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बीजेपी और जदयू के बीच सुलझ नहीं रहा विधान परिषद चुनाव का पेंच

विधान परिषद की खाली दो सीटों के लिए नामांकन की प्रक्रिया जारी है। मगर अभी तक एक भी दावेदार सामने नहीं आया है। विधानसभा कोटे की दोनों रिक्त सीटें भाजपा के हिस्से की हैं। भाजपा-जदयू पर 16 से 17 जनवरी के बीच सब कुछ साफ करने का दबाव है।

By Sumita JaiswalEdited By: Published: Wed, 13 Jan 2021 04:06 PM (IST)Updated: Wed, 13 Jan 2021 10:24 PM (IST)
बीजेपी और जदयू के बीच सुलझ नहीं रहा विधान परिषद चुनाव का पेंच
विधान परिषद सीट का मामला फंसा, सांकेतिक तस्‍वीर ।

पटना, राज्य ब्यूरो । विधान परिषद की खाली दो सीटों के लिए नामांकन की प्रक्रिया जारी है। अधिसूचना के तीसरे दिन भी अभी तक एक भी दावेदार सामने नहीं आया है। विधानसभा कोटे की दोनों रिक्त सीटें भाजपा के हिस्से की हैं। उप चुनाव है, इसलिए दोनों पर एकल चुनाव होना है। संख्या बल के हिसाब से सत्ता पक्ष की जीत तय है, किंतु भाजपा की ओर से अभी तक प्रत्याशी के नाम तय नहीं हो सके हैं। मंत्रिमंडल का विस्तार और राज्यपाल कोटे की 12 सीटों का मनोनयन भी लटका है। हालांकि बहाना खरमास का है, लेकिन दो दिनों के बाद खरमास खत्म होना है।

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दावे और हालात में काफी फर्क

विधान परिषद उपचुनाव के लिए नामांकन की आखिरी तिथि 18 जनवरी है। ऐसे में भाजपा एवं जदयू नेताओं पर दबाव है कि 16 से 17 जनवरी के बीच सारे मामलों को सुलझा लिए जाएं। दावा भी किया जा रहा है, लेकिन अभी तक बात आगे नहीं बढ़ी है। कैबिनेट विस्तार से लेकर विधान परिषद के उपचुनाव की दोनों सीटों पर स्थिति स्पष्ट करनी है। हालांकि भाजपा के वरिष्ठ नेता दावा कर रहे हैं कि कहीं कोई पेंच नहीं है, लेकिन हालात बता रहे हैं कि दोनों दलों में अभी बातचीत के लिए बहुत कुछ बाकी है।

दो मंत्रियों को सदन में भेजने का दबाव

उपचुनाव की दोनों सीटों पर भाजपा लड़ेगी या गठबंधन धर्म के तहत एक सीट जदयू के खाते में भी जाएगी, इसपर अभी भी पेच है। बिहार में एनडीए गठबंधन में वर्तमान में चार दल हैं। इसमें भाजपा, जदयू, हम और वीआइपी है। जदयू से अशोक चौधरी और वीआइपी प्रमुख मुकेश सहनी अभी किसी सदन के सदस्य नहीं हैं। ऐसे में सरकार पर दोनों मंत्रियों को किसी न किसी सदन का सदस्य बनाने का दबाव है।

एनडीए के वरिष्ठ नेताओं के अनुसार दोनों मंत्रियों को राज्यपाल मनोनयन कोटे वाली सीटों से उच्च सदन का सदस्य बनाने की तैयारी है। ऐसे भी सरकार के पास पर्याप्त समय है। वैधानिक रूप से छह महीने तक दोनों मंत्री के पास किसी सदन का सदस्य बनने की छूट है।


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