बिना झमाझम बरसे विदा हुआ आद्र्रा, पुर्नवसु का प्रवेश आज
आखिरकार बगैर झमाझम बरसे आद्र्रा नक्षत्र की विदाई हो गई। पुर्नवसु नक्षत्र का प्रवेश शनिवार की देर रात्रि 02 बजकर 33 मिनट पर होगा।
आखिरकार बगैर झमाझम बरसे आद्र्रा नक्षत्र की विदाई हो गई। पुर्नवसु नक्षत्र का प्रवेश शनिवार की देर रात्रि 02 बजकर 33 मिनट पर होगा। ऐसे में किसानों को अब पुर्नवसु नक्षत्र से आशा रह गई है। भदई फसल की आशा तो समाप्त हो ही गई अब खरीफ फसल पर भी संकट के बादल छाने लगे हैं। कारण स्पष्ट है आद्र्रा में धान के आधे बिचडे़ भी नहीं डाले जा सके हैं, जिससे धान का उत्पादन प्रभावित होना तय है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार धान का बिचड़ा डालने का अंतिम समय 30 जून है जो कब का समाप्त हो चुका है।
कृषि पंडित घाघ कहते हैं- पुनर्वसु- पुष्य न भरे तलैया, फिर भरीहें अगले साल हो भईया। आम तौर आद्र्रा नक्षत्र में ही आहर-तालाब में पानी भर जाया करता था। नदियों में लाल पानी का आना आना आरंभ हो जाता था, लेकिन गत वर्ष से आद्र्रा किसानों को धोखा दे रहा है। गत वर्ष आद्र्रा प्रवेश के साथ बारिश हुई थी तो किसानों ने धान के बिचड़े डाले थे। बिचड़ा गिराने में किसानों को परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा था। लेकिन इस वर्ष स्थिति बिल्कुल खराब है। आद्र्रा प्रवेश के साथ बारिश हुई नहीं और अंत में बारिश हुई भी तो इतनी नहीं कि धान के बिचड़े डाले जा सकें। भदई की आशा समाप्त
- भदई फसल की आशा तो बिल्कुल समाप्त हो चुकी है। इसके साथ ही अरहर फसल पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं। कारण स्पष्ट है आद्र्रा नक्षत्र में ही अरहर के बीज लगाए जाते हैं। इस वर्ष इतनी बारिश हुई नहीं कि खेतों में नमी आ सके। और बगैर नमी अरहर के बीज डाले नहीं जा सकते। इसी प्रकार भदई फसल के बिचडे़ नमी के अभाव में खेतों में डाले नहीं जा सके। जब बिचडे़ डाले ही नहीं गए तो फिर भदई की फसल होगी कहां से?
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सब्जी उत्पादक भी परेशान
- बारिश के अभाव व भूगर्भीय जलस्तर में लगातार कमी के कारण सब्जी उत्पादक भी परेशान हैं। खेतों में सब्जियां लगाई ही नहीं गई तो फिर उत्पादन होगा कहां से? फिर सब्जियों के मूल्य अभी से ही आसमान छूने लगे हैं। जिन्होंने हिम्मत कर लगाई भी है उन्हें सिचाई की समस्या से जूझना पड़ रहा है। ऐसे में थाली से हरी सब्जियां गायब होनी शुरू हो गई है।
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इस वर्ष अबतक सबसे कम हुई बारिश
- जिले में वर्षापात प्रति वर्ष कम होती जा रही जा रही है। लेकिन इस वर्ष की स्थिति ज्यादा खराब है। जून माह में सबसे कम 34:14 एमएम बारिश हुई जो अबतक का सबसे कम है। ऐसे में भदई फसल तो समाप्त हुई ही अब खरीफ फसल पर भी आफत है। क्योंकि जब अभी तक बिचडे़ डाले ही नहीं गए तो धान की रोपाई होगी कहां से। बिचडे़ डाले भी जाए तो उत्पादन का प्रभावित होना तय है। कृषि कवि घाघ कहते हैं- पुर्नवसु मोरी, भूखी जोय, ता घर फलिहत कभी न होय। यानी पुर्नवसु में धान के बिचड़ा डालना और घर में पत्नी अगर भूखी रहे तो उस घर का कल्याण कभी हो नहीं सकता।
बहरहाल आद्र्रा समाप्ति के बाद अब किसानों को पुर्नवसु नक्षत्र से ही आस है। अगर इसने भी धोखा दिया तो अकाल का होना निश्चित है। वैसे किसानों के लिए तो आधा अकाल हो चुका है।