गायघाट में आइडब्लूएआइड्रेजिंग जहाजों के ठहराव का स्थान बदला
ड्रेजिंग जहाजों के ठहराव का स्थान बदला।
By Edited By: Published: Wed, 19 Jun 2019 01:47 AM (IST)Updated: Wed, 19 Jun 2019 01:49 AM (IST)
पटना सिटी। भारतीय अंतरदेशीय जलमार्ग प्राधिकरण के ड्रेजिंग जहाजों के ठहराव का बदला स्थान हर किसी को अचंभित कर रहा है। गायघाट में आइडब्लूएआइ के निर्मित ऊंचे और नीचे जल स्तर वाले दो बंदरगाह के समीप खड़े रहने वाले ड्रेजिंग जहाजों का ठिकाना अब खाजेकलां घाट से पूरब गंगा में हीरानंद शाह घाट का किनारा हो गया है। यहां कोलकाता का अलखनंदा, जैसमिन, तापी समेत आधा दर्जन जहाज खड़ा है।
इस मामले में आइडब्लूएआइ के मुख्य अभियंता सह निदेशक वी के कुरील ने मंगलवार को बताया कि इन जहाजों को प्राधिकरण ने निजी कंपनी को ड्रेजिंग के लिए दिया है। गंगा में पानी कम हो जाने के कारण ड्रेजिंग का काम बंद है। इस कारण निजी कंपनी ने अपने निर्धारित जोन क्षेत्र हीरानंद शाह घाट पर जहाजों का ठहराव किया है। उन्होंने बताया कि गंगा के जलस्तर में बढ़ोतरी होते ही अक्टूबर से ड्रेजिंग शुरू होने की संभावना है। तब इन जहाजों का इस्तेमाल होगा। गंगा में जहाजों के परिचालन के लिए ढाई मीटर पानी का होना आवश्यक है। कई नदियों के पानी के साथ बह कर गंगा में पहुंचने वाले बालू का जहां-तहां शिल्ट जमा हो जाता है। गंगा में पानी कम होते ही इस शिल्ट से जगह-जगह बालू का टिला तैयार हो जाता है। बरसात शुरू होते ही गंगा में पानी बढ़ने लगेगा। तब जहाजों के परिचालन में बाधक बन चुके शिल्ट को जलमार्ग के रास्ते से ड्रेजिंग कर हटाया जाता है। निदेशक वी के कुरील ने बताया कि ड्रेजिंग का काम पहले आइडब्लूआइ किया करती थी। कर्मियों की कमी व अन्य कारणों से आइडब्लूआइ ने ड्रेजिंग जहाज निजी कंपनियों के हवाले कर दिया है। अब ड्रेजिंग उन्हीं के द्वारा किया जाता है।
इस मामले में आइडब्लूएआइ के मुख्य अभियंता सह निदेशक वी के कुरील ने मंगलवार को बताया कि इन जहाजों को प्राधिकरण ने निजी कंपनी को ड्रेजिंग के लिए दिया है। गंगा में पानी कम हो जाने के कारण ड्रेजिंग का काम बंद है। इस कारण निजी कंपनी ने अपने निर्धारित जोन क्षेत्र हीरानंद शाह घाट पर जहाजों का ठहराव किया है। उन्होंने बताया कि गंगा के जलस्तर में बढ़ोतरी होते ही अक्टूबर से ड्रेजिंग शुरू होने की संभावना है। तब इन जहाजों का इस्तेमाल होगा। गंगा में जहाजों के परिचालन के लिए ढाई मीटर पानी का होना आवश्यक है। कई नदियों के पानी के साथ बह कर गंगा में पहुंचने वाले बालू का जहां-तहां शिल्ट जमा हो जाता है। गंगा में पानी कम होते ही इस शिल्ट से जगह-जगह बालू का टिला तैयार हो जाता है। बरसात शुरू होते ही गंगा में पानी बढ़ने लगेगा। तब जहाजों के परिचालन में बाधक बन चुके शिल्ट को जलमार्ग के रास्ते से ड्रेजिंग कर हटाया जाता है। निदेशक वी के कुरील ने बताया कि ड्रेजिंग का काम पहले आइडब्लूआइ किया करती थी। कर्मियों की कमी व अन्य कारणों से आइडब्लूआइ ने ड्रेजिंग जहाज निजी कंपनियों के हवाले कर दिया है। अब ड्रेजिंग उन्हीं के द्वारा किया जाता है।
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