पढ़ने लिखने की उम्र में नौनिहाल ढो रहे पानी
नालंदा। पढ़ने लिखने की उम्र में पानी ढोना इन नौनिहालों की किस्मत बन चुकी है। बेचारे करें भी तो क्या
नालंदा। पढ़ने लिखने की उम्र में पानी ढोना इन नौनिहालों की किस्मत बन चुकी है। बेचारे करें भी तो क्या करें। जीवन बचाना है तो जल की खोज तो करनी ही पड़ेगी। दूसरे बच्चों की तरह इनकी किस्मत कहां कि वे सज-धज कर स्कूल को निकलें। जहां हलक सूखे हों, वहां शिक्षा का मोल खत्म हो जाता है। नगर निगम के वार्ड 42 मोहल्ला सालूगंज के लोगों की व्यथा दिल दहलाने वाली है। इन्हें न रात में आराम है न दिन में चैन। यह सिलसिला वर्षों से चल रहा है। गर्मी इनके लिए किसी आफत से कम नहीं। इनके आते ही बच्चों की पढ़ाई बंद हो जाती है। पूरे परिवार को जल की एक-एक बूंद के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती है। इस जंग में बच्चों की भूमिका सबसे अहम है। अभिभावक जहां काम पर निकल जाते हैं, वहीं बच्चों का पूरा दिन जल की खोज में निकल जाता है।
शब्दों के हेर-फेर से समस्या का हल संभव नहीं। निगम बने दस साल गुजर गए। लेकिन कुछ नहीं बदला। वही गंदगी, जल का अभाव, टूटी सड़कें। सब कुछ पहले की तरह। जल की कमी पहले भी थी आज भी है। पहले जनसंख्या का कम थी, लेकिन आज जनसंख्या का भार अधिक है। बावजूद सुविधाएं कुछ भी नहीं बढ़ी। दो या तीन चापाकलों पर ¨जदगी चल रही है। बड़े लोगों के घरों में बो¨रग जल खींचने का माध्यम हैं। जितना जल चाहें बर्बाद कर लें। उनकी ¨जदगी में उतनी परेशानी नहीं। लेकिन गरीबों के लिए गर्मी का यह मौसम किसी आपदा से कम नहीं। उनके घरों में न तो सात निश्चय योजना की धमक पहुंच पाई है, न नगर निगम के टैंक उन्हें पानी परोसने में कोई रूचि ही दिखा रहा है। वर्षों बीत गए लेकिननहीं बन सका चापाकल बीस साल पहले लगे चापकल ही ¨जदगी थी, निगम के वार्ड 42 के लोगों की। वो आज दम तोड़ चुका है। छलकते जल की चाह आज आंसुओं में तब्दील हो चुके है। बच्चे-बड़े सबका एक ही काम जल की खोज। बच्चों की ¨जदगी जल की खोज में बर्बाद हो चुकी है। उनकी पढ़ाई-लिखाई सबकुछ खत्म हो चुका है। सुबह-शाम हर वक्त जल की सोंच में ही ¨जदगी गुजर जाती है। जल की खोज में खत्म हो रहा नौनिहालों का बचपन जल की खोज में बच्चों की ¨जदगी तबाह हो चुकी है। पढ़ाई छूट चुके हैं तो खेल-कूद से उनका रिश्ता टूट चुका है। दिन रात डब्बे में पानी लाने की फिराक में घूमते रहते हैं ताकि जीवन बच सके। उनके सपनों का घरौंदा जल के अभाव में टूट चुका है। लेकिन इन बच्चों के दर्द को सुनने समझने को कोई तैयार नहीं। वार्ड के लोगों का दर्द
हमारी किस्मत ही खराब है। हमने पूरी ¨जदगी जल की बूंद इक्कठे करने में गुजार दिया। आज यह दबाव बच्चों पर है। सुबह उठकर बच्चों को एक ही काम करना पड़ता है। जल कहां से लाएं?
मो. अहसान वार्ड 42 का यह क्षेत्र उपेक्षित है। इस क्षेत्र पर वार्ड पार्षद का भी ध्यान नहीं। सुबह उठकर ही चमन गली से पानी लाना पड़ता है। इस कार्य में बच्चे-बड़े सब को लगना पड़ता है।
मेहरूनिशा पानी की कमी से हाल बेहाल है। न निगम के द्वारा टैंकर ही भेजा जाता न पानी की व्यवस्था ही करवाई जाती । जल नल योजना की धमक भी आज तक सालूगंज में नहीं पहुंच सकी।
मो. रिजवान खरी कुंआ तथा चमन गली से पानी लाना पड़ता है। पानी की किल्लत के कारण घर के बच्चों की पढ़ाई खत्म हो गई। घर के कई बच्चों को परिवार के यहां भेज दिया गया है ताकि कम पानी में जीवन बसर हो सके।
सलमा खातून - जल के आभाव में ¨जदगी बोझिल बन चुकी है। हर घर नल का जल की इतनी चर्चा होने के बाद भी इस क्षेत्र में जल पाइप का विस्तार नहीं किया जा सका। कुंए सूख चुके हैं तो चापकल हाफ रहा है।
नवीजान मियां जल की कमी का दर्द आज आंसूओं में तब्दील हो चुके हैं । ¨जदगी तबाह हो चुकी है। जिस क्षेत्र को स्मार्ट सिटी का दर्जा दिया गया है वहां जल की इतनी कमी होना हैरान करने वाली बात है।
असलम