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पटना के कंगन घाट के पास गंगा किनारे है एक और ताज महल

चौक थाना से सटी चारदीवारी के अंदर मुमताज की बहन मल्लिका की मजार गुमनामी में है पड़ी। शा

By JagranEdited By: Published: Sun, 21 Oct 2018 08:57 PM (IST)Updated: Sun, 21 Oct 2018 09:20 PM (IST)
पटना के कंगन घाट के पास गंगा किनारे है एक और ताज महल
पटना के कंगन घाट के पास गंगा किनारे है एक और ताज महल

चौक थाना से सटी चारदीवारी के अंदर मुमताज की बहन मल्लिका की मजार गुमनामी में है पड़ी

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शाहजहां का पटना सिटी से रहा नजदीकी रिश्ता

अनिल कुमार, पटना सिटी: एक कोख से पैदा होने के बाद भी सबका नसीब अलग-अलग होता है। बस, समझ लीजिए, मुमताज व मल्लिका की तकदीर में आकाश-पाताल जैसा अंतर है। एक बहन को ताज मिला तो दूसरी बहन को सिर्फ अंधियारा। संगमरमरी ताजमहल से सभी वाकिफ हैं। आगरा के दूसरे ताजमहल के बारे में शायद कम ही लोगो को पता होगा कि पटना साहिब के तख्त श्री हरि मंदिर से लगभग 100 गज की दूरी पर कंगन घाट में गंगा किनारे चारदीवारी में है एक और ताजमहल।

बेनजीर हुस्न की मल्लिका मुमताज महल की यह किस्मत ही थी कि उससे शहंशाह-ए-¨हद शाहजहां को प्यार हो गया और वो उनकी बेगम बन गई। बेगम मुमताज महल से बेपनाह मोहब्बत करने वाले मुगल बादशाह ने आगरा में यमुना के किनारे उनकी मजार पर एक नायाब इमारत की तामीर करा दी जिसे दुनिया ताजमहल के नाम से जानती है। आज भी विश्व के कोने-कोने से लाखों लोग इस शाही इश्क की यादगार को देखना नहीं भूलते।

वहीं मुमताज की सगी बहन मल्लिका ऊर्फ हमीदा बानो की किस्मत तो देखिए राजधानी के चौक थाना से महज 50 गज की दूरी पर कंगन घाट में गंगा के किनारे एक व्यवसायी की चहारदीवारी के अंदर उसकी मजार अंधेरे में गुमनामी में पड़ी है। मल्लिका बानो की मजार की जानकारी के अभाव में कम ही लोग आ पाते हैं। क्षेत्र के बुजुर्ग आज भी बताते हैं कि मल्लिका और सईफ की मोहब्बत के भी चर्चे काफी थे, लेकिन दुर्भाग्यवश सूबेदार सईफ खान अपनी बेगम के स्मारक को शाहजहां के ताजमहल जैसा रूप नहीं दे सके।

इतिहासकारों ने बताया कि शाहजहां का पटना सिटी से नजदीकी रिश्ता रहा है। गद्दीनशीन होते ही शाहजहां ने अपने साढ़ू सईफ खान को बिहार का सूबेदार बना दिया था। सूबेदार सईफ खान ने झाऊगंज में गंगा तट पर विशाल मस्जिद व मदरसे का निर्माण कराया जो वर्तमान में मदरसा मस्जिद के नाम से जाना जाता है। उन्होंने 40 खंभोंवाले हॉल का भी निर्माण कराया जो चहालसलूम के नाम से प्रसिद्ध हुआ। गुलजारबाग के समीप शाही ईदगाह का भी निर्माण कराया। पर अपनी मोहब्बत को यादगार रूप नहीं दे सके।


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