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अधिकतर चुनाव में सीधे मुकाबले का गवाह रहा है नालंदा

बिहारशरीफ। नालंदा जिले के सातों विधानसभा क्षेत्रों के मतदाताओं ने बीते दो चुनावों से बिखरना छोड़ दिया है। यही वजह है कि यहां सीधे मुकाबले में हार-जीत के फैसले होते रहे हैं। पिछले दो चुनावों से यह सीन सभी सातों क्षेत्रों में उभरा है। कोई उम्मीदवार चुनावी लड़ाई को त्रिकोणीय नहीं बना सका। हालांकि वर्ष 2005 और उसके पहले इक्का-दुक्का क्षेत्रों में कभी-कभार त्रिकोणीय लड़ाई हुई थी।

By JagranEdited By: Published: Thu, 22 Oct 2020 05:41 PM (IST)Updated: Fri, 23 Oct 2020 05:05 AM (IST)
अधिकतर चुनाव में सीधे मुकाबले का गवाह रहा है नालंदा
अधिकतर चुनाव में सीधे मुकाबले का गवाह रहा है नालंदा

बिहारशरीफ। नालंदा जिले के सातों विधानसभा क्षेत्रों के मतदाताओं ने बीते दो चुनावों से बिखरना छोड़ दिया है। यही वजह है कि यहां सीधे मुकाबले में हार-जीत के फैसले होते रहे हैं। पिछले दो चुनावों से यह सीन सभी सातों क्षेत्रों में उभरा है। कोई उम्मीदवार चुनावी लड़ाई को त्रिकोणीय नहीं बना सका। हालांकि, वर्ष 2005 और उसके पहले इक्का-दुक्का क्षेत्रों में कभी-कभार त्रिकोणीय लड़ाई हुई थी।

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बीते दो चुनावों से हाल यह है कि किसी-किसी विधानसभा क्षेत्र में मात्र दो से ढाई हजार मत प्राप्त कर उम्मीदवार तीसरे स्थान का 'तमगा' हासिल कर लेता है। उदाहरण के लिए नालंदा विधानसभा क्षेत्र का चुनाव नवंबर 2005 में हुआ हुआ था। तब इस सीट से मात्र 2,312 मत लाकर बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार विजय कुमार ने तीसरा स्थान हासिल कर लिया था। जबकि, इस चुनाव में जीत का अंतर 4 हजार 50 वोट का रहा था। जदयू के श्रवण कुमार को 37 हजार 806 मत मिले थे। इनके प्रतिद्वंद्वी आल इंडिया फारवर्ड ब्लॉक के उम्मीदवार राम नरेश सिंह को 33,756 वोट मिले थे। औसत 42 प्रतिशत ही मतदान हो सका था।

इधर, गठबंधन के घटक दल के पाला बदलते रहने के बावजूद वोटर मुख्यत: दो ही भाग में बंटते रहे हैं। इस साल फिर जदयू एवं भाजपा साथ हैं। हम एवं वीआईपी भी मिल कर चुनाव लड़ रही है। इधर राजद, कांग्रेस एवं वाम दल साथ हैं। लोजपा अलग है। पिछले चुनाव में जदयू, राजद व कांग्रेस के साथ थी, जबकि लोजपा, बीजेपी के साथ थी।

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जानें क्षेत्रवार मुकाबले की स्थिति

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अस्थावां में कभी त्रिकोणीय संघर्ष नहीं हुआ

अस्थावां: अस्थावां विधानसभा चुनाव क्षेत्र में भी दो ही उम्मीदवारों के बीच ठनती रही है। चाहे वो निर्दलीय ही क्यों न हो। हालांकि, अब दल या गठबंधन के बीच ही मुकाबला रहता है। यहां फरवरी 2005 में लोजपा के उम्मीदवार मुकेश कुमार थोड़ा सम्मानजनक 10 हजार 886 मत प्राप्त कर तीसरे स्थान पर रहे थे। बावजूद इसके त्रिकोण नहीं बना पाए। विजेता जदयू के डॉ. जितेंद्र कुमार को 31,387 मत जबकि प्रतिद्वंद्वी राजद उम्मीदवार को 28,176 वोट मिले थे। 2005 नवंबर में 3720 मत लाकर तीसरे नंबर पर निर्दलीय रामानुग्रह प्रसाद रहे थे। विजयी जदयू उम्मीदवार डॉ. जितेंद्र कुमार को 40,474 मत जबकि इनके प्रतिद्वंद्वी स्वतंत्र उम्मीदवार डॉ. कुमार पुष्पंजय को 24,588 मत प्राप्त हुए थे। यहां साल 2010 में तीसरे नंबर पर रहे स्वतंत्र उम्मीदवार जगेश्वर प्रसाद को 4246 मत मिले। जबकि, जदयू के जितेंद्र कुमार एवं लोजपा के कपिलदेव प्रसाद को 34,606 मत मिले थे।

वर्ष 2015 में युगेश्वर फिर स्वतंत्र लड़कर तीसरे नंबर पर रहे। इस बार वोट घटकर 4259 आ गया। लोजपा उम्मीदवार 48,464 वोट लाकर जदयू के जितेंद्र कुमार से 10,444 मतों से हार गए।

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बिहारशरीफ में बीते चुनाव में नजदीकी रहा था मुकाबला

बिहारशरीफ : यहां भी चुनावी मुकाबले में त्रिकोण नहीं बनते हैं। लड़ाई सीधी रहती है। वर्ष 2005 के दोनों चुनावों में तीसरे नंबर पर लोजपा के जागेश्वर यादव और निर्दलीय गुलाम रवा आए थे। एलजेपी को 3857 तथा गुलाम को 2727 मत मिले। जबकि, विजेता जदयू के डॉ. सुनील को पहली दफा 74,752 तथा इनके मुकाबले में रहे राजद के सैयद नौशाउद्दीन उर्फ पप्पू खान को 42,939 मत हासिल हुआ था। दूसरी बार भी जदयू के डॉ. सुनील ने 62,664 मत लाए जबकि पप्पू खान को 39,227 मतों से संतोष करना पड़ा। साल 2010 में भी जदयू से डॉ. सुनील और राजद से पप्पु खान की पत्नी आफरीन सुल्ताना मैदान में थी। जदयू को 77,880 मत जबकि राजद को 54,168 मत मिले थे। साल 2015 में भी सीधा मुकाबला हुआ। डॉ. सुनील इस बार भाजपा से उम्मीदवार बन 76,201 मत लाकर जीते, जबकि जदयू के असगर शमीम को 73,861 मत मिले। आफरीन सुल्ताना जेएपीएल की टिकट पर लड़ी और 12,635 वोट लाकर तीसरे स्थान पर रही थीं।

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2015 के राजगीर चुनाव में जदयू ने किया था बड़ा उलटफेर

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राजगीर : राजगीर विधानसभा क्षेत्र में भी सीधी टक्कर होती रही है। तीसरे स्थान पर रहने वाले मुकाबले को त्रिकोण नहीं बना सके। फरवरी 2005 के चुनाव में लोजपा के अनिल राय तीसरे नंबर पर रहकर 12,155 मत लाए। जबकि, लगातार जीतते आ रहे भाजपा के सत्यदेव नारायण आर्य को 29,324 एवं इनके प्रतिद्वंद्वी सीपीआइ के अर्जुन पासवान को 19,674 वोट मिले थे। केवल 34 प्रतिशत ही मतदान हुआ था। इसी साल नवंबर में फिर हुए चुनाव में राजगीर में मात्र 32 प्रतिशत वोट पड़े। भाजपा से सत्यदेव नारायण आर्य को 36,344 मत मिला था। इस बार त्रिकोण बनता दिखा और कम्युनिस्ट वोटों का विभाजन हो गया। भाजपा के प्रतिद्वंद्वी रहे सीपीआई के अर्जुन पासवान को मात्र 10,328 मत मिले। सीपीएम के परमेश्वर ने 9,858 वोट लाकर स्वयं तीसरे नम्बर पर रहे लेकिन मुकाबले को त्रिकोणीय बना डाले। साल 2010 के चुनाव में सत्यदेव नारायण बड़ी अंतर से जीते। इन्हें 50,648 वोट मिले। प्रतिद्वंद्वी लोजपा के धनंजय को महज 23,697 मत मिले। तीसरे स्थान के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मोनी देवी को मात्र 6,599 मत प्राप्त हुए। वहीं वर्ष 2015 के चुनाव में जदयू और भाजपा में टक्कर हुई। आठ बार से जीतते आ रहे सत्यदेव नारायण को जदयू के ही टक्कर हुई। पुलिस इंस्पेक्टर का पद छोड़ जदयू से चुनाव लड़े रवि ज्योति कुमार ने बीजेपी के सत्यदेव नारायण के विजय रथ को बार रोक दिया। जदयू को 62009 मत एवं भाजपा के 56,619 वोट मिले थे। सीपीआई के अमित कुमार 4668 वोट लाकर तीसरे स्थान पर रहे थे।

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जीत के अंतर से तीन-चार गुना कम होता है तीसरे नंबर के प्रत्याशी का वोट

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इसलामपुर : इसलामपुर विधानसभा चुनाव क्षेत्र में जितना वोट तीसरे पोजिशन पर रहने वाले उम्मीदवार को मिलता है, उससे तीन-चार गुणा अधिक वोट के अंतर जीत होती। यहां भी संघर्ष सीधा होता रहा है। फरवरी 2005 के चुनाव में जदयू के रामस्वरूप प्रसाद को 40,749 मत मिले। इनके प्रतिद्वंद्वी सीपीआई के राकेश कुमार को 20,689 मत मिले थे। तीसरे नंबर पर स्वतंत्र उम्मीदवार नरेश कुमार थे। इसी साल नवम्बर में रामस्वरूप को 46,510 मत मिले जबकि राकेश को 27,412 वोट प्राप्त हुए। जबकि राकांपा के टिकट पर 5517 वोट लाकर कौशलेंद्र कुमार (वर्तमान सांसद) तीसरे स्थान हासिल किए थे। साल 2010 में जदयू से राजीव रंजन और राजद से वीरेंद्र गोप की सीधी लड़ाई हुई। जदयू को 56,332 मत एवं राजद को 32,524 मत मिले। जबकि सीपीआई के राकेश कुमार 8369 मत प्राप्त कर तीसरा स्थान हासिल किया। साल 2015 में जदयू ने चंद्रसेन प्रसाद को टिकट दिया और भाजपा ने वीरेंद्र गोप को मैदान में उतारा। जदयू को 66,587 मत मिले जबकि भाजपा को 43,985 मत से संतोष करना पड़ा। समाजवादी पार्टी से धर्मेंद्र कुमार 4,898 मत लाकर तीसरे स्थान पर रहे थे।

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हिलसा में घटता-बढ़ता रहा हार-जीत में वोटों का अंतर

हिलसा : हिलसा में भी अक्सर सीधी भिड़ंत होती रही है। जीत के मतों का अंतर घटना-बढ़ना तो अलग बात है। फरवरी 2005 में यहां जदयू ने रामचरित्र प्रसाद को टिकट दिया और वे 34,698 मत लाकर जीत गए। राजद से लड़े राजेश कुमार उर्फ राजू यादव को 28,526 मत मिले थे। इस चुनाव में लोजपा से कुमार सुमन को टिकट मिला था और वे 11,918 वोट लाकर तीसरे स्थान पर थे। नवंबर में फिर हुए चुनाव में जदयू के रामचरित्र प्रसाद को 41,371 मत मिले और वे फिर जीते। इस बार राजू यादव लोजपा के टिकट पर लड़े और दूसरे स्थान रहे। जबकि सीपीआई एमएल के उम्मीदवार अरुण यादव 7616 मत लाकर तीसरे स्थान पर रहे थे। वहीं राजद के वीणा देवी 3,401मत के साथ चौथे स्थान पर चली गईं थी। साल 2010 में चेहरे बदल गए। उधर, राजद से जदयू में गयी प्रो. उषा सिन्हा को हिलसा से टिकट मिला। इधर, लोजपा ने राजू यादव की पत्नी रीना देवी यादव को मैदान में उतारा। श्रीमती सिन्हा जीत गई और इन्हें 54,874 वोट प्राप्त हुए। जबकि श्रीमती यादव को 41,772 मत मिले। वर्ष 2015 में राजद से अत्रि मुनि उर्फ शक्ति यादव को 72,347 वोट आए। लोजपा के टिकट पर कुमार सुमन की पत्नी दीपिका कुमारी को 46,271 मत मिल सके। जबकि तीसरे स्थान पर सीपीआई (एमएल) के श्याम नारायण रहे थे। इन्हें 5415 वोट मिले थे।

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नालंदा से सीधे मुकाबले में जीतते रहे हैं श्रवण

नालन्दा : नालंदा में सीधे मुकाबले में जदयू के श्रवण कुमार ही लगातार जीतते आ रहे हैं। नवंबर 2005 में यहां 2.86 फीसद वोट लाने वाले तीसरे स्थान पर रहे थे। साल 2010 में जदयू के श्रवण कुमार को 58,067 मत मिले जबकि राजद के अरुण कुमार को 37,030 मत प्राप्त हुए थे। इधर, मात्र 7,433 मत लाकर निर्दलीय जगदीश प्रसाद तीसरा स्थान हासिल किए थे। साल 2015 में जदयू के श्रवण कुमार को 72,596 मत जबकि भाजपा से लड़े कौशलेंद्र कुमार उर्फ छोटे मुखिया को 69,600 मत मिले थे। 3558 मत लाकर स्वतंत्र लड़े अरुणेश कुमार तीसरा पोजिशन हासिल किया।

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हरनौत का भूगोल बदला तो प्रत्याशियों के चेहरे बदल गए

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हरनौत: हरनौत भी सीधी लड़ाई का गवाह बनता आ रहा है। विधानसभा क्षेत्र का पुनर्गठन होने के बाद इसके भौगोलिक परिदृश्य बदले तो उम्मीदवारों के चेहरे भी बदल गए। पुनर्गठन के बाद विधानसभा सदस्य के लिए वर्ष 2010 में पहला चुनाव हुआ जिसमें हरनौत के अलावा चंडी एवं नगरनौसा के मतदाताओं ने मतदान किया। इसमें जदयू के हरिनारायण सिंह की सीधी लड़ाई लोजपा के अरूण कुमार बिंद से रहा। जदयू को 56,827 मत, जबकि लोजपा को 41,785 मत मिले थे। स्वतंत्र लड़े पूर्व विधायक अनिल सिंह मात्र 4542 मत लाकर तीसरा स्थान हासिल किए थे। साल 2015 में भी जदयू को 71,953 वोट मिले जबकि लोजपा को 57,638 वोट मिले थे। स्वतंत्र उम्मीदवार धर्मेंद्र कुमार 4,146 मत लाकर तीसरे स्थान पर रहे थे। वर्ष 2010 से पहले भी हरनौत में जब रहुई प्रखंड शामिल था तब भी 2005 के दोनों चुनावों में जदयू से सुनील कुमार जीते थे। इसमें त्रिकोणीय मुकाबले हुए थे।

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चंडी के विलोपित होने से 8 की बजाए रह गए सात विस क्षेत्र

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नए परिसीमन में चंडी विधानसभा को विलोपित कर दिया गया। इस तरह नालंदा में आठ की जगह सात विधानसभा क्षेत्र ही बचा रहा। चंडी में शामिल चंडी एवं नगरनौसा प्रखंड को हरनौत में मिला दिया। जबकि, थरथरी प्रखंड को हिलसा में शामिल किया गया। रहुई प्रखंड को हरनौत से काटकर बिहारशरीफ में जोड़ दिया गया।


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