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कांग्रेस बिहार में अपनाना चाहती झारखंड फॉर्मूला, महागठबंधन में बना रही प्रेशर ग्रुप

झारखंड की तरह बिहार में भी चुनाव के समय राजद के लिए सरकार बनाने लायक़ सीट छोड़ने की पेशकश करेगी। इसी तर्क पर उसने झामुमो को सहमत किया है। मामले को जानने को पढ़ें इस खबर को।

By Rajesh ThakurEdited By: Published: Tue, 12 Feb 2019 04:09 PM (IST)Updated: Tue, 12 Feb 2019 07:48 PM (IST)
कांग्रेस बिहार में अपनाना चाहती झारखंड फॉर्मूला, महागठबंधन में बना रही प्रेशर ग्रुप
कांग्रेस बिहार में अपनाना चाहती झारखंड फॉर्मूला, महागठबंधन में बना रही प्रेशर ग्रुप

पटना [अरुण अशेष]। झारखंड की तरह बिहार में भी कांग्रेस विधानसभा चुनाव के समय राजद के लिए सरकार बनाने लायक़ सीट छोड़ने की पेशकश करेगी। इसी तर्क पर उसने झामुमो को सहमत किया है। बिहार में भी कांग्रेस कुछ इसी तरह की सियासी चाल चलने की रणनीति पर काम कर रही है। यह अलग बात है कि राजद किसी भी हालत में झारखंड के फॉर्मूले को बिहार में स्वीकार करने की हालत में नहीं है। वजह कम सीटों पर लड़कर वह पार्टी में संघर्ष की नौबत नहीं लाना चाहता है। कांग्रेस जवाबी तैयारी कर रही है। वह महागठबंधन के गैर-राजद घटक दलों को सम्मानजनक सीट दिलाकर अपने प्रति उनके रुख को मुलायम रखने की कोशिश कर रही है। घटक दल देर-सवेर राजद से आग्रह करेंगे कि वह भाजपा की तरह उदारता का रवैया अपनाए। गठबंधन के लिए भाजपा अपनी जीती सीटें छोड़ रही है।

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खामोश हैं महागठबंधन के सहयोगी दल 

हम, रालोसपा और वाम दल फिलहाल सीटों के मसले पर खामोश हैं। इन दलों को भी कांग्रेस का मौजूदा और एक हद तक आक्रामक रुख खराब नहीं लग रहा है। वे देख रहे हैं कि राजद की परंपरागत कही जानेवाली सीटों के लिए कांग्रेस उम्मीदवारों के नाम तय कर दे रही है। कांग्रेस यह दिखाने की कोशिश कर रही है कि वह राजद की अधिक परवाह नहीं करती। दरभंगा के लिए कीर्ति आजाद के नाम की सिफारिश इसी कोशिश का हिस्सा है। इन दलों को लग रहा है कि राजद दबाव में रहना ही सौदेबाजी के लिहाज से उनके लिए ठीक रहेगा।



रालोसपा की हैं अपनी चिंताएं
 
रालोसपा अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा अभी तटस्थ दिख रहे हैं। उनकी पार्टी में सीट के चलते विवाद हो चुका है। पूर्व केंद्रीय मंत्री नागमणि अपने लिए सीट की उम्मीद में ही रालोसपा से जुड़े थे। झारखंड की चतरा सीट पर उनका दावा था। लेकिन, वहां महागठबंधन के बीच सीटों के बंटवारे में रालोसपा के लिए सीट छोड़ने की बात दूर, उसका जिक्र तक नहीं हुआ। नतीजा यह निकला कि उपेंद्र कुशवाहा को राज्य का मुख्यमंत्री बनाने का संकल्प लेने वाले नागमणि उन्हें बर्बाद करने पर उतर आए हैं। उपेंद्र कुशवाहा जितनी उम्मीदों से महागठबंधन में शामिल हुए, वह पूरी होती नजर नहीं आ रही हैं। आने वाले दिनों में उनकी तकलीफ कम होगी, ऐसा लग नहीं रहा है। उनकी अगली चिंता सीतामढ़ी को लेकर हो सकती है। वह पिछले चुनाव में उसकी जीती हुई सीट है। उस पर राजद और लोकतांत्रिक जनता दल का भी दावा है। शरद यादव के सबसे करीबी अर्जुन राय भी सीतामढ़ी के सांसद रह चुके हैं। वह अपना दावा वापस लेने के लिए इस वक्त तक तैयार नहीं हैं। 



उदय नारायण चौधरी से नहीं है परेशानी 
जहां तक पूर्व विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी का सवाल है, राजद से उनका रिश्ता सहज है। वह राजद टिकट पर चुनाव लड़ने के लिए राजी हैं। यह भी महत्वपूर्ण है कि उपेंद्र कुशवाहा महागठबंधन में शामिल होने से पहले राहुल गांधी से मिले थे। कांग्रेस उनसे सहानुभूति रखती है। संभव है कि कांग्रेस जब अंतिम तौर पर राजद के साथ सीटों की बातचीत करे, उस समय वह रालोसपा की तरफदारी में भी कुछ बात रखें। हम में हुई भगदड़ भी सीट न मिलने की आशंका की देन है। वृषिण पटेल उम्मीदवार हैं। महागठबंधन में गुंजाइश न देखकर वह निकल गए। जल्द कोई निर्णय नहीं हुआ, तो हम के कुछ और नेता बाहर जा सकते हैं।

विस चुनाव में राजद ने दिखाई थी उदारता 
एक और उदाहरण महागठबंधन के पास है। 2015 के विधानसभा चुनाव में जनता दल यू ने 2010 में जीती हुई डेढ़ दर्जन से अधिक सीटें सहयोगियों के लिए छोड़ दी थीं। राजद ने भी ऐसी ही उदारता दिखाई थी। उसने भी जीती हुई विधानसभा सीटों को छोड़ने पर तकरार नहीं किया था। फिर एक सवाल यह भी कि लोकसभा चुनाव केंद्र में सरकार बनाने के लिए हो रहा है। बिहार विधानसभा के अगले चुनाव में राजद को अधिक से अधिक सीटें दी जा सकती हैं। 2015 की तुलना में 2020 के विधानसभा चुनाव के समय महागठबंधन के पास अधिक सीटें भी रहेंगी। तब 101 सीटों का हिस्सेदार जदयू का दावा नहीं रहेगा। 



कांग्रेस की मुस्लिम वोटरों पर नजर 
कांग्रेस बड़ी होशियारी से राजद के आधार मुस्लिम-यादव समीकरण में से मुसलमानों को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही है। तारिक अनवर की वापसी इसी कोशिश का अंग है। वह बड़े मुस्लिम चेहरों को दिखाकर यह समझाने की कोशिश कर रही है कि पार्टी अपने पुराने जनाधार को जोड़ने की प्रक्रिया में है। गौर करने वाली बात है कि कांग्रेस मुस्लिम बहुल संसदीय सीटों पर अधिक जोर दे रही है। ये ऐसी सीटें हैं, जिन पर 1989 के लोकसभा चुनाव के बाद राजद या पूर्ववर्ती जनता दल की पकड़ रही है।


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