'यात्री' का पटना में भी रहा ठौर, चाव से खाते थे आम
दरभंगा के छोटे से गांव तरौनी से निकलकर देश-दुनिया में अपनी पहचान बनाई
प्रभात रंजन, पटना। दरभंगा के छोटे से गांव तरौनी से निकलकर देश-दुनिया में अपनी पहचान बनाने वाले बाबा नागार्जुन का घुमक्कड़ स्वभाव उनकी पहचान बना। यही कारण है शुरुआती दौर में उन्होंने 'यात्री' नाम से भी लिखा। 30 जून 1911 को दरभंगा में जन्मे बाबा का असली नाम बैद्यनाथ मिश्र था। राहुल सांकृत्यायन की तरह यायावरी का शौक रखने वाले बाबा ने बौद्ध धर्म की शिक्षा प्राप्त करने के बाद अपने नाम में 'नागार्जुन' जोड़ा और इस नाम से प्रसिद्धि हासिल की।
पद्मश्री उषा किरण खान नागार्जुन को याद करते हुए कहती हैं, 'बाबा का पटना से गहरा लगाव रहा। जब मैं कॉलेज में पढ़ती थी तो बाबा पटना में भिखना पहाड़ी में रहते थे। उस समय वे मेरे लोकल गार्जियन की तरह थे। मेरी शादी के बाद पटना में मेरा आवास उनके लिए बेटी के घर की तरह रहा। वह पटना आते तो अकसर मेरा यहां ही रुकते। मेरे घर का मटन उनको पसंद था। वह कहते जरा तेजपत्ता वाला मटन बनाओ तो। इसके अलावा चूड़ा-मटर भी चाव से खाते। आम भी खूब पसंद था। आम का सीजन नहीं होता तो अमावट मांगते। वे नए लेखकों को प्रेरणा देते थे।' इमरजेंसी के दौरान जनकवि के रूप में उभरकर आए बाबा -
जेपी आंदोलन में साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु के साथ बाबा नागार्जुन का भी जुड़ाव रहा। आरंभ से विद्रोही तेवर रखने वाले बाबा ने जेपी आंदोलन के दौरान चौक-चौराहे और नुक्कड़ों पर कविताएं सुनाकर जनकवि के रूप में पहचान बनाई। उनको नजदीक से देखने वाले बिहार विधान परिषद के सदस्य डॉ. रामबचन राय कहते हैं, रेणु की प्रेरणा से वे कुछ समय के लिए आंदोलन का अंग बने। इमरजेंसी लगने के पहले ही बाबा जनता सरकार का उद्घाटन करने सिवान गए, जहां उन्हें गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया गया था। कुछ दिनों बाद उन्हें बक्सर जेल भेजा गया। तब बाबा की उम्र काफी हो गई थी और इसका असर उनकी याददाश्त पर पड़ने लगा था। हालांकि उनके शरीर में ऊर्जा काफी थी। जेल से छूटने के बाद बाबा सीपीआइ की विचारधारा से जुड़े और अपनी राह पर चलने लगे। इसके बाद वह पटना में लंबे दौर तक सक्रिय रहे। आर ब्लॉक चौराहे पर सीपीआइ के आंदोलनों में वह अक्सर बैठा करते थे। डाकबंगला चौराहे का कॉफी हाउस भी बाबा का प्रिय ठिकाना रहा। चेतना समिति की स्थापना में रहा योगदान
मैथिली साहित्य से जुड़ाव रखने वाली प्रेमलता मिश्रा बताती हैं कि नागार्जुन 1964 के आसपास महेंद्रू मोहल्ले में रहा करते थे। जेपी आंदोलन के दौरान बाबा की कविता नुक्कड़ों पर खूब सुनाई देती थी। वे नए लोगों को पढ़ने और लिखने को प्रेरित करते रहे। मैथिली भाषा और संस्कृति के लिए समर्पित चेतना समिति की स्थापना भी बाबा के मार्गदर्शन में हुई। विद्यापति भवन में भी बाबा ने कई बार कविताएं सुनाई।