पांडुलिपियों को दिख हांगकांग का दल चकित
नालंदा। सिलाव नव नालंदा महाविहार नालंदा में सोमवार को एक दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया गया।
नालंदा। सिलाव नव नालंदा महाविहार नालंदा में सोमवार को एक दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया गया। जिसका विषय था योगाचारा परम्परा प्राचीन भारत से आधुनिक चाइना में किस तरह पहुंचा। इस सेमिनार में हांगकांग का 15 सदस्यीय दल ने हिस्सा लिया। दल के सदस्यों का स्वागत भारतीय परंम्परा के अनुसार फूल-माला के साथ तिलक लगाकर किया गया। इस अवसर पर चाईनिज विभाग के विभागाध्क्ष डा.कुंडला ने दल का स्वागत करते हुए कहा कि चाईना और भारत का संबध मास्टर हवेनसांग के समय से ही है। उन्होने कहा कि हवेनसांग के लिखे किताब 'ता थांग सि यु ची' के आधार पर ही भगवान बुद्ध के सभी तीर्थस्थलों का पता चला। उन्होंने कहा कि योगचारा परम्परा प्राचीन भारत से आधुनिक चाईना में हवेनसांग द्वारा हीं पहुचा। हवेनसांग जब नालंदा में शिक्षा अध्ययन के लिए आये थे तभी योगाचारा शास्त्र को अपने साथ चाईना ले गए थे और उसका संस्कृत से चाईना में अनुवाद किया था। उसके वाद से अब पूरे चाईना में प्रसिद्ध है। महाविहार के निदेशक डा. आर पंथ ने दल के सदस्यों को महाविहार के पुस्तकालय में रखे अद्भाुद पांडुलिपियों को दिखाया जिसे देख दल चकित रह गए। ताम्रपत्र और केले के पत्ते पर लिखे अभिलेख जिसमें भगवान बुद्ध के ग्रंथ सुप्त पिटक, विनय पिटक और अभिधम्म लिखे हैं। यह दल हवेनसांग मेमोरियल हाल को देख काफी खुश हुआ और इसे भारत चाईना का प्रतीक बताया ।