वो जो मर रहा कर खुदकुशी मेरे देश का किसान है ..
ऑनलाइन कवि सम्मेलन में कवियों ने बांधा समां जासं नवादा जनविरोधी शासक को
ऑनलाइन कवि सम्मेलन में कवियों ने बांधा समां
फोटो-13 जासं, नवादा : ''जनविरोधी शासक को ललकारने के लिए कविताएं गढ़ती हैं विद्रोह के सुर।'' आज जुटान मंच के 12वें आयोजन में देश के प्रतिष्ठालब्ध गजलकार और हिदी गजल का किसान चेहरा बल्ली सिंह चीमा ने इसी संदेश के साथ शाम-ए-गजल 3 का आगाज किया। '' वो जो मर रहा कर ़खुदकुशी मेरे देश का किसान है / कहो गर्व से और शान से मेरा देश भी महान है '' जैसे सधे शेर से उन्होंने किसान संवेदना को उकेरा। मौसम की मार झेलते रहने वाले किसानों के दर्द को शब्द देते हुए उन्होंने कहा - '' कभी मौसमों ने हंसा दिया कभी मौसमों ने रुला दिया ।'' फुहारों से भरे नगरों को गीला कर गया मौसम। इंटरनेट वेव के जुटान मंच पर अपनी गजल परोसते हुए बल्ली सिंह चीमा ने नोटबंदी से लेकर कोरोना काल तक और अभी अभी संसद की घटना और किसान संवेदना तक को उजागर किया। जुटान के संयोजक शम्भु विश्वकर्मा ने हासिए के लोगों की संघर्ष गाथा गजल में पिरो कर प्रस्तुत किया। ''आज भी सब याद है उस आग का धुआं / झोपडी के साथ ही जज्बात का धुआं। इसकी बानगी है '' संचालन करते हुए समदर्शी अशोक ने '' भात जैसे ही डभ-डभ डभकने लगे / पास चूल्हे के बच्चे सरकने लगे '' जैसे संवेदनशील शेर को तरन्नुम में स्वर दिया तो देश के कई चुनिदे गजलकार वाह-वाह कर उठे । बल्ली सिंह चीमा ने जुटान के इस पहल की सरहना करते हुए कहा कि आखिरी आदमी के पक्ष में खड़ा आदमी ही सच्चा साहित्यकार है और जुटान इस धर्म का बेहतर निर्वाह कर रहा है।