सोनपुर मेले में दस लाख के घोड़े, रोजाना 500 रुपये आते हैं रखरखाव में खर्च
पशु मेले के रूप में सोनपुर मेला एशिया में विख्यात है। यहां जानवरों की विदेशी नस्ल भी बिकने के लिए आई है। एक से दस लाख रुपये तक के घोड़े मेले में दिख जाएंगे.इनके रखरखाव में भी काफी खर्च आता है।
रविशंकर शुक्ला, पटना। हरि हर क्षेत्र में लगे सोनपुर मेले में तरह-तरह के पशु आकर्षण का केंद्र बने हैं। अलग-अलग स्थानों से लाए गए विदेशी नस्ल के घोड़े मेले में आने वालों के लिए कौतूहल का विषय बने हैं। दाम इतने कि एक कार खरीद ली जाए। पशु मेले के रूप में सोनपुर मेला एशिया में विख्यात है। इतना ही नहीं, घोड़े के रख-रखाव पर हर दिन 500 से 600 रुपये खर्च होते हैं। एक घोड़ा 5 लीटर दूध प्रतिदिन पीता है। इनके मालिकों ने घोड़ों के लिए गाय-भैंस पाल रखा है। यहां 1 लाख रुपये से 10 लाख रुपये तक के घोड़े हैं। इतने में आप आरामदायक कार खरीद सकते हैं। लोग घोड़ों के इस कदर शौकीन हैं कि पांच-पांच घोड़े पाल रखे हैं।
हाथी-घोड़े हैं मेले की शान
हाथी-घोड़ा मेले की शान है। मेले की धार्मिक आस्था से जुड़ा है। गज-ग्राह का युद्ध और इस पावन धरती पर हरि व हर का आगमन इस मेले की धार्मिक पहचान है। पीछले पांच वर्षों में हाथियों का मेले में आगमन अतीत की बात हो चुकी है। सोनपुर पशु मेले को ऑक्सिजन दे रहा है, घोड़ा बाजार। सोनपुर मेले का घोड़ा बाजार गुलजार है। लेकिन घोड़ों की संख्या में गिरावट इस बात का संकेत दे रहा है कि भविष्य सुनहरा नहीं है। घोड़ों की मेले में बिक्री कम, शौकीन लोग ज्यादा आ रहे हैं। खैर, मेले में घोड़ों की टाप, सरपट दौड़ और घुंघरू पर चाल लोगों को आनंदित कर रही है।
घोड़ों का करतब देखने को जुट रही भीड़
सोनपुर मेले का घोड़ा बाजार गुलजार है। अंग्रेजी बाजार के करीब तीन किलोमीटर में फैला बाजार। तंबू गिराए लोग। कई करोबारी आए हैं, तो कई घोड़ों के शौकीन। कई वर्षों से मेले में आ रहे हैं। घोड़ा बाजार में बीच-बीच में कच्ची सड़कों पर घोड़े सरपट दौड़ रहे हैं। घोड़ों को काफी सजाया गया है। कई घोड़ोंके पांवों में बंधी घुंघरू। करतब दिखाते घोड़े। अपने स्वामी के इशारे पर नाचते घोड़े। परिवार संग बड़ी संख्या में मेला घुमने आए लोग सुबह से शाम तक आनंद उठा रहे हैं।
कई राज्यों से पहुंचे घोड़े के कारोबारी व शौकीन
सोनपुर मेले के घोड़ा बाजार में बिहार के तमाम जिलों व पड़ोसी उत्तर प्रदेश, झारखंड समेत कई प्रदेशों के कारोबारी एवं शौकीन पहुंचे हैं। समस्तीपुर के रामचंद्र राय अरबी, काबुल एवं मारवाड़ समेत यहां पांच घोड़े लेकर आए हैं। अब वे वापसी की तैयारी कर रहे हैं। वहीं छपरा के कृष्णा राय पांच सफेद घोड़े, मिलेट्री कलर का पंजाब का 65 इंच का घोड़ा भी आकर्षण का केंद्र है। चिरांद के रमेश राय रांची के लातेहार निवासी एक व्यक्ति को 7 लाख में घोड़ा बेचकर लौट चुके हैं। रामचंद्र 1985 से मेले में घोड़े लेकर आ रहे हैं। दिघवारा के ब्रजेश ङ्क्षसह की 14 माह की घोड़ी रानी की रफ्तार के लोग दीवाने हैं। 45 वर्षों से मेले में आ रहे सिवान के इमाम खान 80 घोड़े लेकर आए हैं। उनके सबसे अच्छे घोड़े बादल की कीमत 7 लाख है। वह दर्जनों फिल्मों में काम कर चुका है। चेतक, महाराणा आदि कई ऐसे घोड़े यहां हैं जिनकी कीमत 10 लाख तक है।
औरंगजेब के जमाने में शुरू हुआ था मेला
सोनपुर मेले में हाथी-घोड़े के बाजार का अतीत काफी समृद्ध है। मुगल बादशाह औरंगजेब के जमाने में सोनपुर में मेला लगना शुरू हुआ था। एक जमाने में यह मेला जंगी हाथियों का सबसे बड़ा मेला था। मध्य एशिया तक से कारोबारी आते थे। यह एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला था। मौर्यवंश के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य, मुगल सम्राट अकबर, 1857 के गदर के नायक बाबू वीर कुंवर ङ्क्षसह ने यहां से हाथियों की खरीदारी की थी। 1803 में लार्ड क्लाइव ने सोनपुर में घोड़े का बड़ा अस्तबल बनवाया था।
हर दिन पांच लीटर गाय का दूध पीते हैं घोड़े
सोनपुर मेले में घोड़ा लेकर आए कारोबारी एवं शौकीन बताते हैं कि घोड़ों को चोकर, बाजरा, मसूर, भूसा, चने के अलावा करीब पांच लीटर गाय का दूध प्रतिदिन पिलाया जाता है। छपरा के कृष्णा राय ने बताया कि उन्होंने खुद घोड़े के लिए गाय पाली है। सिवान के इमाम खान ने बताया कि घोड़े पांच-छह लीटर दूध हर दिन पीते हैं। घोड़ों के रख-रखाव पर हर दिन औसतन छह सौ रुपये खर्च होते हैं। इसके अलावा घोड़ों की मालिश व अन्य कई तरह की सेवा भी करनी पड़ती है। इतने में आप आराम से एक कार मेंटेन कर सकते हैं।
इन नस्लों के घोड़े हैं मेले में
एशिया प्रसिद्ध हरिहरक्षेत्र सोनपुर मेले में कई देशी-विदेशी नस्ल के घोड़े आए हैं। इनमें अरबी, मारवाड़ी, काबुल, मणिपुरी नस्ल के घोड़े हैं। उत्तर प्रदेश के इटावा, मध्य प्रदेश के ग्वालियर, पंजाब, राजस्थान, मणिपुर के घोड़े हैं।
कई वर्षों से नहीं हो रही पशु दौड़ प्रतियोगिता
कुछ वर्ष पहले तक सोनपुर मेले में पशु दौड़ प्रतियोगिता हुआ करती थी। पशुपालन विभाग डाकबंगला मैदान पर बड़ा आयोजन करता था। गाय, बैल, घोड़ा समेत अन्य पशु अपने करतब दिखाते थे। सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले पशुओं के स्वामी को पुरस्कृत किया जाता था। सूबे के राज्यपाल समेत कई गणमान्य लोग इसमें शरीक होते थे।