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बिहार में सरकारी शिक्षा के क्षेत्र में काम करेंगी स्टार्टअप कंपनियां, छात्रों को देनी होगी इसकी फीस

Higher Education in Bihar विशेषज्ञों के सुझाव पर शिक्षा विभाग गंभीर केंद्र सरकार से सहमति मिलने पर शुरू होगा काम यदि विशेषज्ञों के सुझावों पर अमल हुआ तो स्टार्टअप कंपनियों का पहला प्रयोग उच्च शिक्षा के क्षेत्र में होगा

By Shubh Narayan PathakEdited By: Published: Mon, 19 Jul 2021 08:39 AM (IST)Updated: Mon, 19 Jul 2021 08:39 AM (IST)
बिहार में सरकारी शिक्षा के क्षेत्र में काम करेंगी स्टार्टअप कंपनियां, छात्रों को देनी होगी इसकी फीस
बिहार में शिक्षा में बड़े बदलाव की तैयारी। प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

पटना, राज्य ब्यूरो। बिहार में शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक बदलाव लाने की जतन में जुटी राज्य सरकार अब बेहतर परिणाम देने वाली स्टार्टअप कंपनियों को मौका देने पर विचार कर रही है। यदि विशेषज्ञों के सुझावों पर अमल हुआ तो स्टार्टअप कंपनियों का पहला प्रयोग उच्च शिक्षा के क्षेत्र में होगा। विश्वविद्यालयों में पीपीपी (पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप) मोड में कक्षाएं आयोजित की जाएंगी। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली निजी क्षेत्र की कंपनियां इसमें साझीदार होंगी, जो बेहतर और उपयोगी पाठ्य-सामग्री उपलब्ध कराएंगी। इससे सरकारी विश्‍वविद्यालयों में स्‍तरीय शैक्षणिक माहौल तो बनेगा, लेकिन छात्र-छात्राओं पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा। इसकी लागत से विद्यार्थियों से वसूल की जा सकती है।

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विश्‍वविद्यालयों में पीपीपी मोड पर चलेंगी कक्षाएं

गौरतलब है कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी विश्वविद्यालयों में पीपीपी मोड में कक्षाएं आयोजित करने का प्रविधान किया गया है। शिक्षा विभाग के एक अधिकारी के मुताबिक स्टार्टअप कंपनियों को लेकर अभी कोई फैसला नहीं लिया गया है। हालांकि, यदि बाहरी एजेंसियां शिक्षा में गुणात्मक बदलाव और विकास के लिए बेहतर कार्य कर रही है तो उन्हें शिक्षा व्यवस्था से जोडऩे में कोई हर्ज नहीं। यह राज्य की नई पीढ़ी के हित में होगा।

तीन-चौथाई विद्यार्थियों से होगी फीस की वसूली

शिक्षा विभाग के मुताबिक, केंद्र सरकार ने अगले शैक्षणिक सत्र से निजी क्षेत्र की कंपनियों से उच्च शिक्षा में मदद लेने का संकेत दिया है। यदि ऐसा हुआ तो विश्वविद्यालयों में एक स्मार्ट क्लास होगा। इसके साथ ही विद्यार्थियों को यह सुविधा आनलाइन भी उपलब्ध कराई जाएगी। जहां सभी विषयों के ख्यातिलब्ध विशेषज्ञों की पाठ्य सामग्री दी जाएगी। सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े बच्चों को मौका दिया जाएगा, जबकि बाकी बच्चों से फीस ली जाएगी। फीस का निर्धारण निजी कंपनियों की सहमति से किया जाएगा। अनुमान है कि तीन चौथाई विद्यार्थियों से फीस की वसूली होगी और एक चौथाई को मुफ्त में शिक्षा मिलेगी।


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