डर के माहौल में पढ़ते हैं प्राथमिक विद्यालय तैरानी के बच्चे
सरकार ग्रामीण इलाके में शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। लेकिन अध
सरकार ग्रामीण इलाके में शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। लेकिन अधिकारियों की उदासीनता के कारण योजना सही तरीके से धरातल पर उतर नहीं पाती है। आलम ये कि विद्यालय में शिक्षक हैं,तो छात्र नहीं और छात्र हैं,तो शिक्षक नहीं। भवन है,तो शिक्षक व छात्र नहीं है। शिक्षक व छात्र दोनो हैं,तो भवन नहीं। इस परिस्थिति में बच्चों को गुणवत्ता शिक्षा कैसे मिल पाएगी,यह बड़ा सवाल बना हुआ है। आज भी स्थित ये कि कई विद्यालयों को भवन भी नसीब नहीं हो पाया है। तो कई विद्यालय के जर्जर भवन में संचालित हो रहा है। नारदीगंज प्रखंड के नवसृजित विद्यालय तरौनी का हाल भी कुछ ऐसा ही है।
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ननौरा विद्यालय के जर्जर भवन में संचालित है स्कूल
-तरौनी विद्यालय उत्क्रमित मध्य विद्यालय ननौरा में संचालित हो रहा है। जिस भवन में स्कूल संचालित हो रहा है वह पुराना व जर्जर अवस्था में है। जर्जर भवन में विद्यालय संचालित होने के कारण शिक्षक व बच्चे सहमे हुए रहते है। सभी की जान जोखिम में रहती है। भवनहीन विद्यालय होने के कारण विभाग ने इस विद्यालय को अगस्त 2017 में यहां शिफ्ट कर दिया। ऐसे में एक ही परिसर में दो विद्यालय संचालित हो रहा है। एक ओर नए भवन में उत्क्रमित मध्य विद्यालय ननौरा व दूसरी ओर पूराने व जर्जर भवन में नवसृजित प्राथमिक विद्यालय तरौनी के बच्चे शिक्षा पा रहे हैं। भवन में खिड़की व किबाड़ तक नहीं है। एक कमरे व बरामदा पर बच्चों को शिक्षा दी जा रही है। विद्यालय में पहली से पंचम तक नामांकित छात्रों की संख्या 124 है। छह शिक्षक पदस्थापित हैं।
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9 वर्ष पूर्व विद्यालय की स्थापना
-तरौनी गांव स्थित विद्यालय की स्थापना 16 अगस्त 2010 में हुई। आलम ये कि स्थापना काल से ही झोला में यह विद्यालय संचालित हो रहा है। शिक्षक उपस्थिति पंजी,छात्रों की उपस्थिति पंजी,मध्याह्न पंजी समेत अन्य पंजी को झोला में रखकर प्रधान शिक्षक प्रतिदिन स्कूल आते हैं। विद्यालय में उक्त पंजियों की रख रखाव की कोई व्यवस्था नहीं है। प्रधान शिक्षक देवेन्द्र कुमार, सहायक शिक्षक सुनील कुमार,ओमप्रकाश ,रूबी कुमारी,साक्षी सुमन व मनीषा कुमारी यहां कार्यरत हैं। सभी शिक्षक एक साथ बैठकर एक कमरे में छात्रों को शिक्षा देने का काम करते हैं।
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भवन के लिए भूमि है आवंटित
-विद्यालय प्रधान ने बताया करीब 9 साल गुजर गए ,लेकिन भवन नहीं बन पाया है। जबकि समाहर्ता द्वारा पत्रांक 118 दिनांक 21 फरवरी 2014 के माध्यम से विभागीय पदाधिकारी को पत्र भेजकर विद्यालय के लिए भूमि की स्वीकृति प्रदान की गई थी। भूमि उपलब्ध करा दिए जाने के बाद भी राशि उपलब्ध नहीं कराई गई। परिणाम हुआ कि छात्र व छात्राएं खुले आसमान में पढ़ने को विवश थे। पिछले वर्ष प्रखंड के कई भवनहीन विद्यालयों को दूसरे विद्यालय में शिफ्ट किया गया। जिसमें यह विद्यालय भी है। इस विद्यालय से गांव की दूरी तकरीबन एक किलोमीटर है।
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कहते हैं छात्र
-विद्यालय जर्जर भवन मे संचालित हो रहा है,काफी डर लगता है पढ़ने में। किसी समय बड़ी घटना हो सकती है। इस ओर किसी का ध्यान नहीं है।
राजू कुमार, छात्र। फोटो-21
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-हमलोगों के गांव में विद्यालय होता तो अच्छा होता। काफी दूरी से पढ़ने के लिए आती हूं,भवन भी ऐसा है कि डर लगता है।
-राजनंदनी कुमारी, छात्रा। फोटो-20
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-गांव से विद्यालय आने के क्रम में कई छात्र व छात्राओं को कुत्ता भी काट लिया था। इस विद्यालय के छत का पलास्टर टूटकर गिरता है। कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है।
-चांदनी कुमारी,छात्रा। फोटो-18
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-केवल नाम का विद्यालय है। सब कक्षा के बच्चे एक साथ एक कमरे में बैठकर पढ़ते हैं। जिससे पढ़ाई भी ठीक से नहीं हो पा रही है। सब लोग आते है केवल देखकर चल जाते हैं। कुछ भी व्यवस्था हमलोगों के लिए नहीं कर रहे हैं।
-भोला कुमार,छात्र। फोटो-19
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क्या कहते हैं अधिकारी
-विद्यालय की स्थिति से वरीय अधिकारियों को अवगत कराया गया है। भवन निर्माण कराने का प्रयास हो रहा है।
-राजेंद्र ठाकुर,बीईओ, नारदीगंज।