यूपी से अलग है बिहार में पूर्व मुख्यमंत्रियों के आजीवन बंगले का मामला, जानिए
सुप्रीम कोर्ट द्वारा यूपी के पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी बंगले के आवंटन को गैरकानूनी बताने की चर्चा बिहार में भी है। लेकिन, इस फैसले का असर बिहार पर नहीं पड़ेगा। जानिए कारण।
पटना [स्टेट ब्यूरो]। पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन सरकारी बंगला उपलब्ध कराए जाने के उत्तर प्रदेश (यूपी) सरकार के कानून को सुप्रीम कोर्ट द्वारा असंवैधानिक करार किए जाने की बिहार में भी चर्चा है। बिहार में पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन सरकारी बंगला उपलब्ध कराए जाने का प्रावधान है। वैसे इस बाबत भवन निर्माण मंत्री महेश्वर हजारी का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला यूपी के संदर्भ में है। बिहार पर उसका असर इस वजह से नहीं होगा क्योंकि यहां यह निर्णय कानून के तहत है। विधानसभा से इस बारे में एक्ट पारित है।
वर्ष 2016 में भी इस मसले पर बिहार में चर्चा हुई थी जब सुप्रीम कोर्ट ने इस आशय का एक फैसला यूपी के संदर्भ में दिया था। तब न्यायाधीश अनिल दवे ने यह फैसला दिया था कि इस श्रेणी के तहत आवंटित बंगले को दो से तीन महीने के भीतर खाली किया जाए।
इन्हें आवंटित हैं सरकारी बंगले
बिहार में इस बाबत जो कानून है उसके तहत राबड़ी देवी के नाम 10 सर्कुलर रोड का बंगला आवंटित है। लालू प्रसाद वर्ष 1990 से 1997 तक और राबड़ी देवी 1997 से 2005 तक मुख्यमंत्री थीं। दोनों के लिए एक ही बंगला आवंटित है। वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पूर्व मुख्यमंत्री के रूप में सात सर्कुलर रोड का बंगला मिला हुआ है जबकि एक अणे मार्ग बिहार के मुख्यमंत्री के बंगले के रूप में कर्णांकित है।
पूर्व मुख्यमंत्री के रूप में जीतन राम मांझी को भी बंगला आवंटित है। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री डॉ जगन्नाथ मिश्र को भी इस कानून का लाभ है पर वह जीडी वीमेंस कॉलेज के समीप पोस्ट ऑफिस रोड स्थित अपने निजी आवास में रहते हैैं। वहीं 1968 में मात्र तीन दिनों तक मुख्यमंत्री रहे सतीश प्रसाद सिंह को भी हार्डिंग रोड में बंगला आवंटित है।