सावन विशेष: बाबा गरीबनाथ करते हैं सबकी मनोकामना पूरी
मुजफ्फरपुर के बाबा गरीबनाथ मंदिर में देवघर के बाबा बैद्यनाथ मंदिर की ही तरह सावन की पहली सोमवारी के दिन आज काफी संख्या में श्रद्धालु भगवान शिव का जलाभिषेक करने पहुंच रहे हैं।
पटना [जेएनएन]। सावन का पवित्र महीना आज से शुरू हो गया है। इस महीने में भगवान शिव की विशेष पूजा अर्चना की जाती है, भोलेनाथ की पूजा सच्चे दिल से की जाए तो वो तुरत प्रसन्न होते हैं तो अपने भक्तों की हर मुराद पूरी करते हैं।
वैसे सावन में देवघर के बाबा वैद्यनाथ मंदिर में जलाभिषेक के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं ठीक वैसे ही मुजफ्फरपुर स्थित बाबा गरीबनाथ में भी भगवान शिव के जलाभिषेक के लिए बिहार के कोने-कोने से लोग पहुंचते हैं। मान्यता है कि सावन में बाबा गरीबनाथ भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं।
बिहार का देवघर है बाबा गरीबनाथ का मंदिर
सावन का महीना शुरू हो गया है और इसके साथ ही बाबा गरीबनाथ धाम की महत्ता भी बढ़ गई है। सावन के महीने में बाबा गरीबनाथ की पूजा-अर्चना के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। इस पावन महीने के हर सोमवार को सोनपुर के पहलेजा घाट से गंगा जल लाकर कांवड़िए बाबा गरीबनाथ की पूजा अर्चना करते हैं। झारखंड के बिहार से अलग होने के बाद बाबा गरीबनाथ मंदिर में देवघर के बाद सबसे अधिक श्रद्धालु आते हैं।
बाबा गरीबनाथ मंदिर को उत्तर बिहार के बाबा बैद्यनाथ के रूप में जाना जाने लगा है। यहां सालोभर पूजा-अर्चना के लिए शिवभक्तों की भीड़ लगी रहती है। सावन महीने में तो भक्तों का रेला ही उमड़ पड़ता है। यहां दूरदराज के लोग पूजा के लिए आते हैं।
मंदिर का इतिहास
मंदिर का काफी पुराना इतिहास है। ऐतिहासिक और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बाबा गरीबनाथ धाम का तीन सौ साल पुराना इतिहास रहा है। लेकिन मिले दस्तावेज के अनुसार 1812 ई. में इस स्थान पर छोटे मंदिर में बाबा की पूजा-अर्चना होती रही थी।
मान्यता है कि यहां के घने जंगल में सात पीपल के पेड़ थ। एक बार जंगल की सफाई के दौरान किसी मजदूर की कुदाल से कोई चीज टकराई। उसने देखा कि वहां से खून की धारा बह रही है। वह डरकर भाग गया और ये बातें दूसरों को बताईं। लोग दौड़े-दौड़े वहां आए। जब उन पेड़ों को काटा गया तो अचानक खून जैसे लाल पदार्थ निकलने के बाद विशालकाय शिवलिंग मिला।
उसके बाद जो उस जमीन का मालिक था उसे रात में बाबा ने स्वप्न दिया, जिसके बाद शिवलिंग की स्थापना कर वहां विधिवत पूजा-अर्चना की जाने लगी। मान्यता यह भी है कि एक बेहद ही गरीब आदमी को अपनी बेटी का विवाह करना था और उसके लिए घर में कुछ भी नहीं था, वह बाबा के मंदिर में गया और रोते हुए कहा-बाबा कैसे होगी मेरी बेटी की शादी?
इसके लिए उसने बाबा का जलाभिषेक किया और चिंतामग्न था, कहते हैं उस गरीब आदमी की श्रद्धाभक्ति से प्रसन्न होकर शिव ने उसकी परेशानी दूर कर दी और बेटी की शादी के सारे सामानों की आपूर्ति अपने-आप हो गई। तबसे से लोगों के बीच मंदिर का नाम बाबा गरीबनाथ धा्म के रूप में जाना जाने लगा।
मंदिर की विशेषता
ऐसी मान्यता है कि बाबा गरीबनाथ सबकी मनोकामना पूर्ण करते हैं। जो भी भक्त सच्चे मन से बाबा के दरबार में आता है, खाली हाथ नहीं लौटता। सावन व महाशिवरात्रि सहित विशेष अवसरों पर यहां भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है। बाबा गरीबनाथबाबा की प्रसिद्धि दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है।
कहा-प्रधान पुजारी ने
यहां मुजफ्फरपुर क्या राज्य के विभिन्न जिले और सुदूर प्रांतों से भी लोग बाबा की पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। सावन में हर साल श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।
पं. विनय पाठक, प्रधान पुजारी
यहां पूजा-अर्चना के साथ-साथ शुभ संस्कारों के लिए भी दूर दराज से लोग आते हैं। मंदिर के प्रति लोगों की अटूट आस्था है। सामाजिक कार्यो में भी मंदिर प्रबंधन की सक्रिय भागीदारी होती है।
- पं. बैद्यनाथ पाठक, पुजारी
सावन माह में पार्थिव लिंग की पूजा का है विशेष महत्व
शिव पुराण में भगवान शिव के पार्थिव लिंग की पूजा के बारे में विस्तार से बताया गया है। कहते हैं कि पार्थिव लिंग का पूजन करने वाले भक्तों पर सदैव शिव कृपा बनी रहती है। श्रावण मास को शिव का माह माना जाता है। इसलिए इस माह में पार्थिव लिंग बनाकर पूजन का विशेष पुण्य शिवभक्तों को मिलता है।
भगवान शिव प्रकृति के देवता हैं, इसलिए वह प्राकृतिक वस्तुओं के चढ़ाने से प्रसन्न हो जाते हैं। उनकी पूजा में कोई आडंबर नहीं होता। वह तो बस प्रेम के भूखे हैं और भोले इतने हैं कि हर भावना को ही प्रेम समझ बैठते हैं। दूसरे देवी-देवताओं की अपेक्षा शिव शक्ति को प्रसन्न करना अधिक आसान है।
कैसे करें भगवान शिव की पूजा
सबसे पहले कुष्मांड ऋषि के पुत्र मंडप ने पार्थिव पूजन किया था। भगवत प्रेरणा से उन्होंने जगत के कल्याण के लिए पार्थिव लिंग बनाकर शिवार्चन किया। पार्थिव शिवलिंग बनाने में इस बात का ध्यान रखें कि यह 12 अंगुल से ऊंचा नहीं हो। इससे अधिक ऊंचा होने पर पार्थिव लिंग पूजन का पुण्य प्राप्त नहीं होता है। इसे बनाने के बाद ‘ऊं नम: शिवाय’ मंत्र से शिवार्चना करनी चाहिए।