बंद पड़ी चरखे की खट-खट, नहीं हो रही कपड़ों की बुनाई
कोरोना कहर के चलते जारी लॉकडाउन के कारण सिल्क के कपड़ों की बुनाई का काम पूरी तरह ठप है।
कोरोना कहर के चलते जारी लॉकडाउन के कारण सिल्क के कपड़ों की बुनाई का काम पूरी तरह ठप है। बुनकरों के घर चरखे की खट-खट की आवाज मौन है। अब अपना और अपने परिवार के भरण-पोषण की समस्या सामने आई तो कई बुनकरों ने मजदूरी, सब्जी बेचने, घूम-घूमकर मनिहारी का सामान बेचने का काम शुरू कर दिया। जिला मुख्यालय से तकरीबन पांच किमी की दूरी पर कादिरगंज बाजार में करीब ढाई सौ बुनकर सिल्क के कपड़े की बुनाई का काम करते हैं। लेकिन कोरोना ने उनके इस पुश्तैनी धंधे पर विराम लगा दिया। अपना दर्द बयां करते हुए बुनकरों ने बताया कि कच्चा माल नहीं मिल रहा। झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश आदि राज्यों से कुकुन आता था, लॉकडाउन के चलते वह नहीं आ रहा। ऐसे में चरखे की आवाज कहां से आएगी? पेट पर आफत है। कई बुनकरों के यहां लाखों का माल तैयार है। लेकिन बाजार तक नहीं पहुंचा पा रहे हैं।
गौरतलब है कि कादिरगंज का सिल्क क्षेत्र में काफी प्रसिद्ध है। यहां के सिल्क से कुर्ता, शर्ट व साड़ी बनाकर बिहार समेत कई राज्यों में बेचा जाता है। बुनकर मुन्ना कुमार, श्रीराम प्रसाद, गया राम, विनोद कुमार, नीतीश कुमार, रणजीत कुमार आदि बताते हैं, उनकी आजीविका का मुख्य साधन यही है। लेकिन कोरोना कहर से रोजगार बंद है तो परिवार की आíथक स्थिति चरमरा गई है। दूसरा काम करने की है विवशता
-चरखे की खट-खट बंद हुई तो रोजी-रोटी पर आफत आ गई। बुनकर नवीन कुमार भारती बताते हैं, लॉकडाउन के कारण स्थिति दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है। अब तो दूसरा काम करने की विवशता है। वे बताते हैं, कई बुनकर सब्जी बेचने का काम कर रहे है तो कई कुली का। कुछ लोगों ने घूम-घूमकर मनिहारी का सामान बेचना शुरू कर दिया है। परिवार की परवरिश के लिए कुछ तो करना ही पड़ेगा। सिल्क के कपड़े की बुनाई के लिए कुकुन मिल नहीं रहा तो वर्षों से चल रहा यह काम कैसे होगा। अब तो स्थिति सामान्य होने पर ही अपना यह पुश्तैना धंधा शुरू हो सकेगा, लेकिन निकट भविष्य में ऐसा कुछ नहीं दिख रहा। किशोरी राम बताते हैं, कच्चा माल नहीं रहने के कारण उनके घर का चरखा तो बिल्कुल बंद पड़ा है। अब सरकार मदद करे तो बात बने। चूंकि कच्चा माल खरीदने के लिए भी पैसे नहीं हैं। मास्क निर्माण में जुटे कई युवा
-वर्तमान हालात को देखते हुए बुनकरों की नई पीढ़ी मास्क निर्माण में जुटी है। खादी के कपड़ों से मास्क बनाने का काम शुरू कर दिया है। गांव के प्रह्लाद व उनके अन्य साथी कहते हैं कि जीविका चलाने के लिए कुछ तो करना ही पड़ेगा। फिलहाल मास्क का डिमांड बाजार में है तो इसी कार्य में जुट गए हैं। वे सभी शासन-प्रशासन की तरफ नजर गड़ाए हैं कि कम से कम मास्क बनाने का ही ऑर्डर मिल जाए, जिससे रोजी-रोटी चल सके।