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पर्यावरण से छेड़छाड़ में कोई भूमिका नहीं, पर भुगत रहा बिहार: नीतीश

राजधानी पटना में जलवायु परिवर्तन के मद्दे पर आयोजित दो दिवसीय कॉन्‍क्‍लेव का उद्घाटन मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार ने किया। इस कार्यक्रम में कई विशेषज्ञ शामिल हो रहे हैं।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Sun, 24 Jun 2018 02:48 PM (IST)Updated: Sun, 24 Jun 2018 08:05 PM (IST)
पर्यावरण से छेड़छाड़ में कोई भूमिका नहीं, पर भुगत रहा बिहार: नीतीश
पर्यावरण से छेड़छाड़ में कोई भूमिका नहीं, पर भुगत रहा बिहार: नीतीश
पटना [राज्य ब्यूरो]। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रविवार को कहा कि देश में पर्यावरण के साथ जो छेड़छाड़ हो रही है उसमें बिहार की कोई भूमिका नहीं है, पर उस छेड़छाड़ का खामियाजा बिहार को भुगतना पड़ रह है। स्थिति इतनी बुरी हो गई कि बिहार का औसत वर्षापात विगत बारह वर्षों में 1200 -1500 एमएम से घटकर 920 एमएम पर पहुंच गया है।
गंगा की अविरलता प्रभावित होने का नुकसान भी बिहार झेल रहा है। मुख्यमंत्री ने राजधानी के सम्राट अशोक कन्वेंशन केंद्र स्थित ज्ञान भवन सभागार में आयोजित पूर्वी भारत जलवायु परिवर्तन कांक्लेव के उद्घाटन सत्र में यह बात कही।
इस मौके पर केंद्रीय पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री डॉ हर्षवर्धन और उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी भी मौजूद थे। छह राज्य क्रमश: बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और असम के प्रतिनिधि इस दो दिवसीय कांक्लेव में शामिल हैैं। मुख्यमंत्री ने इस मौके पर उप मुख्यमंत्री श्री मोदी के परामर्श को मानते हुए यह एलान भी किया कि राज्य सरकार का पर्यावरण एवं वन विभाग अब पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के रूप में जाना जाएगा।
बिहार पर हो रहा जलवायु परिवर्तन का असर
मुख्यमंत्री ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का बिहार पर खासा असर पड़ रहा है। बचपन से सामान्य ज्ञान के रूप में पढ़ते आए हैैं कि बिहार में 15 जून को मानसून आता है पर अब मौसम विभाग लगातार इसके  आने की तारीख बढ़ाता रहता है। औसत वर्षापात 1980 से 2010 तक 1027 एमएम पर सीमित हो गया जबकि इसके पूर्व यह 1200 से 1500 एमएम पर था। पिछले ग्यारह वर्षों में यह औसत 912 एमएम पर आ गया है। विगत बारह वर्षों में मात्र तीन वर्ष ही वर्षापात 1000 रहा।
गंगा की अविरलता का मसला भी उठाया
मुख्यमंत्री ने कहा कि वह प्रधानमंत्री को भी यह बता चुके हैैं कि गंगा में बड़े पैमाने पर गाद जमा होने से इसकी अविरलता प्रभावित हो रही है। इसमें बिहार का कोई योगदान नहीं पर नुकसान हमें हो रहा है। यह सोचने की बात है कि इसे कैसे हटाइएगा।
अपने देश के अंदर की स्थिति को भी देख्रिए
मुख्यमंत्री ने कहा कि पर्यावरण पर अध्ययन करने के क्रम में अपने देश के अंदर की स्थिति को भी देखिए। आंकड़ों की मानें तो बिहार में जब गंगा नदी प्रवेश करती है तो 400 क्यूमेक्स पानी बक्सर में आता है। जबकि बिहार की सीमा के बाहर जब गंगा निकलती है तो पानी 1600 क्यूमेक्स हो जाता है। बिहार से ही गंगा नदी में पानी जा रहा है। बिहार गंगा के प्रवाह को बढ़ा रहा है पर गाद की वजह से समस्या हमारे खाते में आ रही।
गंगा के प्रवाह को डैम बनाकर रोका गया
मुख्यमंत्री ने कहा कि गंगा के साथ खूब छेड़छाड़ की गई है। अपस्ट्रीम में टिहरी, विष्णुप्रयाग, हथिनी कुंड और नरौरा आदि में पानी को डैम बनाकर रोका गया। जरूरत इस बात की है कि डैम के पानी का पचास प्रतिशत छोड़ें तभी गंगा में अविरलता आएगी। जलवायु परिवर्तन के बारे में सोचेंगे तो इन सब पहलुओं पर भी गौर करना होगा।

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