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बिहारः नीतीश कुमार ने रसोईघर बदलने की करली तैयारी, अंग्रेजों के जमाने के जेलर पहले ही गए हैं बदल

अंग्रेजों के जमाने के जेलर कब के बदल गए। फिर भी उनकी कुछ निशानियां बची हुई हैं। उन्हीं में से एक है-रसोई घर। सरकार अब इसे बदलने जा रही है। ताकि साफ माहौल में खाना बने। कैदियों की सेहत ठीक रहे।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Thu, 10 Jun 2021 05:31 PM (IST)Updated: Thu, 10 Jun 2021 05:31 PM (IST)
बिहारः नीतीश कुमार ने रसोईघर बदलने की करली तैयारी, अंग्रेजों के जमाने के जेलर पहले ही गए हैं बदल
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार। जागरण आर्काइव। -

राज्य ब्यूरो, पटना: अंग्रेजों के जमाने के जेलर कब के बदल गए। फिर भी उनकी कुछ निशानियां बची हुई हैं। उन्हीं में से एक है-रसोई घर। सरकार अब इसे बदलने जा रही है। ताकि साफ माहौल में खाना बने। कैदियों की सेहत ठीक रहे। रसोई घर के साथ-साथ खाना बनाने, बांटने और भोजन करने वाले बर्तन भी बदलने की तैयारी चल रही है। राज्य का जेल प्रशासन रसोई घर में सुधार का प्रस्ताव तैयार कर रहा है। इसे मंजूरी के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पास भेजा जाएगा। वही इस विभाग के भी मंत्री हैं। 

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सूत्रों ने बताया कि रसोई घरों की मौजूदा हालत ठीक नहीं है। सफाई की बेहद कमी है। विभाग के बड़े अधिकारी समय-समय पर इनका मुआयना करते हैं। जाला, चिलचट्टा और गिरगिट देखते हैं। हर बार कुछ सुधार किया जाता है। नए वर्तन के अलावा रोटी बनाने की मशीन लगाने का भी प्रस्ताव है। अभी हाथ से रोटियां बनती हैं। हरेक कैदी की रोटी खाने की चाहत पूरी नहीं होती है। प्रस्ताव पर विचार के दौरान राय यह भी आई कि रसोई घर को आउटसोर्स किया जाएगा। सुरक्षा कारणों से इसे मुफीद नहीं माना जा रहा है।

कैदी बनाते हैं भोजन

राज्य में जेलों की संख्या 59 है। 52 हजार से अधिक कैदी हैं। बेऊर केंद्रीय कारा में वार्ड के हिसाब से रसोई घर है। कुछ जेलों में केंद्रीय रसोई घर भी है। श्रेणी प्राप्त कैदियों के लिए अलग भोजन बनाने की व्यवस्था है। ईंधन के तौर पर कोयला-लकड़ी का उपयोग बंद हो गया है। सभी जेलों में केंद्रीय रसोई घर का प्रस्ताव बन रहा है। ताकि सभी कैदियों को एक जैसा भोजन मिल सके। जेल अस्पतालों में दाखिल कैदियों के लिए अलग रसोई घर है। इसमें तेल-मसाला का उपयोग नहीं होता है। सजायाफ्ता कैदियों को ही भोजन बनाने का जिम्मा है। इसके एवज में उन्हें भुगतान किया जाता है। 

सबके लिए एक जैसी थाली

कागज पर अलमुनियम की थाली जेलों में बदल दी गई हैं। इक्का-दुक्का आज भी हैं। उनकी जगह स्टील की थाली है। लेकिन, यह सबके लिए नहीं हैं। टूटी या पिचकी थालियों में भी खाना परोसा जाता है। रसूख वाले कैदी घर से थाली मंगा लेते हैं। एक ही थाली में चावल-रोटी, दाल और सब्जी परोस दी जाती है। प्रस्ताव है कि दाल-सब्जी के लिए अलग-अलग वर्तन खरीदे जाएं। खाना परोसने के लिए स्टील या लोहे की बाल्टी का इस्तेमाल होता है। कहीं-कहीं  प्लास्टिक की बाल्टी भी चलन में है। इसे बदला जाएगा। भोजन परोसने के लिए स्टील की बाल्टी खरीदी जाएगी। भोजन बनाने वाले कैदियों को बाहरी रसोइए से प्रशिक्षण दिया जाएगा। 


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