जदयू के दही चूड़ा भोज में पहुंचे अशोक चौधरी, कह दी ये बड़ी बात
सियासी दही-चूड़ा भोज के दौरान बिहार कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अशोक चौधरी ने एक बड़ा बयान दिया है। उनके बयान के बाद सियासी गलियारों में कई तरह के कयास लगाये जाने लगे हैं।
पटना [जेएनएन]। मकर संक्रांति के मौके पर आयोजित चूड़ा-दही का भोज बिहार में आने वाले दिनों में राजनीतिक उथल-पुथल के संकेत दे गया। जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह द्वारा आयोजित भोज में राजद और कांग्रेस के किसी नेता को न्योता नहीं था, परन्तु कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डा. अशोक चौधरी को अलग से आमंत्रित किया गया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के वापस जाने के बाद चौधरी इस भोज में अपने दो सहयोगियों के साथ पहुंचे। उन्होंने कहा कि राजनीति में संभावना का खेल हमेशा जारी रहता है।
चौधरी पिछले कुछ महीनों से लगातार समाचार में हैं। कांग्रेस का साथ छोड़ उनके जदयू में शामिल होने की चर्चा जोरों पर रही है। यह पूछे जाने पर कि अब खरमास खत्म हो गया है, क्या नया बदलाव देखने को मिलेगा, उन्होंने कहा कि बदलाव की हमेशा संभावना बनी रहती है।
वशिष्ठ नारायण सिंह के आवास पर हुए इस भोज में वह कांग्रेस विधान पार्षद दिलीप चौधरी और कांग्रेस विधायक संजय तिवारी उर्फ टुन्ना तिवारी के साथ शामिल हुए। वशिष्ठ नारायण सिंह ने इस बीच कहा कि खरमास खत्म हो गया है, अब शुभ दिन शुरू हो गए हैं।
हम किसी दल को तोडऩे में विश्वास नहीं रखते, परन्तु अगर कोई नेता खुद से हमारी नीतियों से प्रभावित होकर हमारे दल में आना चाहे तो हम उसका अपनी पार्टी में स्वागत करेंगे। उन्होंने कहा कि समाज और सरकार में सामंजस्य है और यह विकास की धारा को आगे बढ़ाएगा। हमारी नीतियों में विश्वास रखने वाले हमारे साथ आएंगे।
वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष कौकब कादरी ने कहा कि जदयू ने चूड़ा-दही भोज में पार्टी के नेताओं को नहीं बुलाकर अपनी संर्कीण मानसिकता का परिचय दिया है। इससे यह साफ हो गया है कि जदयू मौका परस्त है।
वहीं अशोक चौधरी के जदयू के भोज में शामिल होने के बाद यह कहा जाने लगा है कि भले ही नीतीश कुमार और उनकी पार्टी महागठबंधन से अलग हो गई है। लेकिन अशोक चौधरी का प्रेम अभी भी जदयू के लिए बना हुआ है। यह पहली बार नहीं है, जब इस तरह की कोई बात हुई हो। पटना विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह के दौरान भी मंच से नीतीश कुमार ने अशोक चौधरी का नाम लिया था।
साथ ही मकर संक्रांति से एक दिन पहले 13 जनवरी को कांग्रेस नेता सदानंद सिंह के आवास पर पार्टी नेताओं की बैठक में भी अशोक चौधरी नहीं पहुंचे थे। कुछ समय पहले भी ऐसे घटनाक्रम सामने आये थे, जिससे यह लग रहा था कि अशोक चौधरी का नीतीश कुमार और उनकी पार्टी की ओर झुकाव है। जिस तरह से ये सियासी घटनाएं सामने आ रही है, कयास लगाये जा रहे हैं कि बिहार की राजनीति में एक बड़ा फेरबदल हो सकता है।