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आज से दो दिवसीय शीतलाष्टमी मेला शुरू, हजारों संख्या में श्रद्धालुओं को पहुंचने की उम्मीद

बिहारशरीफ। मघड़ा गांव स्थित मां शीतला देवी के मंदिर में बिहार ही नहीं अन्य पड़ोसी राज्यों से भी श्रद्ध

By JagranEdited By: Published: Sun, 14 Oct 2018 04:30 PM (IST)Updated: Sun, 14 Oct 2018 04:30 PM (IST)
आज से दो दिवसीय शीतलाष्टमी मेला शुरू, हजारों संख्या में श्रद्धालुओं को पहुंचने की उम्मीद
आज से दो दिवसीय शीतलाष्टमी मेला शुरू, हजारों संख्या में श्रद्धालुओं को पहुंचने की उम्मीद

बिहारशरीफ। मघड़ा गांव स्थित मां शीतला देवी के मंदिर में बिहार ही नहीं अन्य पड़ोसी राज्यों से भी श्रद्धालु पूजा-अर्चना करने को पहुंचते हैं। श्रद्धालुओं की सुरक्षा को लेकर जिला प्रशासन एवं मंदिर कमेटी की ओर से विशेष व्यवस्था की जाती है। होली समाप्त होने के बाद चैत्र माह के सप्तमी और अष्टमी को मां के मंदिर में विशेष पूजा की जाती है जिसमें देश के प्रत्येक कोने से श्रद्धालु पहुंचते हैं।

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अष्टमी के दिन पूरे गांव व आस-पास के गांवों में नहीं जलते हैं चूल्हे : शारदीय नवरात्र में सप्तमी के दिन पूरे गांव एवं आसपास के गांव के लोग शुद्ध शाकाहारी भोजन बिना प्याज और लहसन के बनाते हैं। वहीं, अष्टमी को मां को भोग लगाया जाता है और लोग उस दिन वहीं खाना स्वयं खाते हैं और आने वाले श्रद्धालुओं को भी खिलाते हैं। यह परंपरा कई वर्षो से चलती आ रहा है। मंदिर के पंडित चुन्नू पांडेय ने कहा कि मां शीतला को अर्पित करने के बाद ही भोजन करना चाहिए। उस दिन घर में झाडू- पोछा करना भी वर्जित है। दो दिनों तक मां के मंदिर के प्रांगण में जागरण किया जाता है और भक्त मां का आशीर्वाद ग्रहण करते हैं। पटना के अगम कुआं, छोटी पटना देवी, बड़ी पटन देवी, बनारस, कासी आदि जगहों पर इनका व्रत और पूजन बड़ी धूमधाम से किया जाता है। संसार में जब भी चेचक आदि महामारी फैलती है तब कल्याण को लेकर लोग मां शीतला की आराधना करते हैं। भक्ति से प्रसन्न होकर मां शीघ्र ही लोगों का कल्याण करती है।

दिन में कभी नहीं जलते हैं दीप : मां को शीतलता पसंद है। इसलिए मां के मंदिर में दिन में कभी भी दीप नहीं जलता है। सिर्फ रात्रि में ही दीप जलाने की अनुमति है।

कहां से निकली है मां की प्रतिमा : जिस कुंए से शीतला मां का प्रतिमा निकली है वह मिट्टी कुएं के नाम से प्रसिद्ध है और यह मंदिर के पूर्व दिशा में है जहां कभी पंचानवे नदी की धारा बहा करती थी। इसके बाद ग्रामीणों ने इन्हें स्थापित किया तथा मंदिर के बगल में एक तालाब का निर्माण भी करवाया। ब्राह्मणों का कहना है कि मंदिर के ईट से पता चलता है कि इस मंदिर का निर्माण राजा अशोक के शासनकाल से पूर्व महाभारत काल में ही हुआ होगा। इस मंदिर का वर्णन स्कंद पुराण में भी किया गया है।

यहां लगता है विशाल मेला : सप्तमी और अष्टमी को गांव में विशाल मेला लगता है जिसमें अनेक प्रकार का झूला, कुश्ती प्रतियोगिता, घोड़ा दौड़, मनोरंजन के अनेक साधन मौजूद रहते हैं। कई छोटी-बड़ी दुकानें लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं।


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