ओ लाल मेरी पत रखियो बला झूले लाल..
खुले आसमान के नीचे ढोल, नाल, मंजीरा, हारमोनियम आदि वाद्ययंत्रों से निकलते मधुर स्वर गूंज रहे थे।
खुले आसमान के नीचे ढोल, नाल, मंजीरा, हारमोनियम आदि वाद्ययंत्रों से निकलते मधुर स्वर के साथ राजस्थानी पारंपरिक लोक गीत समारोह में चार-चांद लगा रहे थे। ये नजारा शनिवार को बिहार संग्रहालय परिसर के मुक्ताकाश मंच पर देखने को मिला। मौका था अर्थशिला और बिहार संग्रहालय के तत्वावधान में 'राजस्थानी लोक संगीत भुट्टे खान मंगनियार एवं कालबेलिया नर्तकिया' कार्यक्रम के आयोजन का। उद्घाटन संग्रहालय के निदेशक यूसुफ एवं अर्थशिला के संजीव कुमार ने किया। नवरात्र के मौके पर राजस्थान से आए लोक कलाकारों ने अपने पारंपरिक लोक नृत्य एवं गीतों को पेश कर समारोह में चार-चांद लगाकर दर्शकों की तालियां बटोरीं।
कालबेलिया नृत्य से गुलजार हुआ परिसर
समारोह में मंच पर आसीन राजस्थान से आए लोक कलाकारों ने कार्यक्रम की शुरुआत स्वागत गीत 'केसरिया बालम आवोनी पधारो म्हारे देश जी, पियां प्यारी रा ढोला, आवोनी पधारो म्हारे देश' को पेश कर दर्शकों का अभिनंदन करते हुए उनका मनोरंजन कराया। कलाकारों ने राजस्थान के पारंपरिक लोक गीत 'गोरबंद' जिसमें ऊंट के गले में विशेष श्रृंगार कर गोरबंध नखरालो गीत गा दर्शकों का दिल जीता। लोक गीतों में भक्ति रस के गीतों की बयार बहा कलाकारों ने राधा-कृष्ण के प्रेम कहानी को बखूबी दिखाया। गीत के जरिए 'राधा-रानी दे दो मोरे बांसुरी, इस बंशी में राधा तोरे प्राण बसो' को पेश कर कृष्ण और राधा के प्रेम को बयां किया।
'हिचकी' से दिलाई प्रियतम की याद
कलाकारों ने मेवात व अलवर क्षेत्र का लोकप्रिय गीत 'हिचकी' से प्रियतम को याद करते हुए पत्िन के भाव पूर्ण गीत को पेश कर दर्शकों का मन जीत लिया। राजस्थान से आई नर्तकी ने राजस्थान में पानी की किल्लत को नृत्य के जरिए बयां कर गीत गाते हुए अपने दर्द को बयां किया। कलाकारों ने नींबूडा-नींबूडा गीत को पेश कर तालियां बटोरीं। कार्यक्रम के समापन के पूर्व कलाकारों ने राजस्थान की पारंपरिक नृत्य कालबेलिया को पेश कर दर्शकों का दिल जीता। सूफी गीत 'ओ लाल मेरी पत रखियो बला झूले लाल. पेश कर समारोह को यादगार बना दिया।