Move to Jagran APP

बड़गांव राजकीय मेला के प्रति उदासीन बना है प्रशासन

बिहारशरीफ। बड़गांव राजकीय मेला की सफलता पर ग्रहण लगता दिख रहा है। प्रशासन जहां चुनाव के नाम पर कन्नी काट रहा है वहीं बड़गांव सूर्य मंदिर पंडा कमेटी ने भी हाथ खड़े कर अपनी मंशा जाहिर कर दी है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 29 Mar 2019 04:42 PM (IST)Updated: Fri, 29 Mar 2019 04:42 PM (IST)
बड़गांव राजकीय मेला के प्रति उदासीन बना है प्रशासन
बड़गांव राजकीय मेला के प्रति उदासीन बना है प्रशासन

बिहारशरीफ। बड़गांव राजकीय मेला की सफलता पर ग्रहण लगता दिख रहा है। प्रशासन जहां चुनाव के नाम पर कन्नी काट रहा है, वहीं बड़गांव सूर्य मंदिर पंडा कमेटी ने भी हाथ खड़े कर अपनी मंशा जाहिर कर दी है। इधर, भक्त घाट की कुव्वस्था देखकर चितित हैं। बता दें कि छठ के मौके पर बड़गांव में लगने वाले मेले में मुश्किल से एक सप्ताह का समय बाकी है। अभी तक न तो प्रशासन की ओर से और न ही स्थानीय कमेटी की ओर से साफ-सफाई या अन्य कार्य शुरू किए गए हैं। मेला कमेटी की बैठक भी अभी तक नहीं हो पाई है। तालाब के किनारे बनी सीढ़ी के ईंट बिखरे पड़े हैं, वहीं घाट के किनारे गंदगी भी फैली हुई है। तालाब में मूर्ति विसर्जन की मनाही का कड़ाई से पालन हो रहा है परंतु मवेशी खुलेआम धोए जा रहे हैं। तालाब में अभी तक स्वच्छ पानी भरने की व्यवस्था नहीं हुई है। 

loksabha election banner

खींचतान के कारण पंडा कमेटी ने खींचे हाथ : मालूम हो कि वर्ष 2013-14 में अनुमंडल पदाधिकारी की देख-रेख में पंडा कमेटी का गठन किया गया था जिसमें लव मिश्रा अध्यक्ष, शैलेश पांडेय सचिव और कोषाध्यक्ष मोतीलाल पांडेय को बनाया गया था। कोषाध्यक्ष मोतीलाल पांडेय ने तत्काल घरेलू वजहों से अपने को अलग कर लिया था। तब से आज तक यह कमेटी इसी स्थिति में कार्य कर रही थी। इसी महीने 17 मार्च को पंडा कमेटी के अध्यक्ष लव मिश्रा ने जिलाधिकारी और अनुमंडल पदाधिकारी को निबंधित डाक से सूचना देकर अपने आपको भी कार्यमुक्त होने की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि सचिव के रोगग्रस्त होने की स्थिति में सारी जवाबदेही उनपर आ गयी है। इससे मेरा व्यक्तिगत कार्य प्रभावित हो रहा है। समाज के लोगों से भी अपेक्षित सहयोग नहीं मिल रहा है, इस कारण वे स्वत: कार्यमुक्त हो रहे हैं। इसकी सूचना निबंधित डाक से जिलाधिकारी व एसडीएम को देने के लगभग 10 दिन बीतने के बाद भी कोई कदम नहीं उठाए गया है।

मंदिर की व्यवस्था है भगवान भरोसे : आज स्थिति यह है कि इस ख्यात सूर्य मंदिर की व्यवस्था भगवान भरोसे है। मेला नजदीक आता देख श्रद्धालु परेशान हैं। यहां बता दें कि तीन चार दिन पूर्व मेला बंदोवस्ती की प्रक्रिया को लेकर सुगबुगाहट शुरू भी हुई थी। परंतु चुनावी हवाला देते हुए उसे भी टाल दिया गया। इससे न केवल सरकारी राजस्व की क्षति हो रही है बल्कि वर्षों से चली आ रही पौराणिक परम्परा की सफलता पर प्रश्नचिह्न लग गया है। यहां बता दें कि मेला परिसर अतिक्रमणकारियों के कब्जे में है। कोई भी ठेकेदार बंदोवस्ती के लिए आगे बढ़ने को तैयार नहीं है।  बड़गांव सूर्य मंदिर का है पौराणिक महत्व : सूर्य पीठ बड़गांव वैदिक काल से सूर्योपासना का प्रमुख केंद्र रहा है। यह सूर्य मंदिर दुनिया के 12 अर्कों में से एक है। ऐसी मान्यता है कि यहां छठ करने से हर मुराद पूरी होती हैं। यही कारण है कि देश के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालु यहां चैत एवं कार्तिक माह में छठव्रत करने आते हैं। भगवान सूर्य को अ‌र्घ्य देने की परंपरा बड़गांव से ही शुरू हुई थी। मगध काल में छठ की महिमा इतनी थी कि जरासंध से युद्ध के लिए राजगीर आये भगवान कृष्ण ने भी बड़गांव पहुंच भगवान सूर्य की आराधना की थी। इसकी चर्चा सूर्य पुराण में है। श्रीकृष्ण के पौत्र राजा साम्ब को कुष्ट रोग से मिली थी मुक्ति :

पंडा कमेटी के सचिव शैलेश पांडेय के अनुसार ऐसी मान्यता है कि महर्षि दुर्वासा जब भगवान श्रीकृष्ण से मिलने द्वारिका गये थे उस समय भगवान श्रीकृष्ण रुक्मिणी के साथ विहार कर रहे थे। उसी दौरान अचानक किसी बात पर भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र राजा साम्ब को हंसी आ गई। महर्षि दुर्वासा ने हंसी को उपहास समझ लिया और राजा साम्ब को कुष्ठ रोग होने का श्राप दे दिया। इस कथा का वर्णन पुराणों में भी है। इसके बाद श्रीकृष्ण ने राजा साम्ब को कुष्ठ रोग से निवारण के लिए सूर्य की उपासना के साथ सूर्य राशि की खोज करने की सलाह दी थी। उनके आदेश पर राजा साम्ब सूर्य राशि की खोज में निकल पड़े। रास्ते में उन्हें प्यास लगी। राजा साम्ब ने अपने साथ में चल रहे सेवक को पानी लाने का आदेश दिया। घना जंगल होने के कारण पानी दूर-दूर तक नहीं मिला। एक जगह गड्ढे में पानी तो था लेकिन वह गंदा था। सेवक ने उसी गड्ढे का पानी लाकर राजा को दिया। राजा ने पहले उस पानी से हाथ-पैर धोए। उसके बाद उसी पानी से प्यास बुझायी। पानी पीते ही उन्होंने अपने आप में परिवर्तन महसूस किया। इसके बाद राजा कुछ दिनों तक उस स्थान पर रहकर गड्ढे के पानी का सेवन करते रहे। राजा साम्ब ने 49 दिनों तक बर्राक (वर्तमान बड़गांव) में रहकर सूर्य की उपासना और अ‌र्घ्यदान भी किया। इससे उन्हें श्राप से मुक्ति मिली। उनका कुष्ट रोग पूरी तरह से ठीक हो गया। राजा साम्ब ने बनवाया था बड़गांव का तालाब :

राजा साम्ब ने गड्ढे वाले स्थान की खुदाई करके तालाब का निर्माण कराया। मान्यता है कि इसमें स्नान करके आज भी कुष्ठ जैसे असाध्य रोग से मुक्ति मिल जाती है। आज भी यहां कुष्ठ से पीड़ित लोग आते हैं और तालाब में स्नान कर सूर्य मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं। जानकारी हो कि तालाब की खुदाई के दौरान भगवान सूर्य, कल्प विष्णु, सरस्वती, लक्ष्मी, आदित्य माता जिन्हें छठी मैया भी कहते हैं सहित नवग्रह देवताओं की प्रतिमाएं निकलीं। बाद में राजा ने अपने दादा श्रीकृष्ण की सलाह पर तालाब के पास मंदिर बनवाकर इ्र प्रतिमाओं को स्थापित किया था। पहले तालाब के पास ही सूर्य मंदिर था। 1934 के भूकंप में मंदिर ध्वस्त हो गया। बाद में ग्रामीणों ने तालाब से कुछ दूर पर मंदिर का निर्माण कर सभी प्रतिमाओं को स्थापित किया। छठ महापर्व में पहुंचते हैं हजारों लोग : ऐसे तो यहां सालों भर हर रविवार को हजारों श्रद्धालु इस तालाब में स्नान कर असाध्य रोगों से मुक्ति पाते हैं। लेकिन कार्तिक एवं चैत माह में हजारों श्रद्धालु यहां आकर विधि-विधान से छठव्रत करते हैं। अगहन और माघ माह में भी रविवार को यहां भगवान सूर्य को अ‌र्घ्य दिया जाता है। तालाब के पानी से बनता है छठ का प्रसाद : बड़गांव सूर्य मंदिर तालाब के पानी से ही लोहंडा का प्रसाद बनाया जाता है। व्रत करने यहां आने वाले व्रती तालाब के पानी से ही प्रसाद बनाते हैं। आसपास के गांव बड़गांव, सूरजपुर, बेगमपुर आदि गांवों के लोग भी इसी तालाब के पानी से छठ का प्रसाद बनाते हैं। उनका कहना है कि परंपरा काफी पुरानी है, जो अबतक जारी है। लोगों में तालाब और सूर्य मंदिर के प्रति काफी आस्था व श्रद्धा है। चार दिनों तक चप्पल नहीं पहनते हैं ब्राह्मण टोले के लोग : पवित्रता का पर्व छठ के नहाय-खाय से दूसरी अ‌र्घ्य तक बड़गांव के ब्राह्मण टोले के लोग चप्पल नहीं पहनते हैं। यह परंपरा उनके बुजुर्गों द्वारा शुरू की गयी है जिसका पालन अबतक किया जाता है। चप्पल नहीं पहनने का मुख्य मकसद यह कि व्रतियों को किसी तरह की असुविधा न हो। कष्टी करने वालीं व्रती सूर्य मंदिर तक जिस रास्ते से जाती हैं, उसी रास्ते से वे भी अपने-अपने घरों तक जाते हैं। ऐसे में कभी-कभी भूलवश व्रती से पैर छू जाता है जिसे अनुचित माना जाता है। इसी कारण यहां के लोग छठ के दौरान चप्पल धारण नहीं करते हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.