बिहार में 15 सालों बाद क्रिकेट को मिला नया जीवन, खुशी से खिल उठे चेहरे
सुप्रीम कोर्ट के बीसीसीआई में ढांचागत सुधारों को लेकर जस्टिस आर एम लोढ़ा समिति की सिफारिशें को मंजूर करने के साथ ही बिहार क्रिकेट को नया जीवन मिल गया है।
पटना [वेब डेस्क]। बिहार में अब क्रिकेट के खिलाड़ियों को अपनी पहचान बनाने के लिए किसी दूसरे राज्य का मुंह नहीं देखना पड़ेगा। बिहार के क्रिकेटर अब तक पड़ोसी राज्यों के भरोसे थे, जहां उन्हें ज्यादा मौका नहीं मिल पाया और क्रिकेट के खिलाड़ी चाहकर भी अपनी प्रतिभा को साबित नहीं कर पाए। लेकिन अब बिहार के क्रिकेटर भी अपनी प्रतिभा दिखा पाएंगे और रणजी खेल पाएंगे।
सुप्रीम कोर्ट के बीसीसीआई में ढांचागत सुधारों को लेकर जस्टिस आर एम लोढ़ा समिति की सिफारिशें को मंजूर करने के साथ ही बिहार क्रिकेट को नया जीवन मिल गया है। 15 साल से बीसीसीआई के दायरे से बाहर चल रहा बिहार क्रिकेट एसोशिएशन अब दूसरे क्रिकेट संघ की तरह वोट डालने और रणजी खेल सकेंगे।
राज्य का ‘बिहार क्रिकेट एसोशिएशन’ को सुप्रीम कोर्ट के द्वारा बीसीसीआई की मान्यता मिली है। हालांकि मान्यता मिलने के साथ ही राज्य के बोर्ड अध्यक्ष अब्दुल बारी सिद्दीकी को पद छोड़ना होगा, क्योंकि लोढ़ा समिति में एक व्यक्ति एक पद का उल्लेख है। सिद्दकी बिहार सरकार में मंत्री हैं इसलिए उन्हें किसी एक पद को छोड़ना होगा।
बीसीए के सचिव मृत्युंजय तिवारी ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब बिहार क्रिकेट एक बार फिर पटरी पर लौटेगी। बिहार के क्रिकेटरों को अब दूसरे राज्यों के तरफ नहीं जाना होगा। बीसीसीआई के सदस्य बनने के बाद अब हमें शेयर भी मिलेगा इससे पटना का मोईन उल हक स्टेडियम भी बेहतर हो सकेगा।
वहीं राज्य के बोर्ड अध्यक्ष अब्दुल बारी सिद्दीकी ने संकेत दिए हैं कि लोढ़ा समिति में एक व्यक्ति एक पद के उल्लेख को मानते हुए वे बिहार के क्रिकेट के लिए अध्यक्ष का पद छोड़ने को तैयार हैं।