चिकित्सीय सेवा में फिसड्डी है वारिसलीगंज का पीएचसी व रेफरल अस्पताल
वारिसलीगंज की आबादी को स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के लिए प्रखंड में दो अस्पताल हैं लेकिन आपात चिकित्सीय सेवा सिर्फ वारिसलीगंज पीएचसी में उपलब्ध है वह भी बेहतर नहीं है।
वारिसलीगंज की आबादी को स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के लिए प्रखंड में दो अस्पताल हैं, लेकिन आपात चिकित्सीय सेवा सिर्फ वारिसलीगंज पीएचसी में उपलब्ध है, वह भी बेहतर नहीं है। किसी भी प्रकार की आपात स्थिति से निपटने में अस्पताल पूरी तरह से सक्षम नहीं है। जब कभी घटना या दुर्घटनाग्रस्त मरीज अस्पताल पहुंचते हैं तो चिकित्सक, स्वास्थ्य कर्मी, ऑक्सीजन, एम्बुलेंस, दवा आदि किसी न किसी की कमी के कारण अस्पताल में हंगामा मचता है। एक तो साधन की कमी दूसरा चिकित्सकों की उदासीनता से वारिसलीगंज का पीएचसी सिर्फ मरीजों को रेफर करने व मारपीट का जख्म प्रतिवेदन लिखने का केंद्र बनकर रह गया है। कभी दवा और चिकित्सक की कमी तो कभी एम्बुलेंस खराब रहने से मरीजों व उनके परिजनों में असंतोष पैदा होता रहता है।
--------------------
साधन-संसाधन की है कमी
-वारिसलीगंज नगर पंचायत क्षेत्र में दो अस्पताल 30 बेड का रेफरल और 06 बेड का पीएचसी कार्यरत है। लेकिन चिकित्सक से लेकर अन्य साधन की कमी हमेशा बनी रहती है। जो साधन उपलब्ध हैं उसका सही रख रखाव नहीं होने से अस्पताल का समुचित लाभ क्षेत्र वासियों को नहीं मिल पाता है। पीएचसी में आपात स्थिति के लिए चार ऑक्सीजन सिलिडर उपलब्ध है, लेकिन जब जरूरत होती है तो किसी में गैस ही नहीं होता है। रेफरल में एक्स रे टेक्नीशियन तो है परंतु एक्स रे मशीन ही उपलब्ध नहीं है। इसी प्रकार से महिला और पुरुष के लिए अलग-अलग शौचालय बना है लेकिन नलजल खराब होने से महिलाओं को खुले में शौच जाने की विवशता होती है। अस्पताल में आला, बीपी इंस्ट्रूमेंट तथा थर्मामीटर के बगैर चिकित्सक इलाज करते हैं। पीएचसी में जो बेड है वह प्रसव मरीजों के लिए नाकाफी है।
-------------------
लू पीड़ितों की संख्या बढ़ी तो व्यवस्था चरमराई
-कुछ दिनों पूर्व तक प्रखंड में लू से प्रभावित मरीजों की संख्या में अचानक बढ़ोतरी से पीएचसी प्रशासन की व्यवस्था चरमरा रही थी। कई चिकित्सकों की ड्यूटी के प्रति लापरवाही भी इस दौरान सामने आई। अस्पताल में नियुक्त अधिकांश चिकित्सक साप्ताहिक ड्यूटी कर घर चले जाते हैं। फलत: कभी कभी अस्पताल का आपातकालीन सेवा चिकित्सक के आभाव में चरमरा जाती है। एक सप्ताह पूर्व पीएचसी में एक प्रसव पीड़ित महिला अत्यधिक रक्तस्त्राव के कारण आपात स्थिति में थी, लेकिन चिकित्सक गायब थे। तब पीएचसी के रोगी कल्याण समिति के सदस्य अशोक कुमार ने जिलाधिकारी को व्हाट्सएप से सूचना दिया। फिर भी कोई चिकित्सक ड्यूटी पर नहीं पहुंच सके। फलत: प्रसव पीड़िता को परिजनों ने किसी निजी क्लिनिक ले गया। इस प्रकार की समस्या आए दिन मरीजों को जूझना पड़ता है। समाचार पत्रों में स्थान भी मिलता है, लेकिन वरीय अधिकारी इन समस्याओं पर संज्ञान लेना भी उचित नहीं समझते हैं। -------------------
क्या है चिकित्सक की संख्या
- पीएचसी में छह चिकित्सकों का पद सृजित है। जिसमें प्रभारी समेत चार नियुक्त हैं। नर्स 42 की जगह 33, ड्रेसर एक भी नहीं, फार्मासिस्ट 4 की जगह दो नियुक्त हैं। आम तौर पर यहां चिकित्सकों को ड्यूटी का कोई रोस्टर नहीं है। सभी साप्ताहिक चिकित्सक हैं। यानि सप्तान में एम दिन ड्यूटि करते हैं। ड्यूटी वाले दिन अस्पताल में रूकते हैं। कभी-कभी तो वे भी गायब हो जाते है। ऐसे में सीरियस मरीज को भी रात में परेशानी होती है। घंटो चिकित्सक के आने की राह ताकना पड़ता है। फिर भी गारंटी नहीं होती कि चिकित्सक आएंगे ही। महिला चिकित्सक की कमी कुछ दिनों पूर्व दूर हुई है, परंतु उनका आवास बिहार शरीफ में रहने से साप्ताहिक ड्यूटी करती हैं। उनके पति डॉ. रामकुमार ही वारिसलीगंज में प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी है। उनका भी आवास बिहारशरीफ है। जबकि डॉ. के.के. धीरज और डॉ. अमित गुप्ता भी पटना से आते जाते हैं। एक डॉक्टर धनंजय हैं जो वारिसलीगंज स्टेशन रोड में रहते हैं।
--------------------------
कहते हैं प्रबंधक
-फिलहाल नवादा सदर अस्पताल के बराबर दवा यहां उपलब्ध है। एम्बुलेंस ज्यादातर दिन खरब रहने से आपातकालीन स्थिति में पेरशानी होती है। अस्पताल परिसर में चिकित्सकों के लिए बना आवास अन्य स्वास्थ्यकर्मियों का बसेरा बना है। वर्तमान ने जिन चिकित्सक की पोस्टिग है वे अस्पताल में रहना उचित नहीं समझते हैं।
राजेश कुमार सिन्हा, प्रबंधक, पीएचसी वारिसलीगंज।
लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप