रहिए अलर्ट: कहीं आपकी भी भोली-भाली बच्ची के साथ तो एेसा नहीं हो रहा...
कहीं आप भी भूले से अपनी मासूम-सी बच्ची की बातों को अनसुना तो नहीं कर देते। बेटियों पर भरोसा करना और उनकी बातों को गंभीरता से सुननी चाहिए। हो सकता है वो किसी परेशानी में हो, जानिए..
पटना [प्रशांत कुमार]। वह 14 साल की थी। स्वभाव से चंचल। नौवीं में पढ़ती थी लेकिन पढ़ाई में मन कम लगता था। बड़ा भाई अपने स्कूल का टॉपर था। दसवीं की बोर्ड परीक्षा में उसके भी अच्छे अंक आएं इसलिए माता-पिता ने ट्यूशन लगवाने की सोची। कोचिंग में बातचीत में ही समय न गुजार दे यह सोचकर घर पर ही ट्यूशन दिलाने लगे। अभिभावक अच्छे अंक को लेकर इतने दबाव में थे कि बंद कमरे में टीचर बेटी के साथ क्या करता था, इसकी कभी चिंता ही नहीं की।
जब घटना की जानकारी हुई तो हैरान रह गए। उन्होंने सूचना पुलिस को दी। पंद्रह साल पहले हुई घटना में आरोपित शिक्षक तो गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन आज भी वह सदमे से उबर नहीं पाई है। यौन शोषण की घटना 2003 में राजधानी के शास्त्री नगर थाना क्षेत्र में हुई थी।
अभिभावकों को कर लिया था वश में
मार्च 2003 में प्रिया (काल्पनिक नाम) नौवीं कक्षा में गई थी। बातूनी प्रिया के अभिभावकों को हमेशा डर सताता था कि वह कोचिंग में पढऩे के बजाय गपशप में ही लगी रहेगी। पड़ोसी के कहने पर उन्होंने यूपीएससी की तैयारी करने वाले राहुल सिंह को ट्यूशन देने के लिए चार हजार रुपये महीने पर रख लिया।
लगभग 15 दिन तक राहुल उसे ढेर सारा होमवर्क देता रहा। इस कारण वह माता-पिता से टीचर की बुराई करती थी। अभिभावकों को वश में करने के लिए राहुल उनके सामने प्रिया की कमजोरियों को रखता था। सारी कमजोरियां वास्तविक होती थीं इसलिए वे उसकी बातों पर यकीन करने लगे थे।
पढ़ाने के समय बंद कर लेता था कमरा
प्रिया के माता-पिता दोनों ही सरकारी अफसर थे। वह स्कूल से छुट्टी होने के बाद दो बजे घर आ जाती थी। उस वक्त भाई कोचिंग में रहता था। राहुल तीन बजे घर आने लगा और पढ़ाने के बहाने कमरे का दरवाजा बंद कर लेता था। पहले उसे परीक्षा में अच्छे अंक दिलाने का प्रलोभन दे अश्लील हरकत करने की कोशिश की, पर सफल नहीं हुआ।
प्रिया ने जब अभिभावकों से शिकायत की तो उन्होंने राहुल से पूछा, जवाब मिला - वह बहाना बना रही है। अभिभावकों ने टीचर की बात पर यकीन कर लिया। इसके बाद प्रिया का मनोबल टूट गया। अभिभावकों से डांट-फटकार और पिटाई का भय दिखा कर राहुल उसका यौन शोषण करने लगा।
तीन महीने बाद खुला राज
तीन महीने तक प्रिया ने मां से कई बार पेट दर्द की शिकायत की, पर उन्होंने अनसुना कर दिया। उन्हें लगा कि प्रिया पढ़ाई नहीं करने का बहाना बना रही है। एक दिन जब उसकी मां ड्यूटी से घर आई तो प्रिया कमरे में चादर ओढ़कर लेटी हुई थी। उसने फिर पेट दर्द की शिकायत की। बदन भी गरम था।
मां उसे लेकर डॉक्टर के पास गईं, तब मालूम हुआ कि प्रिया एक माह के गर्भ से है। यह सुनते ही मां के पैरों तले जमीन खिसक गई और वह फूट-फूटकर रोने लगी। बेटी को गले लगा जब पूछा तो उसने पूरी कहानी बयां कर दी।
मां-बेटी दोनों डॉक्टर के क्लीनिक से सीधे शास्त्री नगर थाने पहुंचीं और मेडिकल रिपोर्ट के साथ लिखित तहरीर दी। पुलिस ने राहुल को गिरफ्तार कर लिया। इस कांड में पुलिस ने आइपीसी की धारा 376 के तहत प्राथमिकी दर्ज की थी।
आठ माह बाद आरोपित को मिली जमानत
राहुल लगभग आठ महीने तक जेल में था। उसने निचली अदालत में जमानत याचिका दायर की थी, जिसे जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने खारिज कर दिया था। याचिका में राहुल ने कहा था कि प्रिया और उसके बीच प्रेम संबंध थे। प्रिया की सहमति से शारीरिक संबंध बने। वे शादी करना चाहते थे, लेकिन यह बात प्रिया के घर वालों को मंजूर नहीं थी। इस बीच प्रिया गर्भवती हो गई, इसलिए उन्होंने दुष्कर्म का झूठा मुकदमा दर्ज करा दिया।
चूंकि राहुल ने कई प्रतियोगी परीक्षाओं का फॉर्म भर रखा था। परीक्षाएं होने वाली थीं। इस आधार पर उसे पटना हाईकोर्ट से जमानत मिल गई।
20 साल की उम्र में तय कर दी शादी
जमानत पर छूटने के बाद राहुल के परिजनों ने कई बार प्रिया के अभिभावकों पर शादी का दबाव बनाया, पर वे तैयार नहीं हुए। दो साल बाद प्रिया के अभिभावक मोहल्ला छोड़कर चले गए। उस वक्त तक प्रिया के घर वाले आरोपित को सजा दिलाने की बात पर डटे रहे पर छह साल बाद मुकदमा खुला तो वे समाज के डर से पीछे हट गए।
पता चला कि उन्होंने दूसरे शहर के एक प्रतिष्ठित परिवार में प्रिया की शादी तय कर दी थी। इस बारे में उन्होंने लड़के वालों को नहीं बताया था। इधर, राहुल के परिवार वालों के साथ भी प्रिया के अभिभावकों ने समझौता कर लिया। दोनों के बीच इकरार हुआ कि यह बात कभी सामने नहीं आनी चाहिए। प्रिया के घर वाले मुकदमा वापस लेने के लिए तैयार हो गए थे।
कहा-पटना हाईकोर्ट के अधिवक्ता ने
दुष्कर्म के अधिसंख्य मामलों में पीडि़त पक्ष आरोपितों से समझौता कर लेते हैं। शुरुआत में उन पर आरोपित को सजा दिलाने का जुनून रहता है, लेकिन समय बीतने के साथ लोकलाज का भय सताने लगता है। कई बार पुलिसकर्मी बिचौलिए की भूमिका अदा करते हैं और पीडि़त पक्ष का हौसला तोड़ देते हैं।
- प्रमोद राजपति, अधिवक्ता, पटना हाईकोर्ट