Move to Jagran APP

कुआं का अस्तित्च हुआ समाप्त, तालाबों पर भी आई आफत

नवादा। जिले में कुआं का अस्तित्व लगभग समाप्ति की ओर है। तो तालाबों पर भी आफत आ गई है। सरकारी स्तर

By JagranEdited By: Published: Fri, 01 Jun 2018 11:49 PM (IST)Updated: Fri, 01 Jun 2018 11:49 PM (IST)
कुआं का अस्तित्च हुआ समाप्त, तालाबों पर भी आई आफत
कुआं का अस्तित्च हुआ समाप्त, तालाबों पर भी आई आफत

नवादा। जिले में कुआं का अस्तित्व लगभग समाप्ति की ओर है। तो तालाबों पर भी आफत आ गई है। सरकारी स्तर पर तालाबों के निर्माण के लिए अनुदान की व्यवस्था है, लेकिन लोगों की इस ओर रूची नहीं है। रूची हो भी कैसे तालाबों में पानी के लिए भी बो¨रग की आवश्यकता है। हालात यह है कि अब मंदिरों में पूजा पाठ के लिए कुआं का जल मिलना मुश्किल हो रहा है। ऐसे में लोगों की निर्भरता चापाकलों पर बढ़ी है। इसके पूर्व तक चापाकलों का पानी मंदिरों में वर्जित था, लेकिन विकल्प के अभाव में चापाकलों का पानी मजबूरी बन गया है। पहले कुआं घरों का शान हुआ करता था तो पनघट पर पानी लेने की भीड़ हुआ करती थी। अब कुआं सिर्फ कनी रह जाएगी। पनघट की पनिहारिन गायब हो चुकी है, जिसका स्थान चापाकलों ने ले लिया है।

loksabha election banner

कितना था कुआं

- जिले में कितना कुआं है, इसका कोई सरकारी आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। एक अनुमान के अनुसार जिले में कुओं की संख्या 17650 है, जिसमें से 56 का अतिक्रमण कर लिया गया है। 1967 के अकाल में ¨सचाई के लिए जिले में पांच हजार कुओं का निर्माण कराया गया था। सभी कुंए 30 फीट गहरा व 12 फीट चौड़ा था। अब इन कुआं का अता पता तक नहीं है। पीने का पानी के लिए जमींदारों द्वारा जिले के विभिन्न गांवों में करीब दो हजार कुआं का निर्माण कराया गया था। सारा कुआं अब भी मौजूद है जिसमें बरसात के चार महीने पानी रहता है। लेकिन इसका उपयोग पीने के लिए नहीं किया जाता। सरकारी व निजी स्तर पर घरों में लगाए गए चापाकल से लोग पानी पी रहे हैं। कुआं का जिर्णोद्धार की कोई योजना सरकार के पास नहीं है।

कितना है तालाब

- जिले में कभी जल संचय के लिए तालाबों का निर्माण कराया गया था। इससे से खेतों की ¨सचाई भी हुआ करती थी। इसके पानी का उपयोग पशुओं के पीने में हुआ करता था। वारिसलीगंज में तालाबों की भरमार थी। सरकारी आंकड़ा के अनुसार जिले में 967 तालाब हैं, जिसमें से कई अतिक्रमण का शिकार हो चुके हैं। रसलीगंज का अपसढ़ सहित करीब 350 के आसपास मत्स्य पालन के लिये तालाबों का निर्माण कराया गया है। इनमें से अधिकांश तालाब सूखे पड़े हैं।

सरकार की ओर से नए तालाब के लिए अनुदान की व्यवस्था है। इसके लिए फिलहाल 35 लाख रुपये मत्स्य विभाग को उपलब्ध हुआ है। कुआं निर्माण व उसके जिर्णोद्धार की काई योजना नहीं है। तालाब के लिए आवंटन भी उपलब्ध है लेकिन लोगों की रूचि नहीं है। कारण स्पष्ट है गर्मी के दिनों में भूजलस्तर में लगातार गिरावट। फिर जल संचय एक समस्या बनती जा रही है तो जिले में वर्षाचक्र गड़बड़ाने लगा है।

कहते हैं अधिकारी

- कुआं व तालाब ¨सचाई का सबसे बड़ा साधन हुआ करता था। लेकिन भूजलस्तर में लगातार गिरावट के कारण इस ओर न तो सरकार का ध्यान है न ही किसानों का। तालाबों के प्रति मछली पालकों का ध्यान है, लेकिन भूजलस्तर रोड़े अटका रहा है। बावजूद कृषि की बैठकों में इसकी उपयोगिता के साथ इससे होने वाले नकदी लाभ की जानकारियां उपलब्ध कराकर लोगों को जागरूक करने का काम किया जा रहा है।

सुनील कुमार, जिला कृषि पदाधिकारी, नवादा।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.