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शारदीय नवरात्र के आखिरी दिन ननिहाल में विराजते हैं बजरंग बली, बिहार के रिविलगंज में होती है एक और अनोखी चीज

Shardiya Navratri 2022 शारदीय नवरात्र में अपनी ननिहाल आते हैं बजरंगबली। बिहार के रिविलगंज में हनुमानजी से जुड़ी अनोखी परंपरा है। हर साल नवमी को प्राण प्रतिष्ठा के सात दिन बाद विसर्जित किए जाते बजरंगबली। अंदर तस्‍वीरों के साथ काफी रोचक जानकारी...

By Amit Kumar PrasadEdited By: Shubh Narayan PathakPublished: Fri, 30 Sep 2022 05:55 PM (IST)Updated: Fri, 30 Sep 2022 05:55 PM (IST)
शारदीय नवरात्र के आखिरी दिन ननिहाल में विराजते हैं बजरंग बली, बिहार के रिविलगंज में होती है एक और अनोखी चीज
सारण जिले के रिविलगंज में होता है बजरंगबली की प्रतिमाओं का विसर्जन। प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

अमित कुमार, रिविलगंज (सारण)। पूरे देश में संभवत: सारण ही ऐसा स्थान है, जहां बजरंगबली की हर साल विभिन्न भाव-भंगिमाओं व कृतित्व दर्शाती नई प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है और सात दिनों की पूजा-अर्चना बाद उनका विसर्जन कर दिया जाता है। आम तौर पर बजरंगी बली की प्रतिमाओं का नदी या किसी अन्‍य जलस्रोत में विसर्जन नहीं किया जाता है। 

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शारदीय नवरात्र के आख‍िरी दिन खुलते हैं पट 

लेकिन बिहार के सारण यानी छपरा जिले में हर साल शारदीय नवरात्र की नवमी को बजरंगबली के नेत्र खोले जाते हैं, अश्विन पूर्णिमा तक सुंदरकांड, बजरंग वाण एवं हनुमान चालीसा का सामूहिक पाठ जारी रहता है। अगले दिन प्रतिपदा को प्रतिमाएं विसर्जन के लिए उठा ली जाती हैं और 24 घंटे के नगर भ्रमण के बाद दूसरे दिन कार्तिक कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को विसर्जित कर दी जाती हैं।  

सारण के रिव‍िलगंज में है बजरंगबली की ननिहाल 

मान्यता है कि सारण के रिविलगंज में बजरंगबली की ननिहाल थी। सरयू नदी किनारे गोदना में उनके नाना गौतम ऋषि का मंदिर है, यहां बजरंग बली भव्य स्थायी प्रतिमा स्थापित है, नवरात्र के दौरान पूजा करने वालों का तांता लगा रहता है।

लोक मान्‍यता : दशहरे में जरूर आते थे बजरंग बली 

लोग मानते हैं कि हर दशहरे की नवमी को बजरंगबली मां अंजना के साथ ननिहाल जरूर आते थे। सात दिनों बाद लौट जाते थे। इसी मान्यता के तहत सौ साल पहले रिविलगंज में बजरंगबली की हर साल नवमी को प्रतिमा स्थापित की जाने लगी और सात दिन बाद विसर्जित की जाने लगी।

सरयू नदी में विसर्जित होती हैं बजरंग बली की प्रत‍िमाएं

बजरंगबली ननिहाल में खूब घुमते-फिरते थे, इस कारण उनकी प्रतिमाएं गाजे-बाजे, हाथी-घोड़े और सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ 24 घंटे की नगर यात्रा के बाद सरयू किनारे श्रीनाथ बाबा मंदिर के तट पर विसर्जित की जाती हैं। इनके नाना गौतम ऋषि मंदिर के किनारे सरयू में प्रतिमाएं विसर्जित नहीं की जातीं, यहां से तीन किलोमीटर दूर श्रीनाथ बाबा मंदिर ले जाई जाती हैं। 

अखाड़ा संख्‍या एक के बजरंग बली का महत्‍व अध‍िक 

ज्ञात तौर पर सर्वप्रथम 1919 में रिविलगंज के अखाड़ा संख्या एक में बजरंंग बली की प्रतिमा स्थापित की गई थी। आज जिले भर में सौ से अधिक स्थानों पर बजरंगबली की इस तरह पूजा की जाती है। परंतु सर्वाधिक महत्व आज भी अखाड़ा संख्या एक के बजरंगबली का ही है।

2057 तक पूजा के लिए लगी है मुख्‍य यजमान की अर्जी 

यहां 2057 तक इनकी मुख्य पूजा करने वालों की अर्जी लगी हुई है। इन्हें हर मनोकामना पूरी करने वाला माना जाता है। अखाड़ा संख्या एक को पूजा करने का पहली बार लाइसेंस ब्रिटिश शासनकाल में 1932 में जारी किया गया था। 

महावीरी पूजा की चल रही भव्य तैयारी

1986 तक रिविलगंज में तीन अखाड़े थे। इनमें से दो अखाड़े बजरंगबली व एक मां दुर्गा की पूजा करते थे। इसके बाद अखाड़ों की संख्या बढ़ती गई और 10 अखाड़ों में पूजा की जाने लगी। तीन साल पहले एक अखाड़े का लाइसेंस निरस्त कर दिया गया, तब से नौ अखाड़ों में ही पूजा हो रही है। इनमें छह अखाड़े बजरंगबली के हैं।

छपरा से 10 किलोमीटर दूर है रिविलगंज 

ये सभी जिला मुख्यालय छपरा से 10 किमी दूर रिविलगंज प्रखंड में ही पांच से छह किलोमीटर के बीच में स्थापित हैं। यहां महावीरी पूजा को लेकर भव्य तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। तीन प्रतिमाओं का निर्माण अखाड़े के पंडाल के पास किया जा रहा है, अन्य तीन अखाड़ों में बजरंग बली की प्रतिमा खरीद कर मंगवाई जाएंगी। 

धार्मिक पर्यटन का केंद्र बन सकता है रिविलगंज

रिविलगंज अखाड़ा संख्या एक के अध्यक्ष गुंजन अवस्थी ने बताया कि नवमी के दिन से पूजा पंडाल में श्रद्धालुओं का सामूहिक सुंदर कांड पाठ देखते बनता है। पूरा प्रखंड हनुमानमय हो जाता है। विसर्जन जुलूस के दौरान तिल धरने की जगह नहीं बचती। विशेष तौर पर बने ठेले पर बजरंगबली विराजमान किए जाते हैं।

महावीरी झंडे से पट जाता है पूरा इलाका 

24 घंटे की यात्रा के दौरान महोत्सव का माहौल रहता है। पांच से छह किमी का क्षेत्र महावीरी झंडे से पट जाता है। हर ओर जय श्रीराम और बजरंगबली के जयकारे से गूंजता रहता है। यहां की अलौकिक परंपरा का प्रचार-प्रसार हो तो यह धार्मिक पर्यटन का प्रमुख केंद्र बन सकता है।     

  • रिविलगंज को बजरंगबली की ननिहाल मानते हैं लोग
  • सरयू तट पर नाना गौतम ऋषि का मंदिर विद्यमान
  • 1919 में पहली बार रिविलगंज के अखाड़ा नंबर एक में शुरू हुई बजरंगबली की पूजा
  • 1932 में ब्रिटिश शासनकाल में पूजा करने का पहली बार मिला लाइसेंस
  • 1986 तक थे मात्र तीन अखाड़े, आज रिविलगंज में नौ अखाड़े, छह में पूजे जाते बजरंगबली

बजरंगबली के वीर स्वरूप की होती पूजा

सारण जिले के सिर्फ रिविलगंज ही नहीं बल्कि अन्य जगहों पर भी बजरंगबली के वीर स्वरूप की पूजा की जाती है। कहीं बजरंगबली के कंधे पर विराजमान श्री राम व लक्ष्मण और पैर के नीचे दबा अहिरावण, कहीं हाथ में सुमेरू पर्वत उठाए बजरंगबली, पंचमुखी बजरंगबली या हाथ में गदा लिए बजरंगबली की प्रतिमाएं बनाई जाती हैं। 

2003 में लगाई थी अर्जी, इस बार मुख्य पूजा का मिला अवसर

रिविलगंज बाजार में पक्की ठाकुरबाड़ी के परिसर में अखाड़ा संख्या एक वाले बजरंगबली पर लोगों की अगाध श्रद्धा है। इन्हें हर मनोकामना पूरी करने वाला माना जाता है। यहां मुख्य पूजा का जिम्मा कोई एक व्यक्ति उठाते हैं, लंबी कतार है। आगामी 35 साल के लिए प्रतिमा निर्माण व पूजा अर्चना का खर्च वहन करने वालों के नाम तय हैं। 2057 में यह अवसर रिविलगंज बाजार स्थित केसी कालेज गली निवासी अरुण प्रसाद को मिला है।

कुल दो लाख रुपए होने हैं पूजा पर खर्च 

इसके लिए समिति के नाम से बैंक खाते में अग्रिम राशि जमा कराई जाती है। सूचना पट्ट पर हर साल की अर्जी लगाए श्रद्धालुओं के नाम अंकित हैं। इस बार 2003 में अर्जी लगाए अशोक प्रसाद मुख्य पूजा करेंगे। इन्होंने पुत्र की प्राप्ति की मनोकामना की थी। प्रतिमा बनाने वाले कारीगर ने 55 हजार रुपये लिए हैं। 20 हजार रुपये के फूल लगेंगे। कुल खर्च दो लाख रुपये होंगे।


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