यह है अपने गांव का 'गब्बर', इसके नाम पर बच्चों को डराती हैं माताएं...
नवादा में 16 साल का एक किशोर अपने विकृत चेहरे के कारण चर्चा में है। वह खुद भी अपना चेहरा आईने में देखकर डर जाता है। गरीब पिता के पास इतने पैसे नहीं कि बेहतर इलाज करा सकें।
पटना [अमित आलोक]। फिल्म 'शोले' का एक प्रसिद्ध संवाद है, 'बेटा सो जा, नहीं तो गब्बर आ जाएगा।' बिहार के नवादा के तिलकचक गांव में भी माताएं अपने बच्चाें को कुछ ऐसे ही सुलाती हैं। लेकिन, यहां 'गब्बर सिंह' एक किशोर है। उसके विकृत चेहरे पर जगह-जगह लटके मांस के लोथड़े देखकर इलाके में उसके नाम पर बच्चों को डराया जाता है।
हालत यह है कि स्कूल ने उसे पढ़ाने से इंकार कर दिया है। माता-पिता की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं कि उसका बाहर ले जाकर इलाज करा सकें। व्यवस्था से निराश उसके पिता को अब केवल ऊपरवाले पर आस है।
नवादा के तिलकचक गांव में 11 साल पहले पांच साल के मिथुन के चेहरे पर एक फुंसी हो गई। पिता रामजी चौहान ने बताया कि गांव के डॉक्टर ने दवाएं दीं, लेकिन मर्ज बढ़ता गया। तीन दिनों के भीतर जब उसका चेहरा विकृत और शरीर लाल पड़ गया, तब ग्रामीणों ने इसे चेचक समझ लिया। गांववालों के परामर्श पर कि ‘माता’ (चेचक) के ठीक होने का इंतजार किया, लेकिन स्थिति लगातार बिगड़ती चली गई।
पिता रामजी चौहान के अनुसार मिथुन को नवादा सदर अस्पताल ले जाने पर डॉक्टरों ने बीमारी को दवा का रिएक्शन बताते हुए बताया कि इसका इलाज लंबा चलेगा। लेकिन, लगातार इलाज के बावजूद मिथुन का चेहरा बिगड़ता गया।
मिथुन अब 16 साल का हो चुका है। बीमारी के कारण वह ठीक से बोलना तक नहीं सीख पाया है। जब उसे देखकर बच्चे डरने लगे तो गांव के स्कूल ने एडमिशन से मना कर दिया। मिथुन बताता है कि वह खुद भी अपना चेहरा आईने में देखकर डर जाता है।
गांव के लोगों ने बताया कि वे मिथुन को देखने के अभ्यस्त हो चुके हैं, लेकिन नए लोग व बच्चे उसे देखकर डर जाते हैं। बड़े बच्चे उसे देखकर 'भूत-भूत' चिल्लाकर चिढ़ाते हैं। इस कारण वह अधिकतर समय घर में ही रहता है। कहता है, जब घर में मन नही लगता तो खेतों की तरफ निकल जाता है।
मिथुन के पिता बताते हैं कि वे बेटे को लेकर नवादा से लेकर गया व पटना तक के कई अस्पतालों में जा चुके हैं। लेकिन, पैसे की तंगी के कारण दिल्ली-मुंबई आदि महानगरों में जाकर इलाज नहीं करा पा रहे हैं। अब तो केवल दिन काट रहे हैं।
दैनिक मजदूरी कर पेट पालने वाले रामजी चौहान ने कई जगह इलाज के लिए आर्थिक मदद मांगी। हर उस सरकारी चौखट तक गए, जहां से कुछ उम्मीद जगी। लेकिन, अभी तक कोई मदद नहीं मिली है। बीपीएल श्रेणी में आने वाले रामजी चौहान को न तो इंदिरा आवास मिला है, न ही राशन कार्ड। रामजी चौहान को अब केवल ऊपर वाले के चमत्कार की ही आस है।