अक्षय सौभाग्य की प्राप्ति को ले स्त्रियों ने किया पूजन
हिन्दू धर्मावंलवियों के लोक आस्था कुष्मांड दान ग्रामीण इलाकों में श्रद्धा पूर्वक मनाया गया।
नालंदा। हिन्दू धर्मावंलवियों के लोक आस्था कुष्मांड दान ग्रामीण इलाकों में श्रद्धा पूर्वक मनाया गया। इसे लेकर गांवों में सुबह से ही चहल-पहल बनी रही। कार्तिक मास की नौवीं तिथि को मनाये जाने वाले इस पर्व को मैथिली लोक में अक्षय तृतीया भी कहा जाता है । इस अवसर पर हर तबके के लोग घर-घर जाकर भिक्षाटन करते है और संग्रह किया गया धन व पूजन सामाग्री से कुष्मांड दान में फल कपड़े के साथ मिष्टान का भोग लगाते हैं। दूसरी ओर इस मौके पर आंवला के वृक्ष के पास भोजन बनाकर खाने की भी परंपरा है। जिससे जीवन में किये गये बुरे कर्मों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। हिन्दू आस्था का लोक पर्व कुष्मांड दान ग्रामीण क्षेत्र में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है ।यह पर्व आपसी भाईचारे का संवाहक भी है। इसमें पवित्रता और संयम की अनूठी कड़ी है । इस मौके पर सभी लोग आपसी दुश्मनी को दूर कर एक दूसरे के गले मिलते हैं और मिलकर भोजन बनाते हैं और आंवला वृक्ष के निकट प्रसाद ग्रहण करते हैं। कुष्मांड दान की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए आचार्य दिवाकांत पाण्डेय बताते हैं कि आंवले कि वृक्ष में साक्षात विष्णु का निवास है । नवमी को आंवला वृक्ष की पूजन से स्त्रियों को अक्षय सौभाग्य की प्राप्ति होती है । कथा वृतांत में बताया गया है कि पार्वती जी के श्राप के कार भगवान विष्णु को आंवले वृक्ष के रूप में परिणत होना पडा था। अक्षय नवमी को स्मरण मात्र से गोदान की फल प्राप्ति होती है।