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अमित शाह के बिहार दौरे से NDA में ऑल इज वेल का दावा, पर अभी भी कम नहीं चुनौतियां

अमित शाह के बिहार दौरा तथा नीतीश कुमार से मुलाकात ने यह संदेश दिया कि रालग में सब ठीक है। मगर भाजपा के सामने कई चुनौतियां भी हैं। क्‍या हैं ये चुनौतियां, जानिए यहां।

By Amit AlokEdited By: Published: Sun, 15 Jul 2018 08:38 AM (IST)Updated: Mon, 16 Jul 2018 11:29 PM (IST)
अमित शाह के बिहार दौरे से NDA में ऑल इज वेल का दावा, पर अभी भी कम नहीं चुनौतियां
अमित शाह के बिहार दौरे से NDA में ऑल इज वेल का दावा, पर अभी भी कम नहीं चुनौतियां

पटना [एसए शाद]। जैसी कि उम्मीद थी, अमित शाह के दौरे ने बिहार भाजपा में नई ऊर्जा डाल दी। पार्टी के छोटे कार्यकर्ताओं से लेकर बड़े नेता चुनावी मोड में आ गए। 2019 लोकसभा चुनाव के अभियान की एक प्रकार से बिहार में अमित शाह ने आगाज कर दी। नीतीश कुमार के साथ दो राउंड की बैठक ने यह संदेश देने का प्रयास किया कि एनडीए में 'आल इज वेल'  की स्थिति है। मगर भाजपा के लिए मिशन 2019 की डगर इतनी आसान भी नहीं है। सामने कई चुनौतियां भी हैं।

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भाजपा को इस बात का एहसास है कि मुकाबला मुख्य रूप से राजद से है। बिहार ऐसा राज्य है जहां सबसे बड़ा दल विपक्ष में है, ठीक उसी प्रकार जैसे कर्नाटक में सबसे बड़ा दल होते हुए भी भाजपा विपक्ष में है। हाल में हुए तीन उपचुनावों में जीत से राजद का मनोबल बढ़ा है। भाजपा के सहयोगी दल जदयू को जहानाबाद और जोकीहाट विधानसभा उपचुनाव में तो वहीं भाजपा को अररिया लोकसभा उपचुनाव में इसने पराजित किया है। भाजपा नेताओं की मानें तो नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार की लोकप्रियता के आगे विपक्ष के सारे प्रयास बेकार जाएंगे। साथ ही भाजपा को रामविलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा जैसे नेताओं का साथ है। ऐसे में भाजपा को पिछले लोकसभा चुनावों से बेहतर नतीजे की उम्मीद है।

2009 लोकसभा चुनाव में भाजपा और जदयू ने मिलकर 32 सीटें हासिल की थीं। जदयू के एनडीए से बाहर होने की सूरत में 2014 लोकसभा चुनाव में भाजपा ने लोजपा और रालोसपा के साथ मिलकर प्रदेश की 40 में से 31 सीटों पर कब्जा जमाया था। अब जब इस बार नीतीश कुमार, रामविलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा-तीनों ही भाजपा के साथ हैं तो जाहिर सी बात है पहले से अधिक सीटें जीतने की उम्मीद है। अमित शाह ने बिहार दौरे में अपने संबोधन में कहा भी था-'हम प्रदेश में सभी 40 सीटें जीतेंगे।'

भाजपा के पास एक प्लस प्वाइंट यह भी है कि 'एंटी इनकंबेंसी' के तहत अगर जनता में हलकी सी भी नाराजगी होगी तो इसका ठीकरा वह राजद पर फोड़ सकती है, क्योंकि वर्तमान सरकार में पहले 20 माह तक राजद ही पार्टनर था। भाजपा तो गत 12 माह से सरकार में है।

वोट प्रतिशत का आंकड़ा भी भाजपा के पक्ष में है। फरवरी, 2005 के विधानसभा चुनाव में 11 प्रतिशत के वोट शेयर के बाद से इसका वोट प्रतिशत बढ़ा ही है। 2009 के लोकसभा चुनाव में जहां भाजपा का वोट शेयर 14 प्रतिशत था, वहीं 2014 लोकसभा चुनाव में दोगुना से अधिक 29.9 फीसद था।

पर्यवेक्षकों का मानना है कि भाजपा की तीनों सहयोगी पार्टियां बिहार केंद्रित हैं और ऐसे में इनके लिए लोकसभा से अधिक महत्वपूर्ण विधानसभा चुनाव है, खासकर जदयू के लिए। लोकसभा चुनाव के कुछ ही माह बाद 2020 में विधानसभा चुनाव होने हैं।

एनडीए में जदयू 70 विधायकों के साथ सबसे बड़ी पार्टी है। जदयू ने 8 जुलाई को दिल्ली में अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में एक प्रस्ताव पारित कर लोकसभा और विधानसभा चुनाव एकसाथ कराने पर अपनी सैद्धांतिक रजामंदी भी दे दी है। इसका एक संदेश यह भी माना जा रहा है जदयू विधानसभा चुनाव के सारे तकाजों को लोकसभा चुनाव के लिए होने वाले आपसी फैसले के साथ ही पूरा कर लेना चाहता है। इन तकाजों में नेतृत्व से लेकर सीटों की संख्या तक को शामिल किया जा सकता है।

जहां तो लोकसभा चुनाव के लिए सीटों के तालमेल की बात है तो इस चुनौती से समय पर निपट लेने की बात न केवल भाजपा बल्कि सहयोगी दलों की ओर से भी कही जा रही है। मगर बीच-बीच में नेताओं के बयान भी भाजपा पर दबाव बढ़ाने लगते हैं। प्रदेश की 40 में से 22 सीटें भाजपा, 6 सीटें लोजपा और 3 सीटें रालोसपा के पास हैं।

भाजपा की कोशिश होगी कि जदयू को उसकी अपेक्षा के अनुसार सीटें दी जाए। इसके लिए भाजपा को ही ऐसा कोई फार्मूला निकालना होगा जिसपर सभी सहयोगी दल एकमत हो जाएं। भाजपा के खिलाफ प्रदेश में जो गठबंधन आकार ले सकता है, उसमें राजद और कांग्रेस के अलावा वाम दल भी शामिल रहेंगे। वाम दलों में भाकपा(माले) पहली बार राजद गठबंधन में शामिल होगा।

वहीं शरद यादव और उनके समर्थकों द्वारा बनाया गया लोकतांत्रिक जनता दल भी राजद गठबंधन का हिस्सा रहेगा। बिहार में लोकसभा चुनाव के लिए एजेंडा तय करना भी भाजपा के लिए महत्वपूर्ण टास्क होगा। प्रदेश में 1996 से भाजपा और जदयू साथ हैं और तालमेल में अबतक जदयू ही एजेंडा तय करता रहा है। बीच में केवल 2014 लोकसभा चुनाव और फिर 2015 विधानसभा चुनाव में भाजपा ने चुनावी एजेंडा तय किया क्योंकि जदयू इसके साथ नहीं था।

भाजपा नेताओं के मुताबिक, आने वाले दिनों में पार्टी को विपक्ष की हर चाल पर नजर रखने के साथ-साथ संगठन को धार देने पर भी जोर देना होगा। इस क्रम में हर पंचायत में शक्ति केंद्र के गठन की पहल पार्टी को बेहतर रिजल्ट देगी। पार्टी नेतृत्व को यह सुनिश्चित भी करना होगा कि बीमार चल रहे राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद के पक्ष में सहानुभूति फैक्टर नहीं बन पाए।

विभिन्न चुनावों में वोट शेयर(प्रतिशत में)

राजद  

2005 फरवरी विधानसभा      --25.07

2005 नवंबर विधानसभा       --23.45

2009 लोकसभा               --20

2010 विधानसभा              --18.4

2014 लोकसभा               --20.10

2015 विधानसभा              --18.4

भाजपा 

2005 फरवरी विधानसभा    -- 11

2005 नवंबर  विधानसभा    --15.65

2009 लोकसभा             --14

2010 विधानसभा            --16.64

2014 लोकसभा             -- 29.9

2015 विधानसभा            -- 24.4

जदयू

2005 फरवरी विधानसभा      -- 14.55

2005 नवंबर विधानसभा       --20.46

2009 लोकसभा               --24

2010 विधानसभा              --18.84

2014 लोकसभा               --15.80

2015 विधानसभा             --16.80

पिछले दो लोकसभा चुनावों के नतीजे

पार्टी         2009           2014

भाजपा        12             22

जदयू          20             02

राजद          04             04

लोजपा        --             06

रालोसपा      --             03

कांग्रेस        02              02

राकांपा        --              01

निर्दलीय      02            -- 


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