बिहार में दुर्लभ पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए आगे आई दिल्ली की संस्था, लखनऊ से आएंगे विशेषज्ञ
दुर्लभ पांडुलिपियों का संरक्षण करेगा इंटैक पहले चरण में दरभंगा क्षेत्र की पांडुलिपियों का होगा संरक्षण बिहार की दुर्लभ पांडुलिपियों (preservation of rare manuscript in Bihar) का संरक्षण इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चर हेरिटेज (इंटैक) नई दिल्ली द्वारा किया जाएगा
पटना, जागरण संवाददाता। बिहार की दुर्लभ पांडुलिपियों (preservation of rare manuscript in Bihar) का संरक्षण इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चर हेरिटेज (इंटैक) नई दिल्ली द्वारा किया जाएगा। पहले चरण में दरभंगा क्षेत्र की पांडुलिपियों का संरक्षण होगा। ये बातें इंटैक (Indian national trust for art and culture heritage) बिहार चैप्टर के संयोजक व भारतीय वन सेवा के पूर्व अधिकारी प्रेम शरण ने वेबिनार के दौरान कहीं। इस कार्य के लिए 15 लाख रुपये आर्थिक सहायता देने की बात कही।
बिहार सरकार के शिक्षा विभाग से मांगा है सहयोग
इसके पहले 19 जनवरी को बिहार के विभिन्न चैप्टरों के संयोजकों के साथ हुई बैठक में शिव कुमार मिश्र, भैरव लाल दास ने पांडुलिपियों के संरक्षण को लेकर प्रस्ताव रखा था। पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए प्रेमशरण ने राज्य सरकार के शिक्षा विभाग से सहयोग के लिए आग्रह किया है। राज्य सरकार के शिक्षा विभाग के अधीन कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय (Kameshwar Singh Darbhanga Sanskrit University) में करीब 5500 और मिथिला शोध संस्थान दरभंगा (Mithila Shodha Sansthan, Darbhanga) में करीब साढ़े 12 हजार पांडुलिपियां संग्रहित हैं।
लखनऊ से दो विशेषज्ञों को बुलाकर होगा काम
इंटैक लखनऊ कार्यालय की ओर से दो विशेषज्ञों को दरभंगा भेज कर विस्तृत विवरण तैयार किया जाएगा। इंटैक पटना चैप्टर के भैरव लाल दास ने बताया कि सरकारी संस्थाओं के अतिरिक्त मिथिला के परंपरागत पंजीकारों के घर में पांडुलिपियों का भंडार है। इसके संरक्षण पर विचार करने की जरूरत है। दरभंगा चैप्टर के शिव कुमार मिश्र ने कहा कि हाल के दिनों में प्राचीन मूर्तियां चोरी होने की सूचनाएं मिलती रहती हैं।
बौद्ध काल की पांडुलिपियों के मामले में समृद्ध है बिहार
बिहार का अतीत काफी पुराना और अकादमिक दृष्टिकोण से काफी गौरवशाली रहा है। इस वजह से यहां दुर्लभ पांडुलिपियां जहां-तहां आज भी बिखरी पड़ी हैं। कई ऐसी पांडुलिपियां हैं, जिनका काफी महत्व होने के बावजूद उनका संरक्षण सही तरीके से नहीं हो पा रहा है।