बौद्ध काल की यादें संयोजे है पिप्पली गुफा
नालंदा। महाभारत, मगध साम्राज्य तथा बौद्ध काल का संयुक्त धरोहर है राजगीर के पांचवे पर्वत वैभारगिरि पर
नालंदा। महाभारत, मगध साम्राज्य तथा बौद्ध काल का संयुक्त धरोहर है राजगीर के पांचवे पर्वत वैभारगिरि पर स्थित पिप्पली गुफा। यह वैभारगिरि पर्वत से नीचे उतरने के क्रम में पूर्वी ढलान तथा ब्रह्म कुण्ड परिसर के दक्षिण पश्चिम में सीढि़यों से लगभग 100 फुट शिलाखंडों से निर्मित एक पत्थर की ईमारत से मिलकर बनी है। बौद्ध ग्रंथों में उल्लेखानुसार इस गुफा में भगवान बुद्ध ने कुछ समय यहां व्यतीत किया था। इसके बाद उनके प्रमुख शिष्य और प्रथम बौद्ध संगिति के अध्यक्ष रहे महाकश्यप का निवास स्थान भी रहा है। पिप्पली गुफा के उपर विशाल आयताकार, चबुतरेनुमा सतह है। जिसकी लंबाई करीब 25.09 मीटर और चौड़ाई 24.08 के आस पास है। वहीं विशाल बड़े बड़े शिलाखंडों से पर्वत के सतह से उपर तक निर्मित ऊंचाई लगभग 9 मीटर है। वहीं इसे महाभारत काल में मगध साम्राज्य के सम्राट राजा जरासंध की बैठक के नाम से भी यह स्थान भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के रिपोर्ट में दर्ज है। यहां बैठकर जरासंध अपने राज्य की सीमा व प्रजा की समस्यायों का अवलोकन तथा अपने दरबारियों के साथ राजनीतिक मंत्रणा किया करते थे। मगर उक्त कालखंड का गवाह तथा वर्तमान में अपने जर्जर खस्ता हालत से जुझता यह गुफा पर्यटकों के बीच चर्चा के गर्म बाजार में विभागीय अनदेखी का शिकार है। बीतते समय तथा मौसम के थपेड़ो के साथ इसकी बनावट तथा संरचना बुरी तरह से प्रभावित होती जा रही है। वैसे तो इसे गौर से देखने पर मजबूत तथा करीने से सजाकर रखें गये विशाल चट्टानों की आपसी पकड़ से बेहद मजबूत प्रतीत होता है। मगर 2015 में आते भूकंप के झटकों के कारण चट्टाने खिसक कर गुफा के भीतर जमा हो गई है। तथा कहीं कहीं इसके दीवार पर कहीं कहीं चट्टानों के बीच खाली दरारें भी दिखने लगी है। मगर खतरे की कोई बात नहीं है। लेकिन देशी विदेशी सैलानियों को इसके जर्जर संरचना से इस पर चढ़ते कतराते भी देखें गये हैं। कुछ वर्षों पहले इसकी पुरातत्व विभाग द्वारा मरम्मती का कार्य संपन्न हुआ था।
पुरातत्व विभाग ने गुफा का किया था नामकरण:
पुरातत्व विभाग ने पिप्पली गुफा को मगध सम्राट जरासंध की बैठकी के नाम का नाम दिया है। ¨कवदंतियों के अनुसार इस स्थान से अपने साम्राज्य की राजधानी राजगीर के सीमा तक की सुरक्षा तथा प्रजा का हाल चाल भी लिया करते थे। और मुक्ताकाश में यहां पर बैठकर राज काज पर समीक्षा भी किया करते थे। वहीं इसी पर्वत की चोटी पर स्थित बाबा सोमनाथ सिद्धनाथ महादेव मंदिर से जब वे पूजा अर्चना कर लौटते तो यहां बैठकर विश्राम करते थे। महाकश्यप के नाम पर गुफा का नाम पड़ा पिप्पली:
भगवान बुद्ध के प्रमुख शिष्य महाकश्यप ने इस गुफा को निवास स्थल के रुप में चुना। महाकश्यप का नाम पिप्पली मानव था। शायद उनके पूर्व न मिलने पर ही इस गुफा का नाम पिप्पली गुफा पड़ गया। जहां अनेकों बार भगवान बुद्ध तथा महाकश्यप आपसी विचार-विमर्श का आदान प्रदान किया करते थे। वहीं चीनी यात्री फाहियान का मत है कि भगवान बुद्ध भोजन के बाद इसी गुफा में आकर ध्यानमग्न हो जाया करते थे। इस गुफा का पहली बार पता लगाने वाले सख्श ब्रिटिश शासन का एक नूमाईंदा जनरल कर्निंघम था। इस दौरान 1895 ई0 के ब्रिटिश शासन काल में ही सर जान मार्शल ने इसका अवलोकन कर इसे अछ्वुत बताया था। उन्होंने पर्वत पर विशाल शिलाखंडों को ढोकर लाने से लेकर इसके निर्माण तक पौराणिक काल के तकनीकी का बेमिसाल नमूना बताया था। उन्होंने बताया उस समय इसके ऊपर प्राकृतिक पत्थरनुमा छत भी हुआ करता था। जो एक प्राकृतिक आपदा में धराशाई हो गया। वहीं चीनी यात्रियों में शामिल व्हेनसांग व फाहियान इस गुफा को पीन-पो-लो कहा है। उस समय गुफा के मुंहाने पर एक पीपल का वृक्ष ही हुआ करता था। जानकार बताते हैं कि उस काल में यहां चारों ओर केवल पीपल के वृक्षों की जमावड़ा रहा करता था। कुछ विद्वानों का कहना है कि उक्त पीपल उसी वृक्ष की शाखाएं से उत्पन्न हुई जिसके नीचे बैठकर बोधगया में भगवान बुद्ध ने सम्यक सम्बोधि को प्राप्त किया था। कुछ दिन पूर्व ही कुछ विदेशी सैलानियों ने बताया कि अगर इस गुफा का जीर्णोद्धार तथा इसके उपरी सतह के चारों ओर मजबूत लोहे के बैरेके¨टग तथा उपर से शेड लगा दिया जाय। तो पर्यटक यहां कुछ समय बिताने की सोच सकता हैं। वहीं अखिल भारतीय तीर्थ पुरोहित महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री डा धीरेन्द्र उपाध्याय ने इस गुफा को पर्यटन के दृष्टिकोण से अतिमहत्वपूर्ण बताया है। कहा कि यह गुफा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निर्देशन में बिहार में तलाशती पर्यटन की संभावनाओं पर खरा उतरती है। जिसका जीर्णोद्धार कर बैरेके¨टग लगाने से अनेक मवेशियों की जान बच सकती है। इसके साथ ही विशेष साफ सफाई, पेयजल, शेड, एक बोर्ड जिसमें यहां के बारे में समुचित जानकारी, बड़े जूम सिस्टम यानि आवर्द्धन वाले दूरबीन जिसके माध्यम से राजगीर शहर तथा वनक्षेत्र का अवलोकन कर पर्यटक हर्षित हो और राजस्व के साथ रोजगार के अवसर भी स्थानीय लोगों को प्राप्त हो।