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करगिल विजय दिवस विशेष: 'शहादत' के 11 दिनों बाद जिंदा लौटे थे शत्रुघ्न, जानिए कहानी

करगिल युद्ध में उन्‍हें शहीद मान सेना ने श्रद्धांजलि दे दी। लेकिन, पाकिस्तानी गोलीबारी के बीच शत्रुघ्न सिंह जिंदा लौट आए। राष्ट्रपति ने उन्‍हें वीर चक्र से सम्मानित किया।

By Amit AlokEdited By: Published: Thu, 26 Jul 2018 09:23 AM (IST)Updated: Thu, 26 Jul 2018 10:24 PM (IST)
करगिल विजय दिवस विशेष: 'शहादत' के 11 दिनों बाद जिंदा लौटे थे शत्रुघ्न, जानिए कहानी
करगिल विजय दिवस विशेष: 'शहादत' के 11 दिनों बाद जिंदा लौटे थे शत्रुघ्न, जानिए कहानी

पटना [जितेंद्र कुमार]। करगिल की लड़ाई में सेना ने पाकिस्‍तान पर जीत दर्ज की तो बिहार के इस सैनिक ने मौत पर विजय पाई थी। सेना ने उसे शहीद मान लिया था, लेकिन पाकिस्‍तानी गोलीबारी को मात देते हुए 11 दिनों बाद जब वह जिंदा लौट आया। जिंदगी के लिए मौत से लड़ते हुए उसने कभी बर्फ को कपड़े से भिगोकर सूखते हलक को तर किया तो कभी पैर में गोली लगने के बाद बने घाव को अपने पेशाब से भरने की कोशिश करता रहा। बाद में उसे वीर चक्र देकर सम्मानित किया गया।

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तब लेह में थे शत्रुघ्‍न सिंह
हम बात कर रहे हैं बिहार रेजिमेंट के शत्रुघ्न सिंह की। मूल रूप से बलिया जिले के दुधौला गांव के निवासी शत्रुघ्न अब सेना में सूबेदार हैं। करगिल युद्ध के दौरान शत्रुघ्न की ड्यूटी लेह में थी। 17 मई 1999 को वे छुट्टी लेकर घर लौट रहे थे। वे अभी श्रीनगर ही पहुंचे थे कि सूचना मिली कि करगिल में पाक सैनिकों ने घुसपैठ कर ली है और उनकी यूनिट लड़ाई में जा रही है।

छुट्टी रद करा गए कारगिल
शत्रुघ्न वापस लौटे। यूनिट कमांडर कर्नल ओपी यादव से मिलकर छुट्टी रद कराई और लड़ाई में जाने का प्रस्ताव दिया। प्रस्ताव मंजूर हो गया और 21 मई को करगिल के बटालिक सेक्टर में पाक सैनिकों पर हमले की योजना बनी।

मेजर एम. सर्वाणन के नेतृत्व में नायक शत्रुघ्न सिंह, गणेश प्रसाद यादव, सिपाही प्रमोद कुमार और ओमप्रकाश गुप्ता रेकी पर निकल गए। 27 मई की रात में हमला करना था लेकिन किसी कारण ये टल गया। 28 मई को बटालिक पोस्ट पर कब्जे के लिए दल ने कूच किया ही था कि गोलीबारी शुरू हो गई।

सेना ने मान लिया शहीद
इस लड़ाई में मेजर एम. सर्वाणन, नायक गणेश प्रसाद यादव, सिपाही प्रमोद कुमार और ओम प्रकाश गुप्ता शहीद हो गए। शत्रुघ्न को भी दाएं पैर में गोली लगी और वे बेहोश हो गए। भारतीय सेना को बाकी शहीदों के शव मिले लेकिन शत्रुघ्न का अता-पता नहीं चला। सेना की ओर से शहीदों की पहली सूची में शत्रुघ्न के नाम की घोषणा कर दी गई। श्रद्धांजलि भी दे दी गई मगर नियति को कुछ और मंजूर था।

चाकू से निकाली गोली, बर्फ से बुझाई प्यास

बर्फीली चोटी पर जहां हर सकेंड गोली और बम की आवाजें दिल दहला रही थीं, शत्रुघ्न लगभग बेहोशी की हालत में पड़े रहे। अगले दिन होश आया तो खुद को भारतीय और पाकिस्तानी सेना के बीच बर्फ में फंसा हुआ पाया। उन्होंने पैर में लगी गोली को चाकू से निकाला और खून रोकने के लिए कपड़ा बांध दिया।

पास के किट बैग में थोड़े ड्राई फ्रूट्स और चॉकलेट थे जिसके सहारे वह भूख से लड़ते रहे। प्यास लगी तो कपड़े को बर्फ से भिगो दिया और उसे चूसकर गला तर किया।

तीन किलोमीटर रेंगकर लौटे कैम्प

इस बीच तीन दिन बीत गए। पाक सैनिक उनके करीब पहुंच रहे थे। शत्रुघ्न सिंह ने अपनी मशीनगन से गोलियों की बौछार कर दी जिसमें पाकिस्तानी सैनिक अब्दुल्ला अयूब मारा गया। इसने शत्रुघ्न को हिम्मत दी और उन्होंने वापस भारतीय कैम्प में लौटने का फैसला लिया।

बर्फ और पत्थरों पर करीब तीन किलोमीटर तक रेंगते हुए वह 11 दिनों बाद भारतीय सेना के पोस्ट पर वापस लौट आए। सेना ने हेलीकॉप्टर से उन्हें अस्पताल पहुंचाया। शत्रुघ्न सिंह को नायक से सूबेदार में प्रोन्नति दी गई। राष्ट्रपति ने वीर चक्र से सम्मानित किया।


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