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मैं स्वयं प्यासी, कहां से दूंगी चिरैया को पानी

बिहारशरीफ। मैं मुहाने नदी हूं। बरसों-बरस तक मैं लाखों लोगों की प्यास बुझाने में सहभागिनी रही। अपने निर्मल जल से खेतों को सींच अन्न उपजाने में काम आती रही। लेकिन जिनके पुरखे ने मुझसे जिदगी जी ली आज उन्हीं की पीढि़यां मुझे निगलने की कोशिश कर रही है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 24 Jan 2021 11:10 PM (IST)Updated: Sun, 24 Jan 2021 11:10 PM (IST)
मैं स्वयं प्यासी, कहां से दूंगी चिरैया को पानी
मैं स्वयं प्यासी, कहां से दूंगी चिरैया को पानी

बिहारशरीफ। मैं मुहाने नदी हूं। बरसों-बरस तक मैं लाखों लोगों की प्यास बुझाने में सहभागिनी रही। अपने निर्मल जल से खेतों को सींच अन्न उपजाने में काम आती रही। लेकिन जिनके पुरखे ने मुझसे जिदगी जी ली, आज उन्हीं की पीढि़यां मुझे निगलने की कोशिश कर रही है। मेरे किनारे को सिमटा दिया गया है। पेट में पानी की जगह गाद भरा है। मैं विवश हूं। पानी नहीं ला सकती। फिर भी लोग मुझसे पानी की उम्मीद लगाए हैं। लोग मेरे ऊपर दूसरी नदी को पानी देने की जिम्मेदारी सौंपने को आतुर हैं। मेरे बगल से गुजरने वाली चिरैया नदी को मेरे हिस्से का पानी देने के उपाय रचे गए हैं। ऐसा करने वाले अधिकारी क्यों नहीं सोचते कि जो स्वयं प्यासी हो, वो दूसरे को पानी कहां से देगी।

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मेरे बहाव क्षेत्र चंडी में मेरे पेट से पक्की नहरें निकाली गई हैं। नहरें तो अन्य कई प्रखंडों में बनी पर हश्र क्या रहा, सभी को मालूम है।

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अनुपयोगी है मुहाने-चिरैया सिचाई परियोजना पर 17 करोड़ खर्च

हां, तो मेरी देखभाल की जिम्मेदारी में लगे अभियंताओं द्वारा मुहाने-चिरैया सिचाई परियोजना पर 17 करोड़ रुपए से अधिक खर्च किए जा रहे हैं। खेतों-नदियों को जोड़ने के लिए दो नहरों के अलावा खेतों तक पानी पहुंचाने के लिए भी दो पक्की नहरें बनाई गई हैं। पता नहीं किस विश्वास से इन्हें लगता है कि मैं दूसरे को भी

पानी से लबालब कर सकती हूं। उसमें तेज धार बहा सकती हूं। पर सोच लो। जब तक मैं हहराती हुई नहीं बह सकूंगी, योजनाएं-परियोजनाएं किसानों को मुंह चिढ़ाने के लिए ही होगी। पहले अपनी जिम्मेदारी समझने की कोशिश करो।

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मुहाने का मुंह बंद, काम न आया 73 दिनों का सत्याग्रह

फिर याद दिलाती हूं। जहानाबाद जिले के उदेरा स्थान जहां मेरा उद्गम है, मुंह बंद है। ..तो मैं बरसात में भी पानी कहां से दूंगी।

मेरा मुंह खोलने के लिए 73 दिनों का सत्याग्रह हुआ था। इस आंदोलन में चंडी, नगरनौसा, हरनौत, थरथरी, हिलसा, एकंगरसराय, इसलामपुर आदि प्रखण्डों के लोग साथ आए थे। इस आंदोलन को मुहाने-नोनाई संघर्ष समिति के नाम से चलाया गया था। इसमें पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, पूर्व मंत्री श्रवण कुमार, प्रेम कुमार एवं वर सांसद कौशलेंद्र कुमार ने भी सत्याग्रह में साथ दिया था।

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हाईकोर्ट जाने का भी नहीं निकला नतीजा

पूर्व मुखिया हिलसा के कलियाचक निवासी साधुशरण सिंह मेरे अस्तित्व की रक्षा के लिए हाईकोर्ट तक गए। इस कार्य में इस्लामपुर के रामचन्द्र प्रसाद का भी योगदान रहा। पर नतीजा कुछ नहीं निकला। अतिक्रमण करने वाले भारी साबित हुए। राजनीति हावी होती गई। हां, कुछ हिस्से का कायाकल्प हुआ पर पानी आने का रास्ता नहीं निकला।

कहे देती हूं। पहले मुझे पानी लाने लायक बनाओ। फिर मैं खेतों की प्यास बुझाऊंगी। अन्यथा अपनी पेट भरने के लिए परियोजना बनाते रहो।


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