Move to Jagran APP

छह साल की बच्ची की गवाही- गोद में बैठाकर गलत काम करते थे अंकल, मिली ये सजा

56 साल के इंडियन अॉयल कारपोरेशन के तत्कालीन वरीय प्रबंधक महेंद्र प्रताप सिंह पर लगे छह साल की बच्ची से यौनशोषण का आरोप सही पाए जाने के बाद 10 साल की सजा सुनाई गई।

By Kajal KumariEdited By: Published: Sat, 24 Feb 2018 12:12 PM (IST)Updated: Sat, 24 Feb 2018 08:34 PM (IST)
छह साल की बच्ची की गवाही- गोद में बैठाकर गलत काम करते थे अंकल, मिली ये सजा
छह साल की बच्ची की गवाही- गोद में बैठाकर गलत काम करते थे अंकल, मिली ये सजा
पटना [जेएनएन]। छह वर्षीया बच्ची के साथ यौन शोषण के मामले में पॉक्सो की विशेष अदालत ने शनिवार को इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आइओसी) के पूर्व मुख्य प्रबंधक 56 वर्षीय महेन्द्र प्रताप सिंह को 10 वर्ष के सश्रम कारावास की सजा सुनाई। वह छह वर्षीय बच्‍ची को गोद में बैठाकर यौन शोषण करता था। बच्‍ची ने यब बात अपने पिता को बताई थी।
आरोपित को पॉक्सो एक्ट की धारा चार के तहत शुक्रवार को दोषी पाया गया था। पॉक्सो के विशेष न्यायाधीश रविन्द्र नाथ त्रिपाठी ने आरोपित पर 50 हजार रुपये अर्थदंड भी लगाया है। आदेश के अनुसार 50 हजार में से 40 हजार रुपये पर पीडि़ता का हक होगा।
अदालत ने फैसले की एक प्रति बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकार को भेजने का निर्देश दिया ताकि पीडि़ता को 'बिहार पीडि़त प्रतिकर योजना 2014' के तहत तीन लाख रुपये मुआवजा मिल सके।
अदालत ने अपने निर्णय में कहा कि अपराध के अनुसार ही अपराधी को दंड मिलना चाहिए। दंड में उदारता अपराधी के मनोबल को बढ़ाता है। इससे न्याय प्रशासन से विश्वास उठेगा। सत्य से अदालत आंख नहीं मूंद सकती। मामले में अभियोजन की ओर से पॉक्सो के विशेष लोक अभियोजक सुरेश चन्द्र प्रसाद ने अदालत से उम्रकैद की सजा देने का अनुरोध किया। सूचक की ओर से पटना उच्च न्यायालय के अधिवक्ता संजय ने अपना पक्ष रखा।
अभियुक्त की ओर से अधिवक्ता राम विनय सिंह ने अदालत से अनुरोध किया कि यह अपराध अभियुक्त का पहला अपराध है। सिंह ने अदालत से अनुरोध किया कि अपराध की प्रकृति को देखते हुये अभियुक्त को कम से कम अवधि का दंड दिया जाए।
इससे पूर्व शुक्रवार को अदालत ने आरोपित को दोषी पाते हुये अपने निर्णय में कहा था कि मामले की अनुसंधानकर्ता रंजिता सिन्हा ने पीडि़त बच्ची का 164 का बयान नहीं करवाया। ना ही उसका मेडिकल टेस्ट कराया। यह अनुसंधानकर्ता का व्यक्तिगत निर्णय है।
यह अनुसंधानकर्ता का आलस्य और लापरवाही है। उन्हें मुकदमे की संवेदनशीलता से कोई सरोकार नहीं था। लेकिन अनुसंधानकर्ता की लापरवाही का लाभ अभियुक्त को नहीं दिया जा सकता। ज्ञात हो कि आरोपित महेंद्र पड़ोस में रहने वाली बच्ची को फुसलाकर गोदी में उठा यौन शोषण करता था। जब उसके पिता को जानकारी मिली तब 2 अप्रैल 2013 को उसने महिला थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई।

Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.