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शब्दों के हेरफेर में पिसते रहे लोग, न वार्ड ही बदला न स्मार्ट हुए लोग

बिहारशरीफ। पहले नगरपालिका फिर नगरनिगम अब स्मार्ट सिटी। शहर के पिछले 15 वर्षों के इतिहास को देखें तो न जाने कितने शब्द शहर के पर्याय बनें तमगे लगे स्मार्ट सिटी जैसे शब्द से शहर को विभूषित भी किया गया। शब्दों के इस हेरफेर में शहर के लोग पिसते रहे लेकिन विकास की रफ्तार मंद रही।

By JagranEdited By: Published: Sat, 23 Jan 2021 12:01 AM (IST)Updated: Sat, 23 Jan 2021 12:01 AM (IST)
शब्दों के हेरफेर में पिसते रहे लोग, न वार्ड ही बदला न स्मार्ट हुए लोग
शब्दों के हेरफेर में पिसते रहे लोग, न वार्ड ही बदला न स्मार्ट हुए लोग

बिहारशरीफ। पहले नगरपालिका, फिर नगरनिगम, अब स्मार्ट सिटी। शहर के पिछले 15 वर्षों के इतिहास को देखें तो न जाने कितने शब्द शहर के पर्याय बनें, तमगे लगे, स्मार्ट सिटी जैसे शब्द से शहर को विभूषित भी किया गया। शब्दों के इस हेरफेर में शहर के लोग पिसते रहे लेकिन विकास की रफ्तार मंद रही। वर्ष 2007 में शहर की जनसंख्या को देखते हुए इसे नगर निगम घोषित किया गया। 2018 में शहर स्मार्ट सिटी की फेहरिस्त में शामिल हो गया। स्मार्ट सिटी बनने की उद्घोषणा के साथ ही एक बार फिर लोगों की उम्मीदें बढ़ीं। हैरत तो इस बात की है कि 2020 तक जिस शहर को स्मार्ट बनाना था, वहां अब तक स्मार्ट सिटी निर्माण की बुनियाद तक नहीं रखी गई है। बजबजाती नालियां, आए दिन बनती-बिगड़ती सड़कें, पेयजल की जद्दोजहद कुछ इन्हीं हालात में पूरा वार्ड तथा शहर की सड़कें कराह रही है। लेकिन सरकारी कागजों में हम आज भी स्मार्ट हैं। वैसे यह भी हकीकत है कि कोरोना काल ने शहर को एक साल पीछे धकेल दिया है।

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स्मार्ट सिटी की आहट तक नहीं पहुंची वार्ड 46

स्मार्ट बनते इस शहर की नब्ज टटोलने शुक्रवार को जागरण टीम निकली। शहर के सबसे अंतिम वार्ड 46 से इस अभियान की शुरुआत की गई। इस वार्ड में झींगनगर, अलीनगर, मीरगंज नामक तथा कादिर बिगहा नाम के चार बड़े मोहल्ले हैं। इस वार्ड की जनसंख्या करीब 30 हजार है। हैरत की बात तो यह है कि इतनी बड़ी जनसंख्या के लिए वार्ड में सुविधा के नाम पर सिर्फ एक सामुदायिक भवन है। जगह-जगह उबड़-खाबड़ सड़कें, टूटी नालियां मिलीं। सड़कों की हालत के बारे में पूछने पर पता चला कि करीब 20 साल से सड़कों की मरम्मति तक नहीं हुई है। वहीं स्मार्ट बनते शहर के इस वार्ड में सुविधा के नाम पर सिर्फ खिलवाड़ दिखा। हैरत की बात तो यह है सबसे निचले पायदान पर खड़े इस वार्ड में स्मार्ट सिटी की दस्तक तक नहीं पहुंची है। लोग स्मार्ट सिटी शब्द से अनजान दिखे।

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बीस साल से सड़कों की मरम्मत तक नहीं

फोटो : 15

रामचन्द्र प्रसाद इस मोहल्ले के पुराने बाशिदे हैं। इन्होंने शहर की बदलती रुप-रेखा को देखा है। जब इनसे स्मार्ट सिटी बनते शहर के बारे में पूछा तो झल्ला उठे। कहा कि जिन सड़कों की 20 सालों से मरम्मति तक नहीं हुई है, वहां स्मार्ट सिटी का सपना देखना बेकार की बातें हैं। सच कहा जाए तो उनकी इस बात में शहर के विकास न होने का दर्द था।

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सिर्फ टैक्स बढ़े, सुविधाएं नहीं

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प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी में लगे राहुल कुमार ने टूटी सड़कों के बीच की गंदगी को दिखाते कहा क्या यही विकास है। तमाम योजनाएं सिर्फ लूट का पिटारा है। नगरपालिका के बाद नगरनिगम बना लगा अब वार्ड की किस्मत

चमकेगी लेकिन इस बीच सिर्फ टैक्स बढ़ें। कहा ऐसे में यहां स्मार्ट की बात करना बेमानी है।

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वार्ड के सारे 12 तालाब अतिक्रमण के शिकार

फोटो : 18

पूर्व वार्ड पार्षद रह चुके पवन कुमार ने कहा कि यह सच है इस वार्ड में विकास की दर काफी धीमी रही। शुद्धपेयजल की समस्या इस वार्ड की सबसे बड़ी परेशानी है। सात निश्चय योजना से लोग पेयजल की परेशानी से निजात पाने का सपना पाले हैं लेकिन भूजल का दोहन आखिर कितने दिनों तक चलेगा। यह सोचना होगा। इस वार्ड में कुल 12 तालाब हैं। लेकिन अधिकांश पर अतिक्रमण। ऐसे में जब भूमि जल से रिचार्ज ही नहीं होगी तो पेयजल आखिर कितने दिनों तक मिलेगा। आश्चर्य इस बात की है कि जल-जीवन-हरियाली योजना भी तालाबों को पुर्नजीवित करने में अपनी कोई भूमिका दिखा नहीं सका।

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जनसुविधा केन्द्र के लिए हुई नापी, पर लग गया ब्रेक

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रजनी रानी इस वार्ड की पार्षद हैं। वार्ड की किस्मत बुलंद करने का दायित्व इनके कंधे पर भी है। वार्ड में स्मार्ट सिटी की पहुंच के सवालों का जवाब देते हुए कहा कि जन सुविधा केन्द्र बनाने के लिए अलीनगर मोहल्ले में जमीन की नापी की गई थी। लेकिन एकाएक केन्द्र निर्माण से संबंधित सारे कामों पर ब्रेक लग गया। कहा इसका कारण क्या है यह तो स्मार्ट सिटी के अधिकारी ही बेहतर बता पाएंगे। वहीं टूटी सड़कों के सवाल का जवाब देते हुए कहा कि कई बार बोर्ड की बैठक में यह बात रखी गई , उम्मीद है अगले टेंडर पर सड़कें दुरुस्त हो जाएगी।


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