या में इसी जाति के प्रत्याशियों पर दांव लगाया है। नतीजा यह हुआ कि 23 सीटों पर दोनों गठबंधनों की ओर से यादव प्रत्याशियों के बीच ही घमासान है।

राघोपुर: दिलचस्प यह भी है कि राजद प्रमुख के दोनों पुत्रों की लड़ाई भी स्वजातीय उम्मीदवारों से ही है। राघोपुर में राजद के प्रत्याशी के रूप में खुद नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव हैं। जबकि, भाजपा ने इनके मुकाबले सतीश कुमार को उतारा है। यह वही सतीश हैं, जिन्होंने 2010 के विधानसभा चुनाव में राबड़ी देवी को हराया था। तब सतीश जदयू के प्रत्याशी थे। अबकी भाजपा की ओर से मोर्चे पर हैं। हालांकि 2015 के चुनाव में तेजस्वी यादव ने इन्हें हरा दिया था। सतीश को राजनीतिक प्रशिक्षण लालू प्रसाद के स्कूल में ही मिला है। पहले वह राजद के ही कार्यकर्ता और चुनावों में राबड़ी देवी के सहयोगी हुआ करते थे।

हसनपुर: यादव बनाम यादव का दूसरा सनसनीखेज मुकाबला हसनपुर विधानसभा क्षेत्र में है। यहां से राजद के टिकट पर विधायक तेजप्रताप यादव ने पहली बार मोर्चा संभाला है। दूसरी तरफ हैं जदयू के राजकुमार राय। पिछली दो बार से लगातार जीत रहे हैं। यादव बहुल इस क्षेत्र में वोटरों को हड़पने का महासंग्राम होने जा रहा है। 1967 के बाद से इस क्षेत्र से दूसरी जाति का कोई उम्मीदवार नहीं जीत सका है। पहले पूर्व मंत्री गजेंद्र प्रसाद हिमांशु जीता करते थे। राजद का भी प्रतिनिधित्व किया था।

मधेपुरा: मधेपुरा को प्रतिनिधित्व करने वाले को गोप का पोप कहा जाता है। लोकसभा चुनाव में भी यहां से लालू प्रसाद और शरद यादव का मुकाबला पूरे देश की नजर में होता रहा है। पप्पू यादव ने भी शरद यादव के प्रभा मंडल को यहां से कई बार चुनौती दी है। विधानसभा के लिए यहां से जदयू ने अपने प्रवक्ता एवं मंडल आयोग के मसीहा वीपी मंडल के पोते निखिल मंडल को उतारा है। उनके सामने हैं राजद के चंद्रशेखर।

परसा: पूर्व मुख्यमंत्री दारोगा प्रसाद राय के क्षेत्र परसा में जदयू ने लालू के समधी चंद्रिका राय को उतारा है। उनके मुकाबले के लिए राजद ने छोटेलाल राय पर दांव लगाया है। लालू परिवार से चंद्रिका के बिगड़े रिश्ते की चर्चा तो पूरे देश में हो चुकी है। अबकी हार-जीत की चर्चा होगी। दोनों यादव हैं और कट्टर प्रतिद्वंद्वी भी। एक राजद में होते हैं तो दूसरा जदयू की ओर से मोर्चा संभाल लेते हैं। अबकी फिर दोनों ने दल को अलट-पलट कर आरपार के लिए तैयार हैं।

मनेर: राजद के एक और बड़ा चेहरा हैं भाई वीरेंद्र। प्रवक्ता भी हैं। तेजस्वी के करीबी भी। मनेर से 1995 से ही जीत रहे हैं। अबकी भाजपा ने अपने प्रवक्ता निखिल आनंद को सामने कर दिया है।

दानापुर: इस बार दानापुर की लड़ाई भी दिलचस्प होगी। भाजपा विधायक आशा सिन्हा के खिलाफ राजद ने बाहुबली रीतलाल यादव को उतारा है।

भूमिहार बनाम भूमिहार : 13

विधानसभा की 13 सीटों पर दोनों गठबंधनों के भूमिहार प्रत्याशी आमने-सामने हैं। सबसे बड़ी लड़ाई मोकामा में राजद और जदयू के बीच है। राजद ने बाहुबली अनंत सिंह को टिकट थमा कर लड़ाई को खास बना दिया है। जदयू ने राजीव लोचन को प्रत्याशी बनाया है। लखीसराय में मंत्री विजय कुमार से मुकाबले के लिए कांग्रेस ने अमरीश कुमार को टिकट दिया है। टिकारी में पूर्व मंत्री एवं हम के प्रत्याशी अनिल कुमार भी कांग्रेस के सुमंत कुमार के सामने हैं। दोनों में से कोई जीते इस जाति का प्रतिनिधित्व बढ़ाएगा।

राजपूत बनाम राजपूत : 06

जाति बनाम जाति में तीसरी बड़ी संख्या राजपूतों की है। छह सीटों पर राजपूत प्रत्याशी ही आमने-सामने हैं। बाढ़ में भाजपा के ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू के सामने कांग्रेस ने सत्येंद्र बहादुर को सिंबल थमाया है। सबकी नजर रामगढ़ पर भी रहेगी, जहां से राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के पुत्र सुधाकर सिंह प्रत्याशी हैं। भाजपा ने यहां से अशोक सिंह को प्रत्याशी बनाया है। इस सीट की चर्चा इसलिए भी जरूरी है कि 2010 में सुधाकर यहां से भाजपा के प्रत्याशी थे और उनके पिता जगदानंद सिंह ने बेटे को हराने के लिए राजद के लिए प्रचार किया था।

कायस्थ बनाम कायस्थ : 02

दो सीटों पर कायस्थ बनाम कायस्थ की दिलचस्प लड़ाई होगी। बिहारी बाबू शत्रुघ्न सिन्हा के बेटे लव सिन्हा की चुनावी राजनीति में इंट्री हुई है। भाजपा विधायक नितिन नवीन को कितनी चुनौती दे पाएंगे, इसकी परख होना बाकी है।

मुस्लिम बनाम मुस्लिम : 04

सीमांचल की चार सीटों पर मुस्लिम बनाम मुस्लिम संघर्ष होना है। पासवान प्रत्याशी भी पांच सीटों पर स्वजातीयों से ही टकराएंगे।

ब्राह्मण बनाम ब्राह्मण : 05

ब्राह्मïणों का आपसी संघर्ष पांच सीटों पर है। कुचायकोट में जदयू के अमरेंद्र पांडेय और कांग्रेस के काली पांडेय की टक्कर भी देखने लायक होगी।

कुर्मी बनाम कुर्मी : 01

रविदास, मांझी और पासी की तीन-तीन सीटों पर कड़ा संघर्ष होगा। कुशवाहा और वैश्य के प्रत्याशी दो सीटों पर आमने-सामने होंगे। सबसे कम कुर्मी सिर्फ एक सीट पर ही अपनों के खिलाफ उतरे हैं।


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