टीवी, कंप्यूटर व मोबाइल की चकाचौंध में गुम होती जा रही रेडियो की दमदार आवाज
यह आकाशवाणी है। अब आप पुर्णेन्दू शेखर से राष्ट्रीय समाचार सुनेंगे। यह विविध भारती है, रात के दस बजे हैं प्रस्तुत है छाया गीत..।
यह आकाशवाणी है। अब आप पुर्णेन्दू शेखर से राष्ट्रीय समाचार सुनेंगे। यह विविध भारती है, रात के दस बजे हैं प्रस्तुत है छाया गीत..। बहनों, भाईयों आपका दोस्त अमीन सयानी लेकर आया है सदाबहार गीतों से सजी गीत माला..। यह सारे दमदार आवाज एक समय में रेडियो के जरिए हर घर-आंगन में कभी गूंजा करते थे। शहर से लेकर गांव के खेत-खलिहान तक में इनकी पहचान होती थी। रेडियो के ये आवाज आज भी गूंजते हैं। लेकिन इसमें बहुत हद तक कमी आ गई है। सूचना क्रांति के दौर में रेडियो आज आम आदमी से दूर होता जा रहा है। या यूं कहें कि इसने नई तकनीक के साथ गठजोड़ करते हुए अपनी संरचना बदल ली है। आधुनिक चैनलों ने रेडियो को पीछे छोड़ा
-लकड़ी के तख्ते या प्लास्टिक के कवर से ढके इलेक्ट्रॉनिक के पार्ट पूर्जे को मिलाकर रेडियो होता है। इसके आवाज सेटेलाइट में रेडियो तरंग से ध्वनि तरंगों में परिवर्तित होकर लोगों के कानों तक पहुंचते हैं। एक समय में यह रेडियो मनोरंजन से लेकर शिक्षा व सूचना संप्रेषण का अहम हिस्सा हुआ करता था। जो कि अब मुश्किल से ही किसी के घर में दिखाई पड़ते हैं। इनकी जगह आधुनिक सूचना संदेश उपकरण मसलन टीबी, कंप्यूटर, मोबाइल, इंटरनेट ने ले ली है। वैसे आज भी यह रेडियो सभी मोबाइल, कंप्यूटर व टीवी के डिजीटल सेट अप बॉक्स के जरिए सुने जा सकते हैं । लेकिन आधुनिकता की चकाचौंध से लबरेज समाचार चैनल, गीत-संगीत, धारावाहिक व फिल्मों के चैनल के आगे रेडियो काफी पीछे छुटता हुआ दिख रहा है। गरीबों में बांटा गया था रेडियो, 80 फीसदी हुए खराब
-नवादा जिले के सभी 187 पंचायतों के अनुसूचित जाति टोलों में सरकारी स्तर से रेडियो बांटा गया था। जानकारी के मुताबिक साल 2012-13 में जिले के अधिकांश अनुसूचित जाति के टोलों के लाभुकों के बीच रेडियो बंटा था। मुख्यमंत्री रेडियो योजना का लाभ लेने के लिए तब लाभुक को कूपन दिया गया था। यह कूपन महादलित विकास मिशन बिहार, पटना से जारी किया गया था। विकास मित्र सुभाष कुमार बताते हैं कि बीडीओ कार्यालय से ये रेडियो लाभुकों को दिया गया था। ताकि सरकार की जो भी कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा रही है उससे गरीब परिवार अवगत हों। हालांकि वर्षों पहले बांटा गया यह रेडियो आज के दौर में खराब हो चुका है। एक आकलन के मुताबिक 20 फीसदी लाभुकों के यहां आज भी ये रेडियो किसी तरह से बज रहे हैं। अब बाजार में ढूंढे से मिलता है रेडियो
-नवादा में वैसे तो दर्जनों इलेक्ट्रॉनिक्स दुकानें हैं लेकिन रेडियो की उपलब्धता की बात की जाए तो बमुश्किल से एक या दो दुकान में ही रेडियो बिकती है। स्टेशन रोड में बीते 17 साल से इलेक्ट्रॉनिक्स दुकान चला रहे गोकुल कुमार बताते हैं कि अब रेडियो खरीदार नाम मात्र के ही आते हैं। एक दशक पहले तक महीने में 100-150 रेडियो बिक जाया करते थे जो अब मुश्किल से महीने में 2-3 रेडियो ही बिक पाता है। एक अन्य दुकानदार बताते हैं कि पहले तो रेडियो की सप्लाई होती भी थी लेकिन अब वह बंद हो गई है। नवादा शहर के स्टेशन रोड स्थित राजपाल होटल में आज भी रेडियो बजता है। इधर, भाकपा माले के युवा कार्यकर्ता भोला राम हर रोज रेडियो के जरिए बीबीसी हिन्दी समाचार सुनते हैं। वे बताते हैं कि उन्हें रेडियो पर समाचार सुनना पसंद है। छात्र जीवन से ही वे रेडियो को साथ रखते हैं।
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टीवी, कंप्यूटर आ जान से रेडियो को अब कोई नहीं खोजता। कंपनी भी सप्लाई नहीं देती है। एक तरह से देखें तो रेडियो अब बाजार से गायब हो गया है।
नवल प्रसाद, दुकान स्टाफ(फोटो: 18)
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करीब 20 साल की उम्र से रेडियो बनाता आ रहा हूं। बीते कुछ वर्षों से अब एम्पलीफायर बनाने का काम करता हूं। अब रेडियो ना तो कोई खरीदता है और ना ही बनवाता है। हालांकि रेडियो की सूचनाएं प्रमाणिक मानी जाती है। नवादा में रेडियो को सुनने वाले अब भी कुछ लोग हैं। उन्हीं की रेडियो यदि खराब हो जाती है तो उनका रेडियो देख लेता हूं।
रामजी प्रसाद, स्टेशन रोड, रेडियो मिस्त्री(फोटो: 17)