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निर्भया के बाद अब नक्सलवाद पर बनाई ये फिल्‍म, कहा- बंदूक से निकलता केवल आतंक

बॉलीवुड में पायल कश्‍यप का नाम नया नहीं। नेवर अगेन निर्भया फिल्‍म बनाकर चर्चा में आईं पायल अब द लास्ट ऑप्शन नक्सलाइट के साथ फिर बड़े पर्दे पर आने की तैयारी में हैं।

By Amit AlokEdited By: Published: Sun, 14 Oct 2018 10:01 PM (IST)Updated: Sun, 14 Oct 2018 11:12 PM (IST)
निर्भया के बाद अब नक्सलवाद पर बनाई ये फिल्‍म, कहा- बंदूक से निकलता केवल आतंक
निर्भया के बाद अब नक्सलवाद पर बनाई ये फिल्‍म, कहा- बंदूक से निकलता केवल आतंक

पटना [अमित आलोक]। बॉलीवुड फिल्म 'द लास्ट ऑप्शन नक्सलाइट' की निर्देशिका पायल कश्यप ने कहा कि आजादी के बाद नक्सलवाद देश के सामने सबसे बड़ी आंतरिक चुनौती है। नक्‍सली मानते हैं कि सत्ता बंदूक की नली से निकलती है। पर हकीकत में ऐसा नहीं है। बंदूक की नली से केवल आतंक निकल सकता है। हिंसा के रास्ते परिवर्तन असंभव है। पायल रविवार को jagran.com से बातचीत कर रहीं थीं।

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फिल्म 'द लास्‍ट ऑप्‍शन नक्सलाइट' मयूरी मोशन फिल्म और रेणुका जगदीश फिल्म्स प्रोडक्शन की संयुक्त प्रस्तुति है। इसका निर्माण बिहार के सुपौल निवासी व मयूरी मोशन फिल्‍म के संजीव कुमार सिंह ने किया है।

हिंसा के रास्ते परिवर्तन संभव नहीं
पायल कहतीं हैं कि बंगाल के एक छोटे से गांव नक्सलबाड़ी से निकला नक्‍सलवाद आज रास्‍ता भटक गया है। इसका प्रसार देश के कई भूभागों के साथ नेपाल तक है। बिहार व झारखंड भी इसकी जद में हैं। भारत के राजनीतिक घटना प्रवाह में ऐसा पहली बार हुआ है कि स्थान विशेष ( नक्सलबाड़ी ) से आरंभ किसी छोटे से आंदोलन ने वाद का रूप ले लिया।
पायल कहतीं हैं कि नक्‍सलवाद के समर्थक मानते हैं कि सत्ता बंदूक की नली से निकलती है। फिल्म 'द लास्ट ऑप्शन नक्सलाइट' के माध्यम से यह बताने की कोशिश की गई है कि बंदूक की नली से केवल आतंक ही निकल सकता है। हिंसा के रास्ते परिवर्तन संभव नहीं है। फिल्‍म यह बताती है कि बंदूक से किसी समस्या का समाधान कभी नहीं हो सकता। बंदूक उठा नक्सली बनने के आगे भी एक राह है, वह है शांति की राह।

फिक्‍शन से अधिक अपील करता फैक्‍ट
नक्सलवाद जैसे विषय पर फिल्‍म क्‍यों बनाया, इस सवाल के जवाब में पायल कहती हैं, ''देखिये, मुझे फिक्शन से ज्यादा फैक्ट अपील करता है। साथ ही रियलिस्टिक फिल्में बनाने से दर्शक ज्यादा जुड़ाव महसूस करते हैं।'' उन्‍होंने बताया कि छत्तीसगढ़ की एक घटना ने उन्‍हें उद्वेलित किया। वहां एक महिला अपने साथ दुर्व्यवहार के बाद नक्सली बन बंदूक उठा लिया। फिल्‍म की कहानी इसी घटना के इर्दगिर्द कहानी बुनी गई।
गुमराह युवकों को मुख्‍य धारा से जोड़ने की कोशिश
पायल कहतीं हैं कि फिल्म के माध्यम से गुमराह व समाज से कटे युवकों को मुख्य धारा से जोड़ने का एक प्रयास किया गया है। फिल्‍म के माध्‍यम से नक्‍सलियों को सरकारी योजनाओं से भी जोड़ने की कोशिश की गई है।

जो विषय दिल को छूता, उसे सेल्यूलॉयड पर गढ़ती
तो फिल्म के माध्यम से आप समाज सेवा भी करना चाहती हैं? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि उनका काम कहानी को परदे पर उतारना है। वे कहानी के माध्यम से कुछ कहना चाहती हैं। जो विषय दिल को छू जाता है, उसे सेल्यूलॉयड पर गढ़ने की तैयारी में जुट जाती हूं। और रही बात समाज सेवा की तो मैं भी समाज का एक हिस्सा हूं। मेरी भी जिम्मेवारी बनती है देश और समाज के लिए कुछ करूं।

फिल्‍मों में मनोरंजन के साथ सामाजिक सरोकार
पायल कहतीं हैं कि फिल्मों का एक अहम हिस्सा होता है मनोरंजन। मनोरंजन तो फिल्म देखने के वक्त तक होता है, जबकि संदेश आप अपने दिमाग के साथ घर तक ले जा सकते हैं और इसी संदेश का समाज पर प्रतीकात्मक प्रभाव पड़ता है। इसलिए मेरी फिल्‍मों में मनोरंजन के साथ सामाजिक सरोकार भी होते हें।

'नेवर अगेन निर्भया' ने दी खास पहचान
पायल बॉलीवुड की गिनी-चुनी महिला निर्देशकाें में शामिल हैं। मूलत: झारखंड के देवघर की रहने वाली पायल झारखंड फिल्‍म टेक्निकल एडवाइजरी कमेटी की सदस्‍य हैं। बतौर निर्देशक पायल का सफर आसान नहीं रहा है। फिल्‍म 'अंखियां बसल तोहरी सुरतिया' से बतौर निर्देशक अपनी पारी शुरू करने पाली पायल बताती हैं, बाधाएं आई, लेकिन हौसले ने रास्‍ता भी दिया। निर्देश के रूप में उनकी पांचवी फिल्‍म 'नेवर अगेन निर्भया' दिल्‍ली के चर्चित गैंग रेप व मर्डर की घटना पर आधारित थी। इस फिल्‍म ने पायल को खास पहचान दी।


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