Bihar Board में अब नहीं मिलती 'प्रॉडिकल साइंस' वाली टॉपर रूबी, गणेश कुमार, जानिए
बिहार बोर्ड ने परीक्षा में नकल पर एेसी नकेल कसी है कि उसका असर अब परीक्षा और रिजल्ट दोनों में दिख रहा है। अब प्रॉडिकल साइंस वाली रूबी कुमारी या गणेश कुमार टॉपर लिस्ट में नहीं दिखते
पटना [जयशंकर बिहारी]। बिहार में मैट्रिक और इंटर की परीक्षा में नकल (कदाचार) नहीं होती। दशकों तक बिहार में सामूहिक नकल की तस्वीरें देखने के अभ्यस्त दूर के राज्यों के लोग इस बात पर विश्वास नहीं करते, लेकिन यही सच है। तकनीक के इस्तेमाल से परीक्षा से लेकर मूल्यांकन तक की पद्धति बदल गई। यूं कहें कि बिहार बोर्ड की पूरी कार्यपद्धति ही बदल गई है। यही वजह है कि अब बिहार में पॉलिटिकल साइंस को 'प्रॉडिकल साइंस' कहने वाले टॉपर नहीं मिलते।
बिहार विद्यालय परीक्षा समिति (बिहार बोर्ड) ने 10वीं और 12वीं की वार्षिक परीक्षा में तकनीक का व्यापक स्तर पर इस्तेमाल कर फिजा बदल दी है। 2016 में टॉपर घोटाले के बाद बोर्ड प्रशासन ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन करने के बाद त्रुटियों को दूर करने के लिए टेक्नोलॉजी का प्रयोग बड़े स्तर पर किया जा रहा है।
बोर्ड अध्यक्ष आनंद किशोर ने आइटी टीम के साथ स्थानीय समस्याओं एवं जरूरतों को ध्यान में रखते हुए सॉफ्टवेयर तैयार करवाया। इसमें बोर्ड अध्यक्ष के आइआइटी कानपुर के पूर्ववर्ती छात्र होने का भी लाभ मिला। तकनीक ने परीक्षा संचालन और रिजल्ट प्रकाशन को आसान कर किया। बिहार बोर्ड को देश के टॉपर बोर्ड बनाने में इन कदमों की भूमिका अहम रही।
कॉपी पर फोटो सहित पूरा विवरण रहता है प्रिंट
बिहार बोर्ड 10वीं और 12वीं के परीक्षार्थियों को जो कॉपी उपलब्ध कराता है, उसपर संबंधित परीक्षार्थी की फोटो, नाम, रौल नंबर, रौल कोड सहित सभी जानकारी प्रिंट रहती है। इससे मूल्यांकन व रिजल्ट में त्रुटि की संभावना कम हो गई।
डमी रजिस्ट्रेशन व एडमिट कार्ड
रजिस्ट्रेशन और प्रवेशपत्र में किसी भी स्तर पर त्रुटि नहीं रहे, इसके लिए बोर्ड ने डमी रजिस्ट्रेशन व एडमिट कार्ड जारी करना प्रारंभ किया। त्रुटि में सुधार के लिए परीक्षार्थियों को कई मौके दिए जाते हैं।
सीसीटीवी की निगरानी
2015 में वैशाली जिले के एक परीक्षा केंद्र के चौथे तल की खिड़की से लटककर अपने-अपने अभ्यर्थी को नकल कराते हुए लोगों की फोटो काफी वायरल हुई थी। अब बाहरी लोगों पर नजर सीसीटीवी व मजिस्ट्रेट की निगरानी में कंट्रोल रूम से रखी जाती है। परीक्षार्थियों के बीच प्रश्नपत्रों के 10 सेट वितरित किए जाते हैं। इससे ताकझांक की गुंजाइश भी खत्म हो गई।
लिथो व बार कोड युक्त कॉपी
परीक्षार्थियों की कॉपी पर लिथो व बार कोड, रौल नंबर, कोड नंबर, नाम, केंद्र सहित 28 तरह की जानकारी प्रिंट रहती है। पांच माध्यम से कॉपी में दर्ज सूचनाओं की जांच की जा सकती है। फीडबैक के आधार पर बदलाव किए जाते हैं।
मूल्यांकन के साथ ही मार्कशीट होगी अपटूडेट
पिछले साल बिहार बोर्ड ने रिकॉर्ड समय में रिजल्ट जारी किया था। 30 मार्च को इंटर व छह अप्रैल को मैट्रिक परीक्षा का रिजल्ट जारी हो गया था। कॉपी की कोडिंग के आधार पर सॉफ्टवेयर संबंधित परीक्षार्थी का नाम जाहिर किए बगैर मार्कशीट पर संबंधित विषय का नंबर दर्ज कर देता है। स्कैनर और सॉफ्टवेयर के माध्यम से मूल्यांकन के साथ ही परीक्षार्थियों के अंकपत्र तैयार होते हैं।
हर स्तर पर कार्यशाला
बिहार बोर्ड ने परीक्षा में नई तकनीक के उपयोग के साथ-साथ कर्मियों को इसमें सहज करने के लिए नियमित रूप से कार्यशाला का आयोजन किया। परीक्षा के आयोजन में जिला प्रशासन की सक्रियता बढ़ाई गई।
डिजिटलाइजेशन
बिहार बोर्ड पिछले तीन साल से अपनी पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन संचालित कर रहा है। इसके साथ ही बोर्ड के कामकाज को डिजिटलाइज्ड कर दिया गया। इस कारण फाइलों के पीछे दौड़ लगाने की बजाय, चंद मिनटों में ई-मेल और वॉट्सऐप से जानकारी साझा की जा रही है।
बिहार बोर्ड अध्यक्ष ने कहा-
बिहार बोर्ड ने गलतियों से सीख लेते हुए खुद की जरूरतों के अनुसार, सॉफ्टवेयर और तकनीक ईजाद की। हर साल फीडबैक के आधार पर इसमें बदलाव कर ज्यादा सहज बनाया गया। पूरी प्रक्रिया तकनीक आधारित व ऑनलाइन करने से कार्य निष्पादन में काफी बदलाव आया।
- आनंद किशोर, अध्यक्ष, बिहार विद्यालय परीक्षा समिति