बिहार के कण-कण में सद्भाव की विरासत, यहां साथ-साथ रहते राम-रहीम के बंदे
एक ओर जहां मंदिर व मस्जिद का विवाद है, वहीं बिहार में कई एेसे धर्मस्थल हैं जो सद्भाव की मिसाल हैं। वहां राम और रहीम के बंदे मिल-जुलकर रहते हैं। आइए जानते हैं उनके बारे में।
पटना [जागरण टीम]। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर राजनीतिक पार्टियां भले ही समुदायों के बीच दरार पैदा करना चाहें, लेकिन, सांप्रदायिक सद्भाव हमारे देश की खूबसूरती है। सद्भाव की यह विरासत देखनी हो तो आइए बिहार। यहां कई ऐसे धर्मस्थल हैं, जहां आस्था के बीच धर्म कभी दीवार नहीं बनती और राम-रहीम के बंदे साथ-साथ रहते हैं।
बिहार में कई जगह मंदिर व मस्जिद साथ-साथ खड़े दिखते हैं। वहां लोग एक साथ भगवान की पूजा करते हैं तो खुदा की इबादत में सिर भी झुकाते हैं। पटना के तख्त श्री हरिमंदिर साहेब गुरुद्वारा के साथ तो जैन मंदिर, मस्जिद, शिव मंदिर व शीतला माता मंदिर भी जुड़े हुए हैं। जानिए सद्भाव की विरासत समेटे बिहार के ऐसे कुछ धर्म स्थलों के बारे में...
यहां दिलों को जोड़ती हैं पांच धार्मिक स्थलों की सटीं दीवारें
बिहार के पटना सिटी इलाके में सूरज की लालिमा के साथ अंबर की मस्जिद से अजान, गुरुद्वारे से अरदास, जैन मंदिर से नमोकार मंत्र और शिवालय से मंदिर की घंटियां एक साथ फिजां में गूंजती हैं। पटना साहिब स्थित विश्व में सिखों के दूसरे सबसे बड़े तख्त श्री हरिमंदिर जी पटना साहेब के पास हर दिन ऐसा नजारा देखने को मिलता है। यहां पास की बाड़ा गली में पार्श्वनाथ जैन मंदिर है। यहीं बिहार के सूबेदार साइस्ता खां के नाजिर ख्वाजा अंबर द्वारा निर्मित अंबर की मस्जिद, बगल में प्राचीन भगवान शिव का मंदिर व साथ सटे शीतला माता मंदिर भी हैं।
इन सभी धर्म स्थलों पर तीन सौ वर्ष से अधिक समय से इबादत, अरदास और पूजन हो रहे हैं। विभिन्न धर्मावलंबियों की आस्था वाले इन पांचों केंद्रों की दीवारें आपस में जुड़ी हुईं हैं, लेकिन कहीं कोई विवाद नहीं है।
मुट्ठी भर जमीन के एक कोने में पूजा तो दूसरे में इबादत
पटना सिटी के आलमगंज थाना क्षेत्र के त्रिपोलिया में अशोक राजपथ किनारे स्थित मुट्ठी भर जमीन विशाल हृदय रखने वालों की शिनाख्त करा रही है। झलाबोर इमामबाड़ा के नाम से चर्चित इस भूखंड के एक कोने में धार्मिक ध्वज की छांव में चबूतरे पर तुलसी का पेड़ है। यहां लिखे ऊं का जाप भक्त करते हैं।
इसके ठीक बगल में थोड़ी ऊंचाई पर इमामबाड़ा बना है, जहां मोहर्रम व चेहल्लुम के अवसर पर हजारों की संख्या में मुस्लिम समाज के लोग जमा होते हैं। इमामाबाड़ा पर दुआ मांगने के लिए दूसरे मजहब के लोग भी आते हैं। ण्क स्थानीय बुजुर्ग बताते हैं कि यह स्थल साम्प्रदायिक सौहार्द की अनूठी मिसाल है। दोनों मजहब के लोगों की कोशिश होती है कि आने-अनजाने में किसी हरकत से किसी का दिल न टूटे।
हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रतीक दुर्गामंदिर व इमामबाड़ा
अररिया के फारबिसगंज के भागकोहलिया स्थित लगभग 300 साल पुुराना दुर्गा मंदिर व इमामबाड़ा हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक हैं। यहांं मोहर्रम के दौरान पंचमी की मिट्टी दफनाने तक महिलाएं बंंद कमरे में मातम मनाती हैं। मोहर्रम के समय इमामबाड़े की ढाक और ढोल पर हिन्दू भाइयों की थाप पड़ती है।
जानकार बताते हैं कि इमाम हुसैन की शहादत के प्रतीक के रूप में इस इमामबाड़ेे को देखा जाता है। यहां सभी समुदायों के लोगों का संगम होता है। मन्नतें और मुरादें पूरी होने पर दर्जनों गांवाें के अखाड़ों का मिलन होता है।
जानकारों का कहना है कि मीर साहेब ईरान से आये थे। वे यहांं जौहरी का काम करते थे। मीर साहब ने ही यहां मंदिर और इमामबाड़ा की स्थापना कर दोनों समुदायों की एकता की नींव रखी, जो आज भी कायम है।
समरसता की मिसाल सूर्य मंदिर व जामा मस्जिद
भारत-नेपाल सीमा के रक्सौल स्थित मुख्य पथ पर थाना के समीप स्थित सूर्य मंदिर और जामा मस्जिद सामाजिक समरसता की मिसाल है। यह करीब तीन दशक से आस्था का केंद्र बना हुआ है। देश-विदेश से आने वाले दोनों समुदायों के पर्यटकों के लिए यह मिसाल है। यहां आस्था के बीच धर्म दीवार नहीं बनती।
रमजान के महीने में अलविदा की नमाज के लिए दोनों समुदाय के लोग मस्जिद और मंदिर के आसपास सफाई करते हैं। मस्जिद से सटे गणेश मंदिर और नौलखा सूर्य शक्ति शिव मंदिर के सामने स्थित प्रांगण को भी नमाजियों के लिए खोल दिया जाता है। इसी तरह छठ पूजा के दौरान मंदिर के आसपास मटन, चिकन की बिक्री बंद कर दी जाती है।
पूर्व मंत्री सगीर अहमद ने बताया कि जब वे छोटा था तो दोनों समुदाय के लोगों ने मिलकर इस मस्जिद का निर्माण कराया था। बाद में सूर्य मंदिर का निर्माण हुआ। आज दोनों समुदाय के लोग यहां आपस में मिलजुल कर रहते हैं।
हिंदुओं ने कराया मस्जिद का निर्माण
पश्चिम चंपारण जिले में बगहा प्रखंड के रतवल गांव में मंदिर है, लेकिन मस्जिद नहीं था। मस्जिद के अभाव में मुसलमानों को नमाज अदा करने के लिए दो किलोमीटर दूर जाना पड़ता था। इस कष्ट को गांव के हिंदुओं ने दिल से महसूस किया और चंदा इकट्ठा कर पांच लाख की लागत से नूरी मस्जिद का निर्माण करा दिया।
जाति व धर्म के नाम पर विद्वेष फैलानेवालों को रतवल गांव कौमी एकता का संदेश दे रहा है। गांव में करीब 800 हिंदू परिवार रहते हैं। 40-45 घर मुस्लिम समुदाय के लोग भी हैं। वे प्रत्येक जुमा (शुक्रवार) को दो किलोमीटर दूर पतिलार गांव में जाकर नमाज अदा करते थे। इस मजबूरी को देख हिंदुओं के नवयुवक संघ ने फैसला किया कि गांव में जब मंदिर है तो एक मस्जिद भी होनी चाहिए। बस क्या था, चंदा इकट्ठा कर 2012 में मस्जिद की आधारशिला रख दी गई। संघ के अध्यक्ष लोकेश राव व बगहा के मौलाना मोइनुद्दीन ने संयुक्त रूप से मस्जिद का शिलान्यास किया।
सद्भावना की अनूठी मिसाल हैं अरमानी खान
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की कर्मभूमि से सर्वधर्म सद्भाव का अनूठा संदेश धर्म के ठेकेदारों को समरसता का पाठ पढ़ा रहा है। बगहा निवासी अरमानी खान नव दुर्गा पूजा समिति मवेशी अस्पताल बगहा के अध्यक्ष हैं। अरमानी खान नवरात्र में नौ दिनों तक उपवास कर समाज के कल्याण की कामना करते हैं तो वहीं इस दौरान वो पांचों वक्त नमाज भी पढ़ते हैं। फलाहार कर नवरात्र का व्रत रखने वाले इस मुसलमान के दिल में हिन्दुओं के पर्व के प्रति भी उतनी ही आस्था और श्रद्धा है, जितनी अपने धर्म के प्रति।
अरमानी खान कहते हैं, "मैं तीन वर्षों से नवरात्रि का व्रत रख रहा हूं। राम-रहीम के देश की यही तो खूबसूरती है। अरमानी कहते हैं कि धर्म समाज को जोड़ने का माध्यम हैं। धर्म और जात पात की लड़ाई से उपर उठकर हमें इंसानियत को ही सबसे ऊपर मानना चाहिए। धर्म समाज को जोड़ता है, तोड़ता नहीं।