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दूसरों के मुंह में लाली लाने वाले किसानों के चेहरे पीले

लाखों की पूंजी और कड़ी मेहनत के बावजूद पान कृषकों को उनकी उपज का उचित मूल्य।

By JagranEdited By: Published: Thu, 07 Dec 2017 09:38 PM (IST)Updated: Thu, 07 Dec 2017 09:38 PM (IST)
दूसरों के मुंह में लाली लाने वाले किसानों के चेहरे पीले
दूसरों के मुंह में लाली लाने वाले किसानों के चेहरे पीले

नवादा। लाखों की पूंजी और कड़ी मेहनत के बावजूद पान कृषकों को उनकी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है। जिस कारण दूसरों के चेहरे पर लाली लाने वाले किसानों के चेहरे पीले पड़ रहे हैं। सूबे में पान की खेती में नवादा का प्रमुख स्थान है। जिले के दर्जन भर गांवों में पान की खेती बड़े पैमाने पर होती है। यहां के मगही पान का पूरे देश में नाम है। यहां का उपज वाराणसी के अलावे देश के हर कोने में निर्यात होता है। विदेशों में भी यहां का पान भेजा जाता है। इसकी खेती में किसानों को काफी मेहनत करनी पड़ती है। जिसमें किसान को हर वक्त सावधान रहना पड़ता है। समय पर पटवन से से लेकर अन्य देखभाल किया जाता है। लेकिन इस वर्ष बाजार में मंदी दिख रही है। ऐसे में किसान हताश हैं।

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जिले के इन जगहों पर होती है पान की खेती

- हिसुआ के कैथिर, ¨सघौली, ढेउरी, डफलपुरा, तुंगी, मंझवे, बेलदारी, दोना, नारदीगंज प्रखंड के हड़िया, पचिया, पकरीबरावां प्रखंड के डोला, छतरवार, कौआकोल प्रखंड के रामबजार, ईंटपकवा ,बडराजी आदि गांवों में पान की खेती की खेती होती है।

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पान शीतगृह का लाभ नहीं

-पान के गोदाम यानी शीतगृह जहां पान के पत्तों को ज्यादा दिन तक सुरक्षित रखा जाता है, इसका भी लाभ किसानों को नहीं मिल रहा है। हिसुआ के कैथिर ग्राम निवासी राजेश चौरसिया, ज¨वद्र चौरसिया, मदन चौरसिया, सुरेन्द्र चौरसिया आदि ने बताया कि हम अपने घरों में ही पान को एक सप्ताह तक सुरक्षित रख लेते हैं और फिर मंडी में ले जाकर बिक्री करते हैं। यहां जितने भी शीत भवन बने हुए हैं वह जीर्णशीर्ण अवस्था में है। उसका किसानों को कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है।

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कहते हैं किसान

-पिछले कई वर्षों की अपेक्षा पान के भाव में काफी गिरावट आई है। पान की ढोली का दाम 50 से 60 रुपए हुआ करता था, जो अब 5 से 10 रुपए प्रति ढोली के हिसाब से मिल रहा है।

शैलेंद्र चौरसिया, कैथिर।

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- पान का एक बरेठा में एक से डेढ़ लाख रुपए की लागत आती है, जिसका आमद हमें 2 से 3 लाख होता था। इस वर्ष अच्छी उपज के बावजूद पूंजी निकल जाए यह काफी होगा।

उमेश चौरसिया, तुंगी।

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- सरकारी उपेक्षा के कारण हमारा व्यवसाय पिछड़ता जा रहा है। हमारा पूरा परिवार इसकी खेती पर निर्भर है। सुबह से शाम तक पान की खेती में काफी मेहनत करते हैं। इसमें मजदूरों को भी भोजन देकर 2 सौ से 3 सौ रुपए प्रतिदिन देना होता है।

भोला चौरसिया।

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-सामानों के भाव महंगे होते जा रहे हैं और इसका मुनाफा घटता जा रहा है। कुछ वर्षों की अपेक्षा काफी कम दामों में हम पान बिक्री कर रहे हैं। पान का बाजार में भाव गिरा हुआ है।

जितेंद्र चौरसिया।

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-बांस ,म•ादूरी ,कीटनाशक दवाइयां समेत अन्य सामान का कीमत अधिक हो गया है, जिस कारण कई किसान तो अपना पुश्तैनी धंधा छोड़कर दूसरे कामों में लग गए हैं।

महेंद्र चौरसिया।


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