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अनुदान मिलने में विलंब से परेशान किसान नहीं ले रहे हैं मूंग का बीज

किसानों को सरकार द्वारा बीज पर दिए जाने वाले अनुदान राशि की भुगतान में अधिकारियों के लेटलतीफी के कारण प्रखंड के किसान अनुदान आधारित बीज लेने से परहेज कर रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Sun, 24 May 2020 09:56 PM (IST)Updated: Sun, 24 May 2020 09:56 PM (IST)
अनुदान मिलने में विलंब से परेशान किसान नहीं ले रहे हैं मूंग का बीज
अनुदान मिलने में विलंब से परेशान किसान नहीं ले रहे हैं मूंग का बीज

किसानों को सरकार द्वारा बीज पर दिए जाने वाले अनुदान राशि की भुगतान में अधिकारियों के लेटलतीफी के कारण प्रखंड के किसान अनुदान आधारित बीज लेने से परहेज कर रहे हैं। प्रखंड कृषि कार्यालय में उपलब्ध दलहन, तिलहन व धान आदि का अनुदानित बीज किसान लेने से बचना चाहते हैं।

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प्रखंड के किसान गेहूं की फसल लगने के बाद शेष बचे खेतों में किसानों द्वारा मकई, मूंग आदि की फसल लगाई जाती है। जो इस समय खेतों में लहलहा रही है या फल देना शुरू कर दिया है। तब जब किसानों के खेतों में मूंग की फसल तैयार होने होने को है। तब सरकारी स्तर का अनुदानित मूंग बीज प्रखंड कृषि कार्यालय किसानों के बीच देना शुरू किया है। कृषि अधिकारी बताते हैं कि करीब 15 दिन पहले आया पूर्ण सब्सिडी युक्त मूंग का बीज लेने किसान नहीं पहुंच रहे हैं। कारण सरकार द्वारा भेजे गए बीज पर मिलने वाले अनुदान की राशि काफी समय बाद भी किसानों के खाते में नहीं पहुंचने के कारण किसान रुपया खर्च कर अनुदान के लिए इंतजार नहीं करना चाहते हैं। अनुदान आधारित बीज खरीद करने के समय किसानों को कृषि विभाग के अधिकारियों द्वारा बताया जाता है कि अनुदान की राशि कुछ दिनों के बाद आपके के खाते में वापस कर दिया जाएगा। लेकिन, प्रखंड के सैकड़ों किसान जो 2017-18 और 18-19 के खरीफ फसल बीज जिसमें मुख्य रूप से चना, धान आदि का बीज प्रखंड कृषि कार्यालय से अनुदान की राशि वापस आ जाने आश्वासन के बाद लिया था। कृषि विभाग के अधिकारियों के उदासीनता के कारण 2 वर्ष से अधिक बीत जाने के बाद भी किसानों के खाते में अनुदान की राशि नहीं पहुंची है। जिस कारण कृषि अधिकारियों के आश्वासन के बाद भी अनुदान आधारित बीज खरीदने से किसान कतराने लगे हैं। प्रखंड के अधिकारी भी बताते हैं कि देर से बीज उपलब्ध होने के साथ-साथ अनुदान राशि देर से किसानों को मिलने के कारण अनुदानित बीज किसानों के बीच बेचना टेढ़ी खीर हो गई है।


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