रेलवे में क्लेम घोटाला : सीबीआइ के रडार पर कई रेल अधिकारी और अधिवक्ता
रेलवे क्लेम घोटाला की सीबीआई कर रही जांच।
पटना। रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल में 2015 से 2017 के बीच मृत यात्रियों के क्लेम के नाम पर 100 करोड़ रुपये से अधिक के घोटाले की जांच में सीबीआइ रेल अफसरों के साथ कई अधिवक्ताओं की कुंडली भी खंगाल रही है। वर्षो से क्लेम ट्रिब्यूनल में ही जमे ऐसे कई रेल अधिकारी व कर्मचारी हैं, जो सीबीआइ के रडार पर हैं। मामले में बैंक प्रबंधकों व क्लर्क की मिलीभगत की भी पड़ताल हो रही है।
मालूम हो कि रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल में 5 मई 2015 से 16 अगस्त 2017 के बीच 100 करोड़ से अधिक के घोटाले की बात सामने आते ही रेलवे ने इसे गंभीरता से लिया। रेल मंत्रालय ने करोड़ों के इस घोटाले की जांच का जिम्मा सीबीआइ को सौंप दिया था। सीबीआइ की ओर से इस अवधि की सारी फाइलों को कब्जे में ले लिया गया है। जांच के लिए विशेष टीम लगी है। हालांकि ऐसे कई रेल अधिकारी हैं जो पहले से दूसरे मामलों में सीबीआइ जांच के दायरे में हैं। रेलवे में अनधिकृत टिकट बुकिंग के नाम पर करोड़ों की हेराफेरी के मामले में भी उनके खिलाफ सीबीआइ जांच चल रही है। घोटाले में न्यायिक सदस्य की संलिप्तता की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने रेलवे बोर्ड के अनुरोध पर सुप्रीम कोर्ट के ही न्यायाधीश उदय यू ललित की अध्यक्षता में जांच कमेटी गठित की थी। कमेटी की ओर से 25 जून को ही जांच रिपोर्ट रेलवे को सौंप दी गई। रिपोर्ट में न्यायिक सदस्य आरके मित्तल को दोषी पाया गया, जिसके आधार पर उन्हें सेवानिवृत्ति से पूर्व मुक्त कर दिया गया। सीबीआइ की टीम 5 मई 2015 से 16 अगस्त 2017 तक ट्रिब्यूनल की ओर से 2,564 क्लेम के निष्पादन की फाइलें खंगाल रही है। खास बात यह है कि मुआवजे की राशि के लिए तीन खास बैंक शाखाओं को चुना गया। लाभान्वित होने वालों के बैंक खाते के गवाह भी पैरवी करने वाले अधिवक्ता बनते थे। इतना ही नहीं उनके गांव के बैंक खाते के नाम से चेक का भुगतान न करके उनका अलग से इन्हीं शाखाओं में खाता खुलवाया जाता था। भुगतान होते ही बैंक खाता बंद कर दिया जाता था। हाल ही में सीबीआइ ने कुछ रेल अधिकारियों के साथ कई कर्मचारियों से घंटों पूछताछ की थी। मृतकों के परिजनों से भी पूछताछ की गई है।