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बिहार में कैबिनेट विस्तार: पितृपक्ष के बाद से लग रहे कयास, अब दीपावली बाद ही उम्मीद

पितृपक्ष के बाद अब दीपावली के बाद नीतीश कैबिनेट का विस्तार होगा। हालांकि सीएम ने अभी इस मुद्दे पर चुप्पी साध ली है।

By Kajal KumariEdited By: Published: Wed, 17 Oct 2018 09:49 AM (IST)Updated: Wed, 17 Oct 2018 01:14 PM (IST)
बिहार में कैबिनेट विस्तार: पितृपक्ष के बाद से लग रहे कयास, अब दीपावली बाद ही उम्मीद
बिहार में कैबिनेट विस्तार: पितृपक्ष के बाद से लग रहे कयास, अब दीपावली बाद ही उम्मीद

पटना [राज्य ब्यूरो]। कैबिनेट विस्तार के मुद्दे पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चुप हैं। इससे दावेदारों के जोश पर फर्क नहीं पड़ रहा है। वे मंसूबा बांध रहे हैं। पूजा कर रहे हैं। बधाइयां भी बटोर रहे हैं। राज्य कैबिनेट में कोई महिला मंत्री नहीं हैं। शेल्टर होम विवाद के चलते इकलौती महिला मंत्री मंजू वर्मा को इस्तीफा देना पड़ा था। उसी दिन से कैबिनेट विस्तार की संभावना जाहिर की जा रही है।

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उम्मीद इसलिए भी बढ़ी है, क्योंकि जदयू कार्यकारिणी की पिछली बैठक में नीतीश ने कैबिनेट विस्तार का संकेत दिया था। हालांकि उसके बाद उन्होंने कभी सार्वजनिक तौर पर इसकी चर्चा नहीं की।

पितृपक्ष के 15 दिन इस आस में कट गए कि शुभ कार्य के लिए यह समय उपयुक्त नहीं है। दशहरा में विस्तार हो जाएगा। यह समय सरकारी छुट्टी के नाम पर कट रहा है। अब दिवाली से पहले विस्तार की नई संभावना बन रही है।

विधानसभा की सदस्य संख्या के हिसाब से राज्य कैबिनेट में अधिकतम 36 सदस्य हो सकते हैं। अभी मुख्यमंत्री सहित 26 मंत्री हैं। इस लिहाज से मंत्रियों के 10 पद रिक्त हैं। विस्तार में किसी महिला सदस्य का शामिल होना तय माना जा रहा है। जदयू विधायक लेसी सिंह, रंजू गीता और बीमा भारती में से किसी को अवसर मिल सकता है। 

मंजू वर्मा के इस्तीफा के बाद सामाजिक संतुलन बनाए रखने के लिए कुशवाहा बिरादरी को प्रतिनिधित्व देने की मांग हो रही है। मुख्यमंत्री ने पिछले दिनों कुशवाहा समाज के प्रमुख नेताओं की बैठक बुलाई थी। उन्हें संगठन और सरकार में उचित प्रतिनिधित्व देने का भरोसा दिया था। 

जदयू अनुसूचित जातियों के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में है। यह इस समुदाय के विधायकों में उम्मीद जगा रहा है। कांग्रेस से जदयू में आए पूर्व मंत्री अशोक चौधरी सबसे अधिक इत्मीनान हो सकते हैं। बताया जा रहा है कि उचित सम्मान देने के भरोसे पर ही उन्हें जदयू में शामिल कराया गया है।

उनके साथ कांग्रेस के दो औऱ विधान परिषद सदस्य जदयू में शामिल हुए थे। चौधरी को अनुसूचित जातियों को जदयू से जोडऩे के अभियान में वरीयता मिल रही है।

हाल के दिनों में पूर्व मंत्री श्याम रजक के प्रति मुख्यमंत्री के व्यवहार में बदलाव देखा जा रहा है। 2015 तक वे राज्य कैबिनेट में थे। महागठबंधन की सरकार में उन्हें शामिल नहीं किया गया। उस समय कहा गया कि महागठबंधन के एक दल को उनके नाम पर आपत्ति थी। लेकिन, जदयू के एनडीए में शामिल होने के बाद बनी सरकार में भी उन्हें मंत्री पद नहीं दिया गया। श्याम खुद तो नहीं, समर्थक इसबार उनके मंत्री बनने को लेकर उत्साहित हैं।

विस्तार में भाजपा के विधायक भी शामिल होंगे। भाजपा के अनुसूचित जाति के अलावा सवर्ण विधायक भी उम्मीद लगाए बैठे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के एनडीए से अलग होने के बाद अनुसूचित जातियों के वोट के लिए लोजपा पर भाजपा की निर्भरता बढ़ी हुई है। वह इस निर्भरता को कम करना चाहती है।

विधान परिषद सदस्य संजय पासवान और हिसुआ के भाजपा विधायक अनिल सिंह के कैबिनेट में शामिल होने की चर्चा है। सिंह सवर्ण हैं।


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