Bihar Assembly By-Election: कांग्रेस और नीतीश के साथ खुद को चुनौती दे बैठे हैं तेजस्वी यादव
विधानसभा उप चुनाव (Bihar Assembly By-Election) में राजद (RJD) सिर्फ कांग्रेस और जदयू (Congress and JDU) को ही चुनौती नहीं दे रहा है। दोनों सीटों पर उम्मीदवार देकर विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने खुद को भी चुनौती दे दी है।
अरुण अशेष, पटना। विधानसभा उप चुनाव (Bihar Assembly By-Election) में राजद (RJD) सिर्फ कांग्रेस और जदयू (Congress and JDU) को ही चुनौती नहीं दे रहा है। दोनों सीटों पर उम्मीदवार देकर विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने खुद को भी चुनौती दे दी है। उनकी चुनौती को जदयू गंभीरता से ले रहा है। पहले के उप चुनावों की तरह जदयू कामचलाऊ प्रबंधन से काम नहीं चला रहा है। कोशिश है कि पार्टी के लोग एक-एक वोटर तक पहुंचे। उन्हें सहमत कराएं कि नीतीश कुमार को उनका वोट क्यों मिलना चाहिए। राजद भी इसी अंदाज में वोटरों के बीच जा रहा है। उसके नेता-कार्यकर्ता जनता को बता रहे हैं कि नीतीश कुमार को वोट क्यों नहीं देना चाहिए।
कुशेश्वरस्थान और तारापुर में जदयू और सरकार की प्रतिष्ठा दांव पर
कुशेश्वरस्थान और तारापुर में जदयू और सरकार की साख दांव पर लगी हुई है। उप चुनाव में तेजस्वी ने भी अपना बहुत कुछ दांव पर लगा दिया है। अगर वे जीत जाते हैं तो माना जाएगा कि उनके निर्णय में दूरंदेशी है। अगर ऐसा नहीं होता है तो अगले बार निर्णय लेने के समय वे कई तरह के दबाव में रहेंगे। सटीक निर्णय लेने में उन्हें कठिनाई होगी। दुस्साहसिक निर्णय के बदले प्रयोग भी कह सकते हैं।
तेजस्वी ने किए दो नए प्रयोग
उप चुनाव में तेजस्वी ने दो नए प्रयोग किए। पहला प्रयोग-साथी दलों के बीच सीटों के बंटवारा की प्रचलित नीति है-सिटिंग और सेकेंड के फार्मूला (जिस सीट पर जीत हुई है या उम्मीदवार दूसरे नम्बर पर रहे हैं, अगले चुनाव में उसी दल का दावा माना जाता है।) को नकार दिया है। हालांकि उस मान्य फार्मूला के बावजूद कभी-कभी सहमति के आधार पर गठबंधन के दल सीटों की अदला बदली कर लेते हैं। लेकिन, इसमें बराबरी और दोनों दलों की सहमति का ख्याल रखा जाता है। मगर, कांग्रेस के मामले में यह नहीं हुआ।
कांग्रेसी की कमजोरी का हवाला
कांग्रेस की कमजोरी का हवाला देकर तेजस्वी यादव ने कुशेश्वरस्थान में अपना उम्मीदवार उतार दिया। इस क्षेत्र के गठन के बाद राजद ने पहली बार यहां उम्मीदवार उतारा है। नाराजगी में कांग्रेस ने तारापुर में अपना उम्मीदवार दे दिया। बेशक गठबंधन धर्म का पालन कांग्रेस ने भी नहीं किया। लेकिन, उसके पास बचाव का तर्क है। कांग्रेस कह सकती है कि गठबंधन धर्म का अनादर राजद ने किया। तारापुर पर कांग्रेस की दावेदारी उसकी स्वाभाविक प्रतिक्रिया था। यह मान लेना ठीक नहीं होगा कि उप चुनाव के बाद कांग्रेस महागठबंधन से अलग हो जाएगी। राजद से उसका रिश्ता समाप्त हो जाएगा। क्योंकि अतीत में भी दोनों दलों के बीच यह सब हो चुका है। अलग हुए। फिर साथ हो गए। फिर भी परिणाम अगर प्रतिकूल हुआ तो तेजस्वी आलोचना के पात्र बनेंगे। अगले किसी चुनाव में कांग्रेस अधिक मोलभाव करेगी। वैसे, विरोधी तो यह कहने से भी बाज नहीं आ रहे हैं कि कांग्रेस-राजद मिल कर ही लड़ रहे हैं।
नए समीकरण के उम्मीदवार
तेजस्वी ने मुसहर समाज के गणेश भारती को कुशेश्वरस्थान और वैश्य समाज के अरुण साह को तारापुर में राजद का उम्मीदवार बनाया। यह तेजस्वी का प्रयोग है। राजद ने विधानसभा चुनाव में भी पार्टी के मान्य सामाजिक समीकरण के बाहर के लोगों को उम्मीदवार बनाया था। एक हद तक सफलता भी मिली थी। लेकिन, उप चुनाव में उम्मीदवारों के चयन को प्रयोग इसलिए कहा जाएगा, क्योंकि अतीत में राजद ने कभी इन सीटों पर मुसहर और वैश्य समाज के लोगों को उम्मीदवार नहीं बनाया था। पूर्ववर्ती सिंघिया विधानसभा क्षेत्र से 1995 में जनता दल के उम्मीदवार जगदीश पासवान की जीत हुई थी। उस समय जनता दल का विभाजन नहीं हुआ था। राजद के निर्माण के बाद कभी सिंघिया में उसकी जीत नहीं हुई। अगर प्रयोग सफल रहा तो यह तेजस्वी के नेतृत्व क्षमता को मान्यता देगा। राजद का सामाजिक आधार बढ़ेगा। सीटों के लिहाज से देखें तो दोनों सीटों पर तेजस्वी के पास खोने के लिए कुछ नहीं है। दोनों सीटें जदयू की हैं।