अन्य क्षेत्रीय भाषाओं की अपेक्षा भोजपुरी का व्याकरण सरल
भोजपुरी हमारी मातृभाषा है।
भोजपुरी हमारी मातृभाषा है। वर्षो से कई रचनाकारों ने अपनी मातृभाषा में रचनाएं कीं और आज भी लोग कर रहे हैं। लेकिन, व्यापक स्तर पर प्रचार-प्रसार नहीं होने के कारण भोजपुरी साहित्य आम पाठकों से दूर है। आज बहुत से रचनाकार अपनी पुस्तकें जमीन-जायदाद बेच कर प्रकाशन कराने में लगे हैं। ऐसी स्थिति में लेखकों की मनोदशा क्या हो सकती है, समझने की जरूरत है। भोजपुरी साहित्य का संसार बहुत बड़ा है। ये बातें भोजपुरी के प्रसिद्ध साहित्यकार जयकांत सिंह 'जय' ने प्रभा खेतान फाउंडेशन, मसि इंक और श्री सीमेंट द्वारा आयोजित 'आखर' कार्यक्रम के दौरान भोजपुरी साहित्य पर प्रकाश डालते हुए कहीं। साहित्यिक संगोष्ठी आरंभ होने के पहले साहित्यकारों ने पुलवामा हमले में शहीद जवानों, ¨हदी साहित्य के बड़े आलोचक नामवर सिंह के प्रति मौन रख कर श्रद्धा सुमन अर्पित किया। संगोष्ठी के दौरान लेखक जयकांत सिंह 'जय' से भोजपुरी के साहित्यकार ब्रजभूषण मिश्र ने बातचीत की। संगोष्ठी के दौरान कथाकार और नाटककार हृषिकेश सुलभ ने ¨हदी के वरिष्ठ साहित्यकार नामवर सिंह से जुड़े अपने संस्मरण सुनाकर लोगों को भावुक किया।
भाषा का वैज्ञानिक विमर्श और व्याकरण होना जरूरी
भोजपुरी साहित्य के प्रति अपनी रूचि व्यक्त करते हुए लेखक जयकांत सिंह ने कहा कि बचपन से ही अपनी मातृभाषा के प्रति लगाव रहा। भोजपुरी भाषा के स्वरूप पर बात करते हुए लेखक ने कहा कि जिस भाषा का वैज्ञानिक विमर्श न हो, व्याकरण न हो, तब तक उस भाषा का सम्मान नहीं होता। भोजपुरी भाषा और बोली पर डॉ. जयकांत ने कहा कि जार्ज ग्रियर्सन ने अपनी पुस्तक में भोजपुरी को बोली नहीं, भाषा करार दिया। भोजपुरी की ध्वनि, प्रकृति एवं भाव का मागधी एवं स्वरसैनि से कोई संबंध नहीं। अक्षरों का उच्चारण भोजपुरी में विशिष्ट स्थान रखता है। भोजपुरी का व्याकरण अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के मुकाबले सरल है। व्याकरण उसके लिए बनाया जाता है, जिसकी अपनी मातृभाषा नहीं होती है।
कैथी लिपि में होता था भोजपुरी का लेखन
लिपि और लेखन के बारे में लेखक ने कहा कि लिपि भाषा का लिबास होती है। भारत में मुख्य रूप से दो हीं लिपियां थीं, ब्राह्माी और खरोष्ठी। देवनागरी तो बाद में आई है। देवनागरी संस्कृत की लिपि है न कि ¨हदी की। 1873 के बाद हिंदी ने अपना स्वरूप विस्तार किया तो देवनागरी को प्रचलित करना शुरू किया। शेरशाह सूरी के समय तक भोजपुरी का लेखन कैथी लिपि में होता था। भोजपुरी गद्य के विकास पर लेखक ने कहा कि भाषा का मूल रूप गद्य होता है। 1664 से ही भोजपुरी में गद्य लिखना जारी है। 1942 में राहुल सास्कृत्यायन ने जेल से ही भोजपुरी भाषा में गद्य लिखे।
भाषा के स्तर पर कोई काम नहीं -
उन्होंने कहा कि भाषा के स्तर पर कहीं कोई काम नहीं हो रहा है। आज स्कूल और कॉलेजों में भी मातृभाषा की पढ़ाई बंद है। ऐसे में भाषा का विकास कैसे हो सकता है। जिस भाषा का जन्म अपनी मिट्टी में हुआ, उसी मिट्टी में भाषा की उपेक्षा हो रही है। सरकार और समाज मातृभाषा को बचाने के लिए काम करें। भोजपुरी अध्ययन, अध्यापन की स्थिति संस्थानों में ठीक नहीं। भोजपुरी गद्य के उद्भव और विकास पर कहा कि भाषा का जन्म ही गद्य से होता है। समारोह के दौरान कहानीकार रत्नेश्वर, भगवती प्रसाद सिंह, डॉ. रंजन विकास, अन्विता प्रधान, पद्मश्री उषा किरण खान, सत्यम आदि मौजूद थे। धन्यवाद ज्ञापन मसि इंक की संस्थापक और निदेशक आराधना प्रधान ने किया।